कहते हैं कि संगीत एक नशा है, जादू है, जो सर चढ़ के बोलता है. यही नहीं संगीत आत्मा की आवाज है जो इंसान में जोश और जूनून पैदा कर देता है और लोगों तक शान्ति तथा सदभाव पहुँचाने का जरिया भी है. शायद कुछ इसी मकसद से पाकिस्तानी गायकों ने अपने बैंड का नाम ’जूनून’ रखा होगा. खैर उनका मकसद जो भी रहा हो लेकिन उनके संगीत में जूनून नजर आता है जो लोगों में भी एक भाव पैदा कर देता है. ’जूनून’ पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध बैंड है. यूं तो पाकिस्तान के कई बैंड यहाँ हिन्दुस्तान में आये हैं लेकिन ’जूनून’ ने काफी ख्याति पायी है. पिछले दस सालों में जूनून बैंड की पाँच एल्बम आयीं हैं जिनमें से सभी ने धूम मचायी है. यह पाकिस्तान के इतिहास का सबसे प्रसिद्ध बैंड है.
’जूनून’ बैंड के सदस्यों में सलमान अहमद, अली अज़मत और ब्रायन ओ शामिल हैं. ’तलाश’, ’इंकलाब’, आज़ादी, ’परवाज़’ और ’दीवार’ इनकी अब तक की एल्बमें है. जूनून ग्रुप की ’आज़ादी’ एल्बम ने सबसे ज्यादा धूम मचायी थी. इसके प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण जूनून बैंड का सूफी के साथ रॉक का संगम होना है. ’आजादी’ का संगीत व गानों को सुनकर लगता है कि जूनून बैंड पूर्वी संगीत से प्रभावित है. इस एल्बम में तबला मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है. इस एल्बम में जूनून बैंड ने अमेरिका के रिकार्डिंग एवं मिक्सिंग इंजीनियर जोन एली रॊबन्सन की सहायता से स्पेशल इफैक्ट डलवाये. जोन ही इस एल्बम के को-प्रड्यूसर भी हैं.
अल्बम के प्रसिद्ध गीतों में से एक "खुदी को कर" इकबाल की शायरी को रॉक स्टायल में पेश किया गया है. सभी शेरों को अच्छे अन्दाज में पिरोया गया है. शेरों को अपने हिसाब से फेर-बदल करने की वजह से उनकी संवेदना घट गयी है.अन्यथा संगीत अच्छा है. दिल में जोशो-जूनून भरने में बेहद असरदार है ये गीत.
’मेरी आवाज सुनो’ एक कव्वाली है. इसमें तम्बूरे के साथ गिटार का प्रयोग किया गया है यह गाने को कर्णप्रिय बना देता है. संगीत संयोजन गजब का है, और बोल ख़ास ध्यान आकर्षित करते हैं. "तेरे संग ज़माना सारा, खुदा है मेरे संग जालिम....". बेस गिटार का सुन्दर इस्तेमाल अंत में बेहद प्रभावित करता है.
’यार बिना’ भी एक कव्वाली ही है.तबले का जोरदार प्रयोग इस गीत को उत्साही बना देता है. इस गीत को सुनकर मजा आता है. गायकों ने पूरी उर्जा के साथ गीत को निभाया है, कुछ गीत कुछ धुन ऐसी होती है जिनकी प्रतिलिपियाँ आप बरसों से सुनते आ रहे हों, पर फिर भी उनका नशा कभी कम नहीं होता, ये भी कुछ उसी तरह का गीत है.
’सैयो नी’ इस एल्बम का सबसे प्रसिद्ध गीत है जो लोगों द्वारा बहुत पसंद किया गया. इस गीत का सूफीयाना अन्दाज बहुत आकर्षित करता है. एक शेर में एक अलग और उंडा बात कही गयी है, सूफी रॉक में ऐसा परफेक्ट संयोग जहाँ शब्द संगीत और गायिका तीनों का उत्कृष्ट मिलन हुआ हो बहुत कम सुना गया है. बेहतरीन गीत.
"क्या बशर की बिसात,
आज है कल नहीं..." और
"छोड़ मेरी खता,
तू तो पागल नहीं..."
सुनिए -
’मुक गये’ गीत औसत है. कई जगह संगीत आवाज पर हावी हो जाता है जिससे बोल समझने में मशक्कत करनी पड़ती है. शब्द और गायिकी से विरह की पीडा जो सूफी गीतों का एक अहम् घटक भी है, को उभरने की अच्छी कोशिश की गयी है.
अंत में यही कहेंगे के एल्बम सुनने लायक है. बार-बार तो नहीं लेकिन परिवर्तन के लिये अच्छी है. ज्यादातर गीतों का संगीत व लय एक सा लगता है. संगीत कई-कई जगह हावी हो जाता है जिससे गायकों की आवाज दब जाती है. ’सैयो नी’ गीत के लिये इस एल्बम को जरूर सुनना चाहिए.
प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"
"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.
’जूनून’ बैंड के सदस्यों में सलमान अहमद, अली अज़मत और ब्रायन ओ शामिल हैं. ’तलाश’, ’इंकलाब’, आज़ादी, ’परवाज़’ और ’दीवार’ इनकी अब तक की एल्बमें है. जूनून ग्रुप की ’आज़ादी’ एल्बम ने सबसे ज्यादा धूम मचायी थी. इसके प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण जूनून बैंड का सूफी के साथ रॉक का संगम होना है. ’आजादी’ का संगीत व गानों को सुनकर लगता है कि जूनून बैंड पूर्वी संगीत से प्रभावित है. इस एल्बम में तबला मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है. इस एल्बम में जूनून बैंड ने अमेरिका के रिकार्डिंग एवं मिक्सिंग इंजीनियर जोन एली रॊबन्सन की सहायता से स्पेशल इफैक्ट डलवाये. जोन ही इस एल्बम के को-प्रड्यूसर भी हैं.
अल्बम के प्रसिद्ध गीतों में से एक "खुदी को कर" इकबाल की शायरी को रॉक स्टायल में पेश किया गया है. सभी शेरों को अच्छे अन्दाज में पिरोया गया है. शेरों को अपने हिसाब से फेर-बदल करने की वजह से उनकी संवेदना घट गयी है.अन्यथा संगीत अच्छा है. दिल में जोशो-जूनून भरने में बेहद असरदार है ये गीत.
’मेरी आवाज सुनो’ एक कव्वाली है. इसमें तम्बूरे के साथ गिटार का प्रयोग किया गया है यह गाने को कर्णप्रिय बना देता है. संगीत संयोजन गजब का है, और बोल ख़ास ध्यान आकर्षित करते हैं. "तेरे संग ज़माना सारा, खुदा है मेरे संग जालिम....". बेस गिटार का सुन्दर इस्तेमाल अंत में बेहद प्रभावित करता है.
’यार बिना’ भी एक कव्वाली ही है.तबले का जोरदार प्रयोग इस गीत को उत्साही बना देता है. इस गीत को सुनकर मजा आता है. गायकों ने पूरी उर्जा के साथ गीत को निभाया है, कुछ गीत कुछ धुन ऐसी होती है जिनकी प्रतिलिपियाँ आप बरसों से सुनते आ रहे हों, पर फिर भी उनका नशा कभी कम नहीं होता, ये भी कुछ उसी तरह का गीत है.
’सैयो नी’ इस एल्बम का सबसे प्रसिद्ध गीत है जो लोगों द्वारा बहुत पसंद किया गया. इस गीत का सूफीयाना अन्दाज बहुत आकर्षित करता है. एक शेर में एक अलग और उंडा बात कही गयी है, सूफी रॉक में ऐसा परफेक्ट संयोग जहाँ शब्द संगीत और गायिका तीनों का उत्कृष्ट मिलन हुआ हो बहुत कम सुना गया है. बेहतरीन गीत.
"क्या बशर की बिसात,
आज है कल नहीं..." और
"छोड़ मेरी खता,
तू तो पागल नहीं..."
सुनिए -
’मुक गये’ गीत औसत है. कई जगह संगीत आवाज पर हावी हो जाता है जिससे बोल समझने में मशक्कत करनी पड़ती है. शब्द और गायिकी से विरह की पीडा जो सूफी गीतों का एक अहम् घटक भी है, को उभरने की अच्छी कोशिश की गयी है.
अंत में यही कहेंगे के एल्बम सुनने लायक है. बार-बार तो नहीं लेकिन परिवर्तन के लिये अच्छी है. ज्यादातर गीतों का संगीत व लय एक सा लगता है. संगीत कई-कई जगह हावी हो जाता है जिससे गायकों की आवाज दब जाती है. ’सैयो नी’ गीत के लिये इस एल्बम को जरूर सुनना चाहिए.
प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"
"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.
Comments
लेकिन..सैयो नी......
कई बार सुना है..
छोड़ मेरी खता...तू तो पागल नही....
बहुत छूती हैं ये लाईनें....
सुंदर ..
ye geet hamesha se pasand raha hai ..bahut dino baad suna...
man to bas khush ho gaya..
aur ye panktiyaan to bas kamal ki hain...
chhod meri khata..
tu to pagal nahi..
ghazab !!