Skip to main content

Posts

Showing posts with the label thumari

बेगम अख्तर की ठुमरी और ग़ज़ल : SWARGOSHTHI – 241 : THUMARI & GAZAL OF BEGAM AKHTAR

स्वरगोष्ठी – 241 में आज   संगीत के शिखर पर – 2 : बेगम अख्तर की ठुमरी और ग़ज़ल विदुषी बेगम अख्तर को उनकी जन्मशती वर्ष-पूर्ति पर सुरीला स्मरण   रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी नई श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का एक बार फिर स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनकी प्रस्तुतियों की चर्चा करेंगे। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व और उनकी कृतियों को प्रस्तुत करेंगे। आज श्रृंखला की दूसरी कड़ी में हमारा विषय है, उपशास्त्रीय संगीत और इस विधा में अत्यन्त लोकप्रिय गायिका विदुषी बेगम अख्तर के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और उनकी गायी राग मिश्र खमाज और काफी की ठुमरी तथा एक ग़ज़ल सुनवाएँगे। श्रृं गार और भक्तिरस से सराबोर ठुमरी और गजल शैली की अप्रतिम गायिका बेगम अख्तर का जन्म 7 अक्तूबर, 19

ठुमरी महफिलों की : SWARGOSHTHI – 212 : THUMARI

स्वरगोष्ठी – 212 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : 10 : ठुमरी ‘कौन गली गयो श्याम...’ और ‘आयो कहाँ से घनश्याम...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की एक और नवीन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धान्तों के अनुकूल जो धाराएँ थीं उन्हें स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। पिछली पिछली दो कड़ियों में हमने भारतीय संगीत की सर्वाधिक लोकप्रिय ‘ठुमरी’ शैली पर चर्चा की थी। आज के अंक में हम आपको बीसवीं श

रंग ठुमरी के : SWARGOSHTHI – 210 : THUMARI

  स्वरगोष्ठी – 210 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : 8 : ठुमरी ‘रस के भरे तोरे नैन...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की एक और नवीन कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धान्तों के अनुकूल जो धाराएँ थीं उन्हें स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। पिछली कड़ी से हमने भारतीय संगीत की सर्वाधिक लोकप्रिय खयाल शैली के अन्तर्गत ‘चतुरंग’ गायकी का सोदाहरण परिचय प्रस्तुत किया था। आज के अंक से हम उपशास्त्रीय संग

‘पिया बिन नाहीं आवत चैन...’ : SWARGOSHTHI – 182 : THUMARI JHINJHOTI

स्वरगोष्ठी – 182 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 1 : ठुमरी झिंझोटी जब सहगल ने उस्ताद अब्दुल करीम खाँ की गायी ठुमरी को अपना स्वर दिया  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला का शीर्षक है- ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’। दरअसल यह श्रृंखला लगभग दो वर्ष पूर्व ‘स्वरगोष्ठी’ में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह भी किया था। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला में थोड़ा परिमार्जन करते हुए हम इसे पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख, चित्र और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम के मिले-जुले रूप में प्रस्तुत होते हैं। आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ इस दूसरे माध्यम से प्रस्तुत होता आया है। इस अंक से हम एक न

राग काफी गाने-बजाने का परिवेश

    ‘ स्वरगोष्ठी – 156 में आज फाल्गुन के रंग राग काफी के संग ‘कैसी करी बरजोरी श्याम, देखो बहियाँ मोरी मरोरी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, पिछली तीन कड़ियों से हम आपसे बसन्त ऋतु के संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। इसके उपरान्त रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से हो के रस-रंग को अभिव्यक्त करने के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। आज के अंक में हम पहले इस राग में एक ठुमरी प्रस्तुत करेंगे, जिसे परवीन सुल्ताना ने स्वर दिया है। इसके साथ ही डॉ. कमला शंकर का गिटार पर बजाया राग काफी की ठुमरी भी सुनेगे। आज की तीसरी प्रस्तुति डॉ. सोमा घोष की आवाज़ में राग काफी का एक टप्पा है।     रा ग काफी, काफी थाट का आश्रय राग है और इसकी जाति है सम्पूर्ण-सम्पूर्ण, अर्थात इस राग के

पारम्परिक ठुमरी भैरवी का मोहक फिल्मी रूप

    स्वरगोष्ठी – 124 में आज भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 4 राग भैरवी की रसभरी ठुमरी- ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’ की यह चौथी कड़ी है और इस कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हम आपसे एक अत्यन्त लोकप्रिय पारम्परिक ठुमरी के फिल्मी स्वरूप पर चर्चा करेंगे। राग भैरवी की पारम्परिक ठुमरी- ‘बाट चलत नई चुनरी रंग डारी श्याम...’ का प्रयोग दो फिल्मों, लड़की (1953) और रानी रूपमती (1959) में किया गया था। आज के अंक में हम आपसे इस ठुमरी के पारम्परिक स्वरूप, फिल्म लड़की में गायिका गीता दत्त की प्रस्तुति और फिल्म के संगीतकार धनीराम की चर्चा करेंगे। इसके साथ ही हम सुप्रसिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वरों में इस ठुमरी का शास्त्रीय और उपशास्त्रीय प्रयोग भी सुनेंगे। 1953 में विख्यात फिल्म निर्माण संस्था ए.वी.एम. की फिल्म ‘लड़की’ का प्रदर्शन हुआ था। यह फिल्म उत्कृष्ठ स्तर के संगीत के