स्वरगोष्ठी – 393 में आज 
पूर्वांग और उत्तरांग राग – 8 : राग आभोगी   
आशा भोसले से फिल्म का एक गीत और विदुषी अश्विनी भिड़े से राग आभोगी सुनिए 
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| अश्विनी भिड़े देशपाण्डे | 
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| आशा भोसले | 
राग आभोगी
 अथवा आभोगी कान्हड़ा को काफी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गान्धार स्वर 
कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इस राग में पंचम और निषाद 
स्वर वर्जित होने से राग की जाति औडव-औडव होती है। वादी स्वर मध्यम और 
संवादी स्वर षडज है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के दूसरे प्रहर अधिक खिलता
 है। यह कर्नाटक संगीत पद्धति का एक मधुर राग है, जिसका प्रचार उत्तर 
भारतीय संगीत पद्धति में अधिक हुआ है। कान्हड़ा का प्रकार होने के कारण 
अवरोह में गान्धार स्वर का वक्र प्रयोग किया जाता है, जैसे; ग 
(कोमल), म, रे, सा। यह स्वर-समूह बार-बार प्रयोग किया जाता है और कोमल 
गान्धार स्वर आन्दोलित होता है। हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव की पुस्तक “राग 
परिचय” के अनुसार राग आभोगी और आभोगी कान्हड़ा में बहुत थोड़ा अन्तर होता है।
 राग आभोगी को आभोगी कान्हड़ा बनाने के लिए ग (कोमल), म, रे, सा, 
स्वर-समूह का प्रयोग किया जाता है, अन्यथा सम्पूर्ण राग के चलन में कोई 
परिवर्तन नहीं आता। कुछ विद्वान इस भेद को नहीं मानते, उनका कहना है कि यह 
भेद करना ‘बाल की खाल निकालना’ है। आभोगी और आभोगी कान्हड़ा दोनों में रे, ग (कोमल), म, ग (कोमल), रे, सा स्वर-समूह प्रयोग होता है। केवल आभोगी कान्हड़ा में कान्हड़ा अंग लाने के लिए ग
 (कोमल), म, रे, सा स्वरों का प्रयोग किया जाता है, किन्तु आभोगी में नहीं 
किया जाता। कुछ विद्वानों का मत है कि आभोगी राग में आन्दोलित कोमल गान्धार
 स्वर से ही कान्हड़ा अंग स्पष्ट हो जाता है, चाहे वक्र कोमल गान्धार स्वर 
अवरोह में लें अथवा न लें। इस राग का चलन तीनों सप्तकों में होता है। यह 
खयाल शैली का राग है, इसमें ठुमरी नहीं गायी जाती। इस राग का आलाप अत्यन्त 
कर्णप्रिय लगता है। राग आभोगी कान्हड़ा के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए
 अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, इस राग में एक मोहक द्रुत खयाल, जिसे स्वर दे 
रही हैं, सुविख्यात गायिका अश्विनी भिड़े देशपाण्डे।   
राग आभोगी कान्हड़ा : “रस बरसत तोरे घर...” : अश्विनी भिड़े देशपाण्डे  
राग
 आभोगी का न्यास स्वर मध्यम और उपन्यास स्वर धैवत होता है। इस राग के 
गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय रात्रि में 11 से 12 बजे के बीच होता 
है। इस राग के बारे में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ और मयूरवीणा के वादक पण्डित 
श्रीकुमार मिश्र बताते हैं कि संगीत-मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के 
मतानुसार अवरोह में जब सां, ध, म, ग (कोमल), रे ,सा स्वरों का प्रयोग किया जाएगा तो यह राग आभोगी होगा। जब इसमें म, ग (कोमल), रे सा के स्थान पर ग
 (कोमल), म, रे, सा स्वरो का प्रयोग करेंगे यह आभोगी कान्हड़ा बन जाता है। 
ये कान्हड़ा अंग के राग हैं। इस राग की प्रकृति शान्त व आत्मनिवेदन की होती 
है। आभोगी के श्रवण से भक्तिभाव की अभिव्यक्ति होगी तथा आभोगी कान्हड़ा के 
श्रवण से मन शान्त हो जाएगा। दोनों ही राग डिप्रेशन और चिन्ताविकृत को दूर 
का रास्ता दिखा कर गहन निद्रा का सुख प्रदान कर सकते हैं। कुछ विद्वान राग 
आभोगी और आभोगी कान्हड़ा में वादी-संवादी स्वरों का अन्तर भी मानते हैं। वे 
राग आभोगी में षडज और मध्यम स्वरों तथा राग आभोगी कान्हड़ा में  मध्यम और 
षडज स्वरों को क्रमशः वादी-संवादी मानते हैं। इस परिवर्तन से राग आभोगी 
पूर्वांग प्रधान और राग आभोगी कान्हड़ा उत्तरांग प्रधान राग होना चाहिए, 
परन्तु यह भेद उचित नहीं मालूम होता। शास्त्र सदैव क्रियात्मक संगीत का 
अनुसरण करता है। जो बातें क्रियात्मक संगीत में होती है, वही शास्त्र में 
शामिल की जाती है। क्रियात्मक संगीत में ग (कोमल), म, रे, सा के 
अतिरिक्त कोई भेद दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए वादी-संवादी के फलस्वरूप 
पूर्वांग-उत्तरांग का भेद न्याय-संगत नहीं है। अब हम आपको राग आभोगी 
कान्हड़ा पर आधारित एक फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं। इस गीत को हमने 1975 में 
प्रदर्शित फिल्म “कागज़ की नाव” से चुना है। गीत में स्वर आशा भोसले का और 
संगीत सपन जगमोहन का है। 
राग आभोगी कान्हड़ा : “ना जइयो रे सौतन घर...” : आशा भोसले : फिल्म – कागज़ की नाव 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 393वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1977 में प्रदर्शित एक 
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको 
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के 
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों 
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष की 
अन्तिम पहेली तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
 पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के 
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की 
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की झलक है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस गायिका के स्वर हैं? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 17 नवम्बर, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
 उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर 
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
 के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 395वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 391वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1955 में प्रदर्शित 
फिल्म “सीमा” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो 
प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – जयजयवन्ती, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – एकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।    
“स्वरगोष्ठी”
 की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही 
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, फीनिक्स, अमेरिका से मुकेश लाडिया, मेरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक 
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर 
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी 
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
 सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
 इसमें भाग ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “पूर्वांग और उत्तरांग राग” की आठवीं कड़ी में आपने राग आभोगी 
अथवा आभोगी कान्हड़ा का परिचय प्राप्त किया। इस राग में आपने विदुषी अश्विनी
 भिड़े देशपाण्डे से द्रुत खयाल की एक रचना का रसास्वादन किया। साथ ही आपने 
इस राग पर आधारित संगीतकार सपन जगमोहन द्वारा संगीतबद्ध फिल्म “कागज़ की 
नाव” का एक गीत आशा भोसले से सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी 
“स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया 
हमें भेजते रहेगे। आज के अंक और श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
 तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि आपका 
कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 
राग आभोगी : SWARGOSHTHI – 393 : RAG AABHOGI : 11 नवम्बर, 2018 


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