स्वरगोष्ठी – 374 में आज 
राग से रोगोपचार – 3 : तीसरे प्रहर का राग मधुवन्ती 
चरम सीमा तक पहुँची निराशा और चिन्ताविकृति को दूर करने में सहयोगी है राग मधुवन्ती 
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| पण्डित रविशंकर | 
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| लता मंगेशकर | 
राग मधुवन्ती
 में कोमल गान्धार, तीव्र माध्यम, शुद्ध निषाद, शुद्ध धैवत और शुद्ध ऋषभ का
 प्रयोग होता है। इसके आरोह के स्वर हैं; नि, सा, ग॒, म॑, प, नि, सां और 
अवरोह के स्वर हैं; सां, नि, ध, प,  म॑, ग॒, रे, सा। राग मुल्तानी के कोमल 
ऋषभ और कोमल धैवत स्वरों को शुद्ध स्वरों में परिवर्तित किया जाए तो राग 
मधुवन्ती का दर्शन होता है। इस राग के स्वर; ग॒, म॑, प, ग॒,  व्यक्ति को 
निराशा का अनुभव कराने के पश्चात;  ग॒, रे, सा स्वर उम्मीद का बोध कराते 
हैं। दिन के पूर्वाह्न और मध्याह्न में काफी परिश्रम करने के बाद भी जब 
निराशा दिखाई पड़ती है, मनोबल डगमगाने लगता है, तब मधुवन्ती के स्वर उसे 
दिलासा और सहानुभूति प्रदान करके सही दिशा दिखाते हैं और मनोबल को सशक्त 
करते हैं। इसके गायन और वादन का सटीक समय दिन में 3 बजे से 3-30 बजे तक है।
 इस राग का वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। व्यक्ति का 
डिप्रेशन, चिन्ताविकृति और निराशा जब चरम सीमा पर हो तो राग मधुवन्ती के 
गायन, वादन अथवा श्रवण का सेवन यदि कराया जाए तो अवश्य शान्ति मिलेगी। इस 
राग के स्वर पीड़ित की असामान्य मनःस्थिति रूपी बर्फ को अपनी शीतल आँच से 
धीरे-धीरे पिघला देंगे और उसे शान्ति मिलेगी। उपचार की यह प्रक्रिया कम से 
कम एक माह तक जारी रखें। आइए, अब हम आपको सितार पर बजाया राग मधुवन्ती की 
एक रचना सुनवाते हैं। विश्वविख्यात संगीतज्ञ और सितार वादक पण्डित रविशंकर 
ने इसे प्रस्तुत किया है।   
राग मधुवन्ती : सितार पर आलापचारी और गत : पण्डित रविशंकर 
राग
 मधुवन्ती का सम्बन्ध तोड़ी थाट से मान लिया जाता है। इसमें गान्धार स्वर 
कोमल, मध्यम स्वर तीव्र और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किया जाता है। आरोह में 
ऋषभ और धैवत स्वर वर्जित होता है तथा अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग किये 
जाते हैं। इसलिए इस राग की जाति औड़व-सम्पूर्ण होती है। राग मधुवन्ती का 
वादी स्वर पंचम और संवादी स्वर ऋषभ होता है। इसके गायन और वादन का समय दिन 
के तीसरे प्रहर में माना जाता है। राग मधुवन्ती एक नया राग है, जिसकी रचना 
राग मुल्तानी में ऋषभ और धैवत स्वर को कोमल से शुद्ध करने से हुई है। 
वर्तमान समय में यह राग मुल्तानी की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय है। राग 
मुल्तानी के समान इस राग में भी मन्द्र निषाद स्वर से आगे बढ़ते समय गान्धार
 स्वर पर मध्यम स्वर का कण लेने के बाद ही ऊपर बढ़ते हैं। इस राग के 
वादी-संवादी और गायन-वादन समय में विरोधाभास है। वादी-संवादी की दृष्टि से 
यह उत्तरांग प्रधान राग होना चाहिए, किन्तु गायन समय की दृष्टि से यह 
पूर्वांग प्रधान राग है। राग की रंजकता बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोहात्मक 
स्वरों में कोमल निषाद का अल्प प्रयोग कर लिया जाता है। थाट की दृष्टि यह 
दस थाट में से किसी भी थाट के अनुकूल नहीं है, फिर भी इसे तोड़ी थाट का राग 
मान लिया गया है। दक्षिण भारतीय संगीत प्रणाली में राग मधुवन्ती धर्मावती 
मेल के उपयुक्त है। कुछ विद्वान इसे राग अम्बिका नाम से भी पुकारते हैं। अब
 हम आपको वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म “दिल की राहें” से राग मधुवन्ती पर
 आधारित एक गीत लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। गीतकार नक्श 
लायलपुरी के लिखे इस गीत के संगीतकार मदन मोहन हैं। गीत के आरम्भ में मदन 
मोहन की आवाज़ में गीत की भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई है। आप यह गीत सुनिए
 और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 
राग मधुवन्ती : “रस्म-ए-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे...” : लता मंगेशकर : फिल्म – दिल की राहें 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 374वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको छठे दशक की एक फिल्म से 
रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक 
अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर 
देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का 
उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 380वें अंक की 
‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
 तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के 
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की 
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।  
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की झलक है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस उस्ताद गायक के स्वर है।? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 23 जून, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि 
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली 
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर 
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
 के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 376वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में 
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या 
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी 
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 372वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1971 में प्रदर्शित 
फिल्म “शर्मीली” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी 
दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – पटदीप, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – रूपकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर। 
“स्वरगोष्ठी”
 की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही 
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी
 और सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर 
ई-मेल से ही भेजा करें। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक 
इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये 
प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के 
तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी 
ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की तीसरी कड़ी में आपने कुछ 
शारीरिक और मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहयोगी राग मधुवन्ती का परिचय 
प्राप्त किया और इस राग में पिरोया पंडित रविशंकर के सितार पर आलापचारी और 
एक गत का रसास्वादन किया। इसके साथ ही इसी राग पर आधारित फिल्म “दिल की 
राहें” का एक फिल्मी गीत कोकिलकण्ठी लता मंगेशकर के स्वर में सुना। हमें 
विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन 
करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में 
यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली 
श्रृंखला के लिए यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
शोध व आलेख : पं. श्रीकुमार मिश्र    
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
 सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग मधुवन्ती : SWARGOSHTHI – 374 : RAG MADHUVANTI : 17 जून, 2018 


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