ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 255
और दोस्तों, पूर्वी जी के पसंद के गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं उनकी पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत पर। यह गीत भले ही बच्चों वाला गाना हो, लेकिन बहुत ही मर्मस्पर्शी है, जिसे सुनते हुए आँखें भर ही आते हैं। परदेस गए अपने पिता के इंतेज़ार में बच्चे किस तरह से आस लगाए बैठे रहते हैं, यही बात कही गई है इस गीत में। जी हाँ, "सात समुंदर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से, अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना, पप्पा जल्दी आ जाना"। जहाँ एक तरफ़ मासूमियत और अपने पिता के जल्दी घर लौट आने की आस है, वहीं बच्चों की परिपक्वता भी दर्शाता है यह पंक्ति कि "गुड़िया चाहे ना लाना"। आप चाहे कुछ भी ना लाओ हमारे लिए, लेकिन बस आप जल्दी से आ जाओ। आनंद बक्शी के ये सीधे सरल बोल और उस पर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का सुरीला और दिल को छू लेने वाला संगीत, गीत को वही ट्रीटमेंट मिला जिसकी उसे ज़रूरत थी। और इस गीत के गायक कलाकारों के नामों का उल्लेख भी बेहद ज़रूरी है। लता जी की आवाज़ तो आप पहचान ही सकते हैं जो कि गीत की मुख्य गायिका हैं, लेकिन उनके अतिरिक्त इस गीत में कुल तीन बाल आवाज़ें भी आपको सुनाई देंगी। क्या आपको पता है ये आवाज़ें किन गायिकाओं की है? चलिए हम बता देते हैं। ये आवाज़ें हैं सुलक्षणा पंडित, मीना पतकी, और ईला देसाई की। यह गीत है १९६७ की फ़िल्म 'तक़दीर' का जिसके मुख्य कलाकार थे भारत भूषण, शालिनी, और फ़रिदा जलाल। फ़िल्म का निर्देशन किया था ए. सलाम ने। यह फ़िल्म कोंकणी फ़िल्म 'निर्मोन' का रीमेक था।
फ़िल्म 'तक़दीर' की कहानी कुछ इस तरह की थी कि गोपाल (भारत भूषण) और शारदा (शालिनी) अपने दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहते हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी ना होने की वजह से गोपाल के मन में विदेश जाकर नौकरी करने का ख़याल आता है। जिस नाव में वो सफ़र कर रहे होते हैं वो तूफ़ानी समुंदर में डूब जाती है और वो कभी घर नहीं लौटता। इसी सिचुयशन पर वो तीन छोटे बच्चे अपने पिता के इंतेज़ार में यह गीत गाते हैं। फ़िल्म देखते हुए आपकी आँखें भर आएँगी। यह तो थी बच्चों का अपने पिता के नाम संदेश। इसी तरह से गोपाल और शारदा भी एक दूसरे के ग़म का इज़हार फ़िल्म में "जब जब बहार आई और फूल मुस्कुराए, मुझे तुम याद आए" गीत के ज़रिए करते हैं। बताने की आवश्यकता नहीं कि यह गीत इस फ़िल्म का सब से मक़बूल गीत रहा है। दोस्तों, क्योंकि आज के प्रस्तुत गीत "पप्पा जल्दी आ जाना" में सुलक्षणा पंडित की आवाज़ शामिल है और यह उनका गाया पहला फ़िल्मी गीत था, तो चलिए उन्ही की ज़ुबानी जानते हैं इस गीत की रिकार्डिंग् के बारे में जिसका ज़िक्र उन्होने विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में किया था। "मैं उस वक़्त ९ बरस की थी, और मैं जब गा रही थी, मैं लता जी को देख रही थी, और वो इतनी प्यारी लग रही थीं जब वो गा रहीं थीं। उनके सामने ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत हीरोइन भी कुछ नहीं है।" देखा आपने सुलक्षणाजी ने लता जी की ख़ूबसूरती का किस तरह से ज़िक्र किया, आइए अब इस अनोखे गीत को सुनते हैं, अनोखा मैने इसलिए कहा क्योंकि गायिकाओं के इस कॉम्बिनेशन का यह एकमात्र गीत है। और गीत सुनने से पहले हम पूर्वी जी का एक बार फिर से आभार व्यक्त करते हैं ऐसे प्यारे प्यारे गीतों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करवाने के लिए। उम्मीद है आप आगे भी हमारी प्रतियोगिताओं में इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाती रहेंगी।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. कल याद किया जायेगा एक ऐसे संगीतकार को जिन्हें खुद तो बहुत अधिक सफलता नहीं मिली पर उनके सुपुत्र बतौर संगीतकार एक लम्बी पारी खेल चुके हैं.
२. इस फिल्म की नायिका थी जयश्री गाड़कर
३. मुखड़े में शब्द है -"गम".
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी लगतार दो चौके....कमाल कर रहे हैं आप...बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
और दोस्तों, पूर्वी जी के पसंद के गीतों को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं उनकी पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत पर। यह गीत भले ही बच्चों वाला गाना हो, लेकिन बहुत ही मर्मस्पर्शी है, जिसे सुनते हुए आँखें भर ही आते हैं। परदेस गए अपने पिता के इंतेज़ार में बच्चे किस तरह से आस लगाए बैठे रहते हैं, यही बात कही गई है इस गीत में। जी हाँ, "सात समुंदर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से, अच्छी सी गुड़िया लाना, गुड़िया चाहे ना लाना, पप्पा जल्दी आ जाना"। जहाँ एक तरफ़ मासूमियत और अपने पिता के जल्दी घर लौट आने की आस है, वहीं बच्चों की परिपक्वता भी दर्शाता है यह पंक्ति कि "गुड़िया चाहे ना लाना"। आप चाहे कुछ भी ना लाओ हमारे लिए, लेकिन बस आप जल्दी से आ जाओ। आनंद बक्शी के ये सीधे सरल बोल और उस पर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का सुरीला और दिल को छू लेने वाला संगीत, गीत को वही ट्रीटमेंट मिला जिसकी उसे ज़रूरत थी। और इस गीत के गायक कलाकारों के नामों का उल्लेख भी बेहद ज़रूरी है। लता जी की आवाज़ तो आप पहचान ही सकते हैं जो कि गीत की मुख्य गायिका हैं, लेकिन उनके अतिरिक्त इस गीत में कुल तीन बाल आवाज़ें भी आपको सुनाई देंगी। क्या आपको पता है ये आवाज़ें किन गायिकाओं की है? चलिए हम बता देते हैं। ये आवाज़ें हैं सुलक्षणा पंडित, मीना पतकी, और ईला देसाई की। यह गीत है १९६७ की फ़िल्म 'तक़दीर' का जिसके मुख्य कलाकार थे भारत भूषण, शालिनी, और फ़रिदा जलाल। फ़िल्म का निर्देशन किया था ए. सलाम ने। यह फ़िल्म कोंकणी फ़िल्म 'निर्मोन' का रीमेक था।
फ़िल्म 'तक़दीर' की कहानी कुछ इस तरह की थी कि गोपाल (भारत भूषण) और शारदा (शालिनी) अपने दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहते हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी ना होने की वजह से गोपाल के मन में विदेश जाकर नौकरी करने का ख़याल आता है। जिस नाव में वो सफ़र कर रहे होते हैं वो तूफ़ानी समुंदर में डूब जाती है और वो कभी घर नहीं लौटता। इसी सिचुयशन पर वो तीन छोटे बच्चे अपने पिता के इंतेज़ार में यह गीत गाते हैं। फ़िल्म देखते हुए आपकी आँखें भर आएँगी। यह तो थी बच्चों का अपने पिता के नाम संदेश। इसी तरह से गोपाल और शारदा भी एक दूसरे के ग़म का इज़हार फ़िल्म में "जब जब बहार आई और फूल मुस्कुराए, मुझे तुम याद आए" गीत के ज़रिए करते हैं। बताने की आवश्यकता नहीं कि यह गीत इस फ़िल्म का सब से मक़बूल गीत रहा है। दोस्तों, क्योंकि आज के प्रस्तुत गीत "पप्पा जल्दी आ जाना" में सुलक्षणा पंडित की आवाज़ शामिल है और यह उनका गाया पहला फ़िल्मी गीत था, तो चलिए उन्ही की ज़ुबानी जानते हैं इस गीत की रिकार्डिंग् के बारे में जिसका ज़िक्र उन्होने विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में किया था। "मैं उस वक़्त ९ बरस की थी, और मैं जब गा रही थी, मैं लता जी को देख रही थी, और वो इतनी प्यारी लग रही थीं जब वो गा रहीं थीं। उनके सामने ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत हीरोइन भी कुछ नहीं है।" देखा आपने सुलक्षणाजी ने लता जी की ख़ूबसूरती का किस तरह से ज़िक्र किया, आइए अब इस अनोखे गीत को सुनते हैं, अनोखा मैने इसलिए कहा क्योंकि गायिकाओं के इस कॉम्बिनेशन का यह एकमात्र गीत है। और गीत सुनने से पहले हम पूर्वी जी का एक बार फिर से आभार व्यक्त करते हैं ऐसे प्यारे प्यारे गीतों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करवाने के लिए। उम्मीद है आप आगे भी हमारी प्रतियोगिताओं में इसी तरह से सक्रिय भूमिका निभाती रहेंगी।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. कल याद किया जायेगा एक ऐसे संगीतकार को जिन्हें खुद तो बहुत अधिक सफलता नहीं मिली पर उनके सुपुत्र बतौर संगीतकार एक लम्बी पारी खेल चुके हैं.
२. इस फिल्म की नायिका थी जयश्री गाड़कर
३. मुखड़े में शब्द है -"गम".
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी लगतार दो चौके....कमाल कर रहे हैं आप...बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
sardaar malik yaa chitr gupt mein se shaayad koi ho...
:(
hame nahi maaloom...
jay shree gadkar kewal dhaarmik filmo ke liye yaad aa rahi hai....
:(
एक शादी में जाने के कारण कुछ दिनों तक गायब रहा । अभी आते ही कम्प्यूटर खोला है ।
जयश्री गडकर हैं गाडकर नहीं, कृपया नोट करें.
बहुत बहुत धन्यवाद,
"पापा जल्दी आ जाना......" जब पापा टूर के लिए जाते थे..तब तो यह गाना बहुत याद आता ही था....अब पापा कभी लौट कर नहीं आयेंगे, तब भी यह गाना गा कर उन्हें बुलाने का दिल करता है.... काश......!!!!!!!!!!! :( :( ;(