ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 170
दोस्तों, पिछले ९ दिनों से लगातार किशोर दा की आवाज़ में ज़िंदगी के नौ अलग अलग रूपों से गुज़रते हुए आज हम आ पहुँचे हैं 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' शृंखला की अंतिम कड़ी में। जिस तरह से एक मुसाफ़िर निरंतर चलते जाता है, ठीक वैसे ही हम भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सुरीले मुसाफ़िर ही तो हैं, जो हर रोज़ एक नया सुरीला मंज़िल तय करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। जी हाँ, आज इस शृंखला की आख़िरी कड़ी में बातें उस यायावर की जिसकी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा किशोर दा की आवाज़ में ढ़लकर कुछ इस क़दर बयाँ हुआ कि "दिन ने हाथ थाम कर इधर बिठा लिया, रात ने इशारे से उधर बुला लिया, सुबह से शाम से मेरा दोस्ताना, मुसाफ़िर हूँ यारों न घर है न ठिकाना, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना"। यह फ़िल्म 'परिचय' का गीत है। फ़िल्म १८ अक्टुबर सन् १९७२ में प्रदर्शित हुई थी जिसे लिखा व निर्देशित किया था गुलज़ार साहब ने। फ़िल्म की कहानी आधारित थी अंग्रेज़ी फ़िल्म 'द साउंड औफ़ म्युज़िक' पर, जिसका गुलज़ार साहब ने बहुत ही उन्दा भारतीयकरण किया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे जीतेंद्र, जया बच्चन और संजीव कुमार। इस फ़िल्म के गीतों के लिए लता मंगेशकर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गुलज़ार साहब और राहुल देव बर्मन की उन दिनों नयी नयी जोड़ी बनी थी, और इसके बाद तो इस जोड़ी ने एक से एक कामयाब म्युज़िकल फ़िल्में हमें दी।
किशोर कुमार के गाये फ़िल्म 'परिचय' के प्रस्तुत गीत को राहुल देव बर्मन ने अपने विशेष जयमाला कार्यक्रम में बजाया था यह कहते हुए - "दोस्तों, अब मैं अपने एक प्रिय दोस्त के लिए कुछ कहूँगा। गुलज़ार। वो मेरे घर गाना लिखने आता है, 'डिरेक्शन' भी देता है, उसके साथ मेरा बहुत जमता है। लेकिन जब वो गाना लिखने बैठता है तो हमारी दुश्मनी शुरु हो जाती है क्योंकि उसके गीत को समझने के लिए मुझे एक या डेढ़ घंटे लगते हैं और मैं जब उसके धुन बनाता हूँ तो उसे समझने में उन्हे दो दिन लग जाते हैं। २/३ दिन के बाद जब दोनों को एक दूसरे का काम समझ में आ जाता है तो दुश्मनी ख़तम होती है। बहुत दिन पहले फ़िल्म 'परिचय' के समय एक दिन मैं किसी कारण से बहुत दुखी था। गुलज़ार आये और कहा कि 'अगर 'मूड' हो तो यह गाना बना देना'। गाना पढ़ते ही एक मिनट के अंदर मैने धुन बना दिया क्योंकि मैं दुखी था और गाने का 'मूड' भी कुछ ऐसा ही था। दो दिन के अंदर गाना रिकार्ड भी कर लिया।" दोस्तों, हर इंसान यहाँ एक मुसाफ़िर है, जो अपना सफ़र तय कर के एक दिन हमेशा के लिए यहाँ से चला जाता है। ठीक वैसे ही जैसे किशोर दा हम से जुदा हो गये थे। आज किशोर दा के गाये तमाम गानें हर रोज़ हमें उनकी याद दिलाते हैं। उनके गाये तमाम गानें सहारे हैं हम सब के, जो हमारे साथ में हर वक़्त चलते हैं, चाहे ख़ुशी हो या ग़म, चाहे जुदाई हो या मिलन। 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', इस लघु शृंखला के ज़रिये हम ने श्रद्धांजली अर्पित की इस अनूठे हरफ़नमौला फ़नकार को, कला के इस अद्वितीय पुजारी को!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. जन्माष्ठमी पर एक विशेष गीत है ये.
2. आवाज़ है किशोर कुमार की.
3. मुखड़े में शब्द है -"जनम".
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी मुबारक बाद...४ अंक हो गए आपके और आप भी अब मनु जी के बराबर आ गए...हमें लगता है कि अपने तीसरे विजेता के लिए हमें लम्बा इंतज़ार करना पड़ेगा. रोहित जी जोर आजमाइश जारी रखिये....
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
दोस्तों, पिछले ९ दिनों से लगातार किशोर दा की आवाज़ में ज़िंदगी के नौ अलग अलग रूपों से गुज़रते हुए आज हम आ पहुँचे हैं 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' शृंखला की अंतिम कड़ी में। जिस तरह से एक मुसाफ़िर निरंतर चलते जाता है, ठीक वैसे ही हम भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सुरीले मुसाफ़िर ही तो हैं, जो हर रोज़ एक नया सुरीला मंज़िल तय करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। जी हाँ, आज इस शृंखला की आख़िरी कड़ी में बातें उस यायावर की जिसकी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा किशोर दा की आवाज़ में ढ़लकर कुछ इस क़दर बयाँ हुआ कि "दिन ने हाथ थाम कर इधर बिठा लिया, रात ने इशारे से उधर बुला लिया, सुबह से शाम से मेरा दोस्ताना, मुसाफ़िर हूँ यारों न घर है न ठिकाना, मुझे चलते जाना है, बस चलते जाना"। यह फ़िल्म 'परिचय' का गीत है। फ़िल्म १८ अक्टुबर सन् १९७२ में प्रदर्शित हुई थी जिसे लिखा व निर्देशित किया था गुलज़ार साहब ने। फ़िल्म की कहानी आधारित थी अंग्रेज़ी फ़िल्म 'द साउंड औफ़ म्युज़िक' पर, जिसका गुलज़ार साहब ने बहुत ही उन्दा भारतीयकरण किया था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे जीतेंद्र, जया बच्चन और संजीव कुमार। इस फ़िल्म के गीतों के लिए लता मंगेशकर को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गुलज़ार साहब और राहुल देव बर्मन की उन दिनों नयी नयी जोड़ी बनी थी, और इसके बाद तो इस जोड़ी ने एक से एक कामयाब म्युज़िकल फ़िल्में हमें दी।
किशोर कुमार के गाये फ़िल्म 'परिचय' के प्रस्तुत गीत को राहुल देव बर्मन ने अपने विशेष जयमाला कार्यक्रम में बजाया था यह कहते हुए - "दोस्तों, अब मैं अपने एक प्रिय दोस्त के लिए कुछ कहूँगा। गुलज़ार। वो मेरे घर गाना लिखने आता है, 'डिरेक्शन' भी देता है, उसके साथ मेरा बहुत जमता है। लेकिन जब वो गाना लिखने बैठता है तो हमारी दुश्मनी शुरु हो जाती है क्योंकि उसके गीत को समझने के लिए मुझे एक या डेढ़ घंटे लगते हैं और मैं जब उसके धुन बनाता हूँ तो उसे समझने में उन्हे दो दिन लग जाते हैं। २/३ दिन के बाद जब दोनों को एक दूसरे का काम समझ में आ जाता है तो दुश्मनी ख़तम होती है। बहुत दिन पहले फ़िल्म 'परिचय' के समय एक दिन मैं किसी कारण से बहुत दुखी था। गुलज़ार आये और कहा कि 'अगर 'मूड' हो तो यह गाना बना देना'। गाना पढ़ते ही एक मिनट के अंदर मैने धुन बना दिया क्योंकि मैं दुखी था और गाने का 'मूड' भी कुछ ऐसा ही था। दो दिन के अंदर गाना रिकार्ड भी कर लिया।" दोस्तों, हर इंसान यहाँ एक मुसाफ़िर है, जो अपना सफ़र तय कर के एक दिन हमेशा के लिए यहाँ से चला जाता है। ठीक वैसे ही जैसे किशोर दा हम से जुदा हो गये थे। आज किशोर दा के गाये तमाम गानें हर रोज़ हमें उनकी याद दिलाते हैं। उनके गाये तमाम गानें सहारे हैं हम सब के, जो हमारे साथ में हर वक़्त चलते हैं, चाहे ख़ुशी हो या ग़म, चाहे जुदाई हो या मिलन। 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़', इस लघु शृंखला के ज़रिये हम ने श्रद्धांजली अर्पित की इस अनूठे हरफ़नमौला फ़नकार को, कला के इस अद्वितीय पुजारी को!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
1. जन्माष्ठमी पर एक विशेष गीत है ये.
2. आवाज़ है किशोर कुमार की.
3. मुखड़े में शब्द है -"जनम".
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी मुबारक बाद...४ अंक हो गए आपके और आप भी अब मनु जी के बराबर आ गए...हमें लगता है कि अपने तीसरे विजेता के लिए हमें लम्बा इंतज़ार करना पड़ेगा. रोहित जी जोर आजमाइश जारी रखिये....
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अपनी तो हालत बैसी है जैसे " कैद में है बुलबुल सैयाद मुस्कराए, कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए ।
ye bhi ek karan hai ki main der se aati hun, jaldi aao to badi problem ho jaati hai ..KYA KAREIN HAM ??????
purvi s.
mil gaya :)
hey re kanhaiya, kisko kahega tu maiyya...
purvi s.
hey re kanhaiya......
film - chhoti bahu - 1971
purvi s.
aapka intezaar khatam ho chuka hoga aur baichaini bhi.....
itna pyara bhajan, hamne bahut baar suna hai aur pasand bhi karte hain, par yeh aaj hi pata chalaa ki ise kishore da ne gaaya hai... thanx to old is gold :)
purvi s.
itnaa easy answer...
itni der baad mila.....!!!
kaash ham samay se ghar pahunch paate...
:(
अनोनिमस का सही जवाब है प्रेम से बोलो -कृष्ण जन्माष्टमी की जय
सुजॉय जी, मैंने पिछली बार गानोंको दश्कोंमें बाटने की बात नहीं की थी. मैंने तो सिर्फ मेरी पसंद बतायी थी. किसीकी भी भावानाओंको ठेस पहुँचने का प्रयास नहींथा.
पराग