स्वरगोष्ठी – 381 में आज 
राग से रोगोपचार – 10 : मध्यरात्रि का राग मालकौंस 
अनेक मानसिक और शारीरिक समस्याओं का निदान है यह राग 
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| पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर | 
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| मोहम्मद रफी | 
राग
 मालकौंस अत्यधिक संवेदनशील तथा गम्भीर आत्म-अभिव्यक्ति का अनुभव प्रदान 
करने वाला राग है। यह मध्यम स्वर प्रधान राग है और रात्रि 12 से 1 बजे के 
बीच अपनी अभिव्यक्ति के प्रभाव से वातावरण को गम्भीर बनाने में सक्षम है। 
इस राग के स्वर-भाव से युक्त संवेदनशील व गम्भीर नाद की परमाणु ऊर्जा अनेक 
मानसिक और शारीरिक समस्याओं के निदान में सक्षम सिद्ध हो सकती है। 
वायोकेमिकल प्रासेस के असन्तुलन के कारण उत्पन्न मानसिक विकृतियाँ, 
आनुवांशिक गुणों, अवगुणों की छाप से युक्त सन्तानों के ऊपर उपयुक्त या 
अनुपयुक्त परिस्थितियों के प्रभावानुसार उत्पन्न मानसिक या शारीरिक 
विकृतियाँ, विषाद, क्रोध, चिन्ताविकृति, निद्राभ्रमण, नर्वसनेस, मानसिक 
संघर्ष, नकारात्मक मनोवृत्ति, तनावविकृति, दिवास्वप्न आदि रोगों में राग 
मालकौंस उपयोगी है। इसके साथ ही अनेक मनोदैहिक रोगों के उपचार में भी 
मालकौंस के स्वर सर्वथा उपयोगी हो सकते हैं। अब आप राग मालकौंस की एक 
बन्दिश सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के स्वर में 
सुनिए। 
राग मालकौंस : ‘नन्द के छैला ढीठ लंगरवा...’ : पण्डित दतात्रेय विष्णु पलुस्कर 
राग
 मालकौंस की गणना भैरवी थाट के अन्तर्गत की जाती है। इसमें ऋषभ और पंचम 
स्वर वर्जित होता है। अतः इसकी जाति औड़व-औड़व होती है। राग का वादी स्वर 
मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग मालकौंस में गान्धार, धैवत और निषाद
 स्वर कोमल प्रयोग किये जाते हैं। इस राग का गायन-वादन रात्रि के तीसरे 
प्रहर में सर्वाधिक अनुकूल होता है। इस राग का चलन तीनों सप्तकों में समान 
रूप से किया जाता है। औड़व जाति के इस इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी 
स्वर षडज होता है। राग मालकौंस सागर की भाँति है। विविध नदियों का मानों 
इसमें समागम है। इसके मन्द्र धैवत को षडज मान कर यदि मालकौंस के स्वरों का 
प्रयोग किया जाए तो राग भूपाली का दर्शन होने लगता है। मन्द्र निषाद को जब 
षडज मान कर मालकौंस के स्वरों का प्रयोग किया जाता है तब राग मेघ मल्हार का
 आभास होने लगता है। इसी प्रकार गान्धार स्वर को यदि षडज मान कर प्रयोग 
किया जाए तो राग दुर्गा और मध्यम को षडज मान कर चलने पर राग धानी की झलक 
मिलने लगती है। राग मालकौंस में षडज स्वर आधार है। राग मालकौंस में कोमल 
ऋषभ और पंचम स्वर के न होने से मध्यम के साथ शेष तीनों कोमल स्वर गान्धार, 
धैवत और निषाद के मिलाप से गाम्भीर्य कायम होता है। 
राग
 मालकौंस भैरवी थाट का एक लोकप्रिय राग है। अब हम आपको सुनवाते है, राग 
मालकौंस का एक आकर्षक फिल्मी रूपान्तरण। संगीतकार नौशाद ने फिल्म ‘बैजू 
बावरा’ के लिए एक कालजयी भक्तिगीत रचा था। नौशाद की भक्तिरस प्रधान गीतों 
की रचनात्मक कुशलता के बारे में फिल्म संगीत के इतिहासकार पंकज राग, अपनी 
पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ में लिखते हैं- “नौशाद के संगीत के दो पहलू रहे 
हैं- एक तो शास्त्रीय आधार का सरस, सुगम्य रूपान्तरित लोकसंगीत और दूसरा 
शास्त्रीय आधारित आभिजात्य संगीत जिसमें कभी मुगलिया या लखनऊ की नवाबी 
संस्कृति की खूबसूरत भंगिमाएँ रहती थीं, तो कभी ईश्वर की आराधना करता 
उदात्त भक्ति-संगीत। साहित्य में भक्ति-साहित्य भले ही लोकरंजक और 
लोकसंस्कृति से प्रेरित रहा हो, पर नौशाद के भक्ति-गीतों में शुद्ध, गम्भीर
 शास्त्रीय सुर ही लगे हैं। नौशाद के संगीत की मूल प्रवृत्ति भारतीय 
शास्त्रीय संगीत-परम्परा की तरह ही कलावादी रही है।” फिल्म ‘बैजू बावरा’ के
 भक्तिपरक गीत यदि नौशाद को शिखर तक ले जाते हैं, वहीं गायक मुहम्मद रफी को
 उनके भावपूर्ण गायन के लिए प्रथम श्रेणी के गायकों में शामिल कराते हैं। 
प्रस्तुत है, गीतकार शकील बदायूनी, संगीतकार नौशाद और गायक मुहम्मद रफी 
द्वारा सृजित आस्था, समर्पण और पुकार से युक्त फिल्म ‘बैजू बावरा’ का यह 
गीत। आप इस गीत का आस्वादन करें और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने 
की की अनुमति दें। 
राग मालकौंस : ‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज...’ : मुहम्मद रफी : फिल्म - बैजू बावरा 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 381वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1960 में प्रदर्शित एक 
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको 
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के 
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों 
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 390वें अंक 
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
 के चौथे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के 
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की 
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।  
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस गायक के स्वर है? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 25 अगस्त, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि 
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर 
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
 के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 383वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 379वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1971 में प्रदर्शित 
फिल्म “गुड्डी” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी दो
 प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – मियाँ मल्हार, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – वाणी जयराम।   
“स्वरगोष्ठी” की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; फिनिक्स, अमेरिका से मुकेश लढ़िया, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, मैरिलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया, और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक 
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर 
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी 
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
 सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक भी उत्तर ज्ञात हो तो भी आप
 इसमें भाग ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की दसवीं कड़ी में आपने कुछ 
शारीरिक और मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहयोगी राग मालकौंस का परिचय 
प्राप्त किया। आपने पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर द्वारा प्रस्तुत 
मालकौंस की एक बन्दिश का रसास्वादन किया। साथ ही आपने मोहम्मद रफी के स्वर 
में इस राग पर आधारित एक फिल्मी गीत फिल्म “बैजू बावरा” से सुना। हमें 
विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन 
करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में 
यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली 
श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें  swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
शोध व आलेख : पं. श्रीकुमार मिश्र    
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
 सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग मालकौंस : SWARGOSHTHI – 381 : RAG MALKAUNS : 19 अगस्त, 2018 


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