Skip to main content

नन्हा मुन्ना राही हूँ...देश का सिपाही हूँ....बोलो मेरे संग जय हिंद....जय हिंद के नन्हे शहजादे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 262

ज है १४ नवंबर, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की जयंती, जिसे पूरे देश भर में 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है। पं. नेहरु के बच्चों से लगाव इतना ज़्यादा था, बच्चे उन्हे इतने ज़्यादा प्यारे थे कि बच्चे उन्हे प्यार से 'चाचा नेहरु' कहकर बुलाते थे। इसलिए १९६३ में उनकी मृत्यु के बाद आज का यह दिन 'बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है, और आज के दिन सरकार की तरफ़ से बच्चों के विकास के लिए तमाम योजनाओं का शुभारंभ किया जाता है। आज का यह दिन जहाँ एक तरफ़ उस पीढ़ी को समर्पित है जिसे कल इस देश की बागडोर संभालनी है, वहीं दूसरी ओर यह उस नेता को याद करने का भी दिन है जिन्होने इस देश को नींद से जगाकर एक विश्व शक्ति में परिवर्तित करने का ना केवल सपना देखा बल्कि उस सपने को सच करने के लिए कई कारगर क़दम भी उठाए। बच्चों के साथ पंडित जी के अंतरंग लगाव के प्रमाण के तौर पर उनकी बहुत सारी ऐसी तस्वीरें देखी जा सकती है जिनमें वो बच्चों से घिरे हुए हैं। कहा जाता है कि एक बार किसी बच्चे ने उनकी जैकेट में लाल रंग का गुलाब लगा दिया था, और तभी से उनकी यह आदत बन जई अपने जैकेट में लाल गुलाब लगाने की। पंडित जी के सम्मान में National Children's Center को 'जवाहर बाल भवन' का नाम दिया गया है। पंडित जी का हमेशा यह मानना था कि कोई भी देश तभी विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है जब उस देश के बच्चों का सही तरीके से विकास हो, क्योंकि आज का बचपन जैसा होगा, कल की जवानी वैसी ही होगी। जब तक भीत मज़बूत नहीं होगी, तब तक उस पर बनने वाला मकान मज़बूत नहीं हो सकता। तो दोस्तों, इसी 'बाल दिवस' को केन्द्र में रखते हुए इन दिनों हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं बच्चों वाले गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला 'बचपन के दिन भुला ना देना'। आज का यह एपिसोड बच्चों के साथ साथ समर्पित है देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की स्मृति को!

आज जिस गीत को हमने चुना है वह बड़ा ही उपयुक्त है आज के दिन के लिए। जहाँ एक तरफ़ यह गीत बच्चे पर फ़िल्माया गया है और एक बच्ची ने ही गाया है, वहीं दूसरी ओर देश भक्ति की भावना भी कूट कूट कर भरी हुई है इस गाने में। कल के गीत की ही तरह यह गीत भी एक सदाबहार बच्चों वाला गीत है जिसे आज भी हर बच्चा फ़ंक्शन्स में गाता है, हर स्कूल में गूंजते रहते हैं। अपनी तरह का एकमात्र गीत है यह-"नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग जय हिंद जय हिंद जय हिंद"। शांति माथुर की आवाज़ में यह फ़िल्म 'सन ऑफ़ इंडिया' का गीत है। इसी फ़िल्म का और शांति माथुर का ही गाया हुआ एक अन्य गीत "आज की ताज़ा ख़बर" आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन चुके हैं। उस गीत की तरह यह गीत भी साजिद ख़ान पर फ़िल्माया गया था जो कि महबूब ख़ान साहब के बेटे हैं। शांति माथुर और साजिद ख़ान से जुड़ी जितनी भी बातें हम बटोर सके थे हम उसी कड़ी में आप को बता चुके थे। १९६२ में मेहबूब ख़ान द्वारा निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म के दूसरे मुख्य कलाकार थे कमलजीत और सिमी गरेवाल। महबूब साहब को इस फ़िल्म के निर्देशन के लिए उस साल के 'फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार' के लिए नॊमिनेट किया गया था। शक़ील और नौशाद के गीत संगीत गूंजे इस फ़िल्म में। युं तो शक़ील और नौशाद साहब के गानें बड़े ही दूसरे किस्म के होते हैं, लेकिन इस बाल-गीत को जिस तरह की ट्रीटमेंट चाहिए थी, बिल्कुल वैसा कर दिखाया इन दोनों ने। जहाँ एक तरफ़ शब्दों में पूरे जोश के साथ इस देश के सुनहरे भविष्य के सपने हैं, वही दूसरी तरफ़ संगीत भी ऐसा जोशीला लेकिन मासूम कि स्थान, काल, पात्र, हर पक्ष को पूरा पूरा न्याय करे। इस गीत में पंडित नेहरु का सपना भी शामिल है जब शक़ील साहब लिखते हैं कि "नया है ज़माना मेरी नई है डगर, देश को बनाऊँगा मशीनों का नगर, भारत किसी से रहेगा नहीं कम, आगे ही आगे बढ़ाउँगा क़दम"। यही तो था नेहरु जी का सपना! शांति माथुर की आवाज़ में "दाहिने बाएँ दाहिने बाएँ थम" तो जैसे इस गीत का पंच लाइन है। माउथ ऒर्गैन का सुंदर प्रयोग सुनने को मिलता है, इस गीत का रीदम ऐसा है कि इसे स्कूलों में मार्च-पास्ट सॉन्ग के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। दोस्तों, पेश-ए-ख़िदमत है एक और कालजयी बाल गीत, और चलते चलते हिंद युग्म की तरफ़ से चाचा नेहरु को श्रद्धा सुमन!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. ये गीत फिल्माया गया था बेबी सोनिया पर जो आगे चल कर एक मशहूर अभिनेत्री बनी.
२. बोल लिखे साहिर ने.
३. एक अंतरे में शब्द है -"झगडा".

पिछली पहेली का परिणाम -

शरद जी मात्र एक जवाब दूर हैं दूसरी बार विजेता का ताज पहनने से बहुत बहुत बधाई. नीलम जी धन्येवाद....अपने बच्चों की (बाल उधान के) हजारी लगाईये अब यहाँ अगले दस दिनों तक....निर्मला जी आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

बच्चे मन के सच्चे सारी जग के आँख के तारे
फ़िल्म : दो कलियाँ
बेबी सोनिया यानि नीतू सिंह

बच्चे मन के सच्चे
सारी जग के आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे

खुद रूठे, खुद मन जाये, फिर हमजोली बन जाये
झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें
इनकी किसी से बैर नहीं, इनके लिये कोई ग़ैर नहीं
इनका भोलापन मिलता है, सबको बाँह पसारे
बच्चे मन के सच्चे ...

इन्साँ जब तक बच्चा है, तब तक समझो कच्चा है
ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े, मन पर झूठ का मैल चढ़े
क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे, लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
बच्चे मन के सच्चे ...

तन कोमल मन सुन्दर
हैं बच्चे बड़ों से बेहतर
इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं
भाषा की तक़रार नहीं, मज़हब की दीवार नहीं
इनकी नज़रों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे
बच्चे मन के सच्चे ...
सुजॊय जी
नेहरू जी का देहान्त शायद १९६४ में हुआ था १९६३ में नहीं । मैं उस समय दिल्ली में ही था उनकी शवयात्रा भी देखी थी । उसके कुछ दिनों बाद ही फ़िल्म ’संगम’ रिलीज़ हुई थी ।
nirmla.kapila said…
नेहरू जी को बचपन से 10 बार देखा भाखडा डैम उनकी ही देन है जो आज ये क्षेत्र उन के कारण आबाद हुया । अपने कार्यकाल मे वो दस बार नंगल [भाखडा} आये । इस गीत के लिये धन्यवाद्
indu said…
baby soniya yani nitu singh
film do kaliyan
vishvjeet,mala sinha
geet'' bchche man ke schche
indu said…
''
hum laye hain tufan se kashti nikal ke is desh ko rkhna mere bchcho sambhal ke'' ki hi tarh ye bhi ek sunder rachna hai
ek baal sulbh geet

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट