स्वरगोष्ठी – 367 में आज
दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 6 : मारवा थाट 
उस्ताद गायकों से राग मारवा में खयाल और सोहनी में फिल्म संगीत की रचना सुनिए 
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| उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ | 
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| उस्ताद अमीर खाँ | 
आज
 के अंक में हम आपसे ‘मारवा’ थाट के विषय में कुछ चर्चा करते हैं। इस थाट 
में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग, म॑, प, ध, नि । अर्थात ‘मारवा’
 थाट में ऋषभ स्वर कोमल, मध्यम स्वर तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये 
जाते हैं। राग मारवा, ‘मारवा’ थाट का आश्रय राग है, जिसमे ऋषभ कोमल और 
मध्यम तीव्र होता है किन्तु पंचम वर्जित होता है। यह षाड़व-षाड़व जाति का राग
 है। अर्थात आरोह और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग होते हैं। राग मारवा के
 आरोह स्वर हैं,  सा, रे(कोमल), ग, म॑(तीव्र), ध, नि, ध, सां तथा अवरोह के स्वर हैं, सां, नि, ध, म॑(तीव्र), ग, रे(कोमल),
 सा होता है। इसका वादी स्वर ऋषभ तथा संवादी स्वर धैवत होता है। इस राग का 
गायन-वादन दिन के चौथे प्रहर में उपयुक्त माना जाता है। अब हम आपको राग 
मारवा में निबद्ध दो खयाल सुनवा रहे हैं। उस्ताद अमीर खाँ ने इसे प्रस्तुत 
किया है। राग मारवा उदासी भाव का राग होता है। विलम्बित खयाल के बोल हैं- ‘पिया मोरा अनत देश...’ और द्रुत खयाल की बन्दिश है- ‘गुरु बिन ज्ञान न पावे...’।
 इस श्रृंखला में अब तक हमने उस्ताद अमीर खाँ द्वारा प्रस्तुत कई रचनाएँ 
सुनवाई है और आगे भी सुनवाएँगे। लीजिए, इस बार भी राग मारवा की दो रचनाएँ 
उस्ताद अमीर खाँ की आवाज़ में सुनिए। 
राग मारवा : विलम्बित- ‘पिया मोरा...’ और द्रुत खयाल- ‘गुरु बिन ज्ञान...’ : उस्ताद अमीर खाँ 
‘मारवा’
 थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- पूरिया, साजगिरी, 
ललित, सोहनी, भटियार, विभास आदि। राग सोहनी इस थाट का बेहद लोकप्रिय राग 
है। सुप्रसिद्ध मयूरवीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने राग सोहनी के बारे
 में बताया कि राग सोहनी का प्रयोग खयाल और ठुमरी, दोनों प्रकार की गायकी 
में किया जाता है। ठुमरी अंग में इस राग का प्रयोग अधिक होता है। इस राग का
 प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है। पहले प्रकार, औडव-षाड़व जाति के 
अन्तर्गत आरोह में ऋषभ और पंचम तथा अवरोह में पंचम का प्रयोग नहीं किया 
जाता। राग के दूसरे स्वरूप के आरोह में ऋषभ और अवरोह में पंचम का प्रयोग 
नहीं होता। राग सोहनी में उन्हीं स्वरों का प्रयोग होता है, जिनका राग 
पूरिया और मारवा में भी किया जाता है। किन्तु इसके प्रभाव और भावाभिव्यक्ति
 में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। राग सोहनी का वादी स्वर धैवत और संवादी 
स्वर गान्धार होता है। धैवत पीड़ा की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होता है। 
‘नी सां रें (कोमल) सां’ की स्वर संगति से तीव्र पुकार का वातावरण 
निर्मित होता है। संवादी गान्धार कुछ देर के लिए इस उत्तेजना को शान्त कर 
सुकून देता है। वास्तव में वादी और संवादी स्वर राग के प्राणतत्त्व होते 
हैं, जिनसे रागों के भावों का सृजन होता है। रात्रि के तीसरे प्रहर में राग
 सोहनी के भाव अधिक स्पष्ट होते हैं। इस राग में मींड़ एवं गमक को कसे हुए 
ढंग से मध्यलय में प्रस्तुत करने से राग का भाव अधिक मुखरित होता है। यह 
चंचल प्रवृत्ति का राग है। श्रृंगार के विरह पक्ष की सार्थक अनुभूति कराने 
में यह राग समर्थ है। राग सोहनी, कर्नाटक संगीत के राग हंसनन्दी के समतुल्य
 है। यदि राग हंसनन्दी में शुद्ध ऋषभ का प्रयोग किया जाए तो यह ठुमरी अंग 
के राग सोहनी की अनुभूति कराता है। तंत्रवाद्य पर राग मारवा, पूरिया और 
सोहनी का वादन अपेक्षाकृत कम किया जाता है। 
भारतीय
 फिल्मों के इतिहास में 1960 में प्रदर्शित, बेहद महत्त्वाकांक्षी फिल्म- 
‘मुगल-ए-आजम’, एक भव्य कृति थी। इसके निर्माता-निर्देशक के. आसिफ ने फिल्म 
की गुणबत्ता से कोई समझौता नहीं किया था। फिल्म के संगीत के लिए उन्होने 
पहले गोविन्द राम और फिर अनिल विश्वास को दायित्व दिया, परन्तु 
फिल्म-निर्माण में लगने वाले सम्भावित अधिक समय के कारण बात बनी नहीं। 
अन्ततः संगीतकार नौशाद तैयार हुए। नौशाद ने फिल्म में मुगल-सल्तनत के वैभव 
को उभारने के लिए तत्कालीन दरबारी संगीत की झलक दिखाने का हर सम्भव प्रयत्न
 किया। नौशाद और के. आसिफ ने तय किया कि अकबर के नवरत्न तानसेन की मौजूदगी 
का अनुभव भी फिल्म में कराया जाए। नौशाद की दृष्टि विख्यात गायक उस्ताद बड़े
 गुलाम अली खाँ पर थी, किन्तु फिल्म में गाने के लिए उन्हें मनाना सरल नहीं
 था। पहले तो खाँ साहब ने फिल्म में गाने से साफ मना कर दिया, परन्तु जब 
दबाव बढ़ा तो टालने के इरादे से, एक गीत के लिए 25 हजार रुपये की माँग की। 
खाँ साहब ने सोचा कि एक गीत के लिए इतनी बड़ी धनराशि देने के लिए निर्माता 
तैयार नहीं होंगे। यह उस समय की एक बड़ी धनराशि थी, परन्तु के. आसिफ ने 
तत्काल हामी भर दी। नौशाद ने शकील बदायूनी से प्रसंग के अनुकूल गीत लिखने 
को कहा। गीत तैयार हो जाने पर नौशाद ने खाँ साहब को गीत सौंप दिया। उस्ताद 
बड़े गुलाम अली खाँ ने ठुमरी अंग की गायकी में अधिक प्रयोग किए जाने वाले 
राग सोहनी, दीपचन्दी ताल में निबद्ध कर गीत- ‘प्रेम जोगन बन के...’ 
को रिकार्ड कराया। रिकार्डिंग से पहले खाँ साहब ने वह दृश्य देखने की इच्छा
 भी जताई, जिस पर इस गीत को शामिल करना था। मधुबाला और दिलीप कुमार के उन 
प्रसंगों को देख कर उन्होने गायन में कुछ परिवर्तन भी किये। इस प्रकार 
भारतीय फिल्म-संगीत-इतिहास में राग सोहनी के स्वरों में ढला एक अनूठा गीत 
शामिल हुआ। उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग सोहनी के स्वरों में 
पिरोया यह गीत के. आसिफ को इतना पसन्द आया कि उन्होने खाँ साहब को दोबारा 
25 हजार रुपये भेंट करते हुए एक और गीत गाने का अनुरोध किया। खाँ साहब का 
फिल्म में गाया राग रागेश्री, तीनताल में निबद्ध दूसरा गीत है- ‘शुभ दिन आयो राजदुलारा...’।
 ये दोनों गीत फिल्म संगीत के इतिहास के सर्वाधिक उल्लेखनीय किन्तु सबसे 
खर्चीले गीत सिद्ध हुए। लीजिए, आप उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा राग 
सोहनी के स्वरों में ढला यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम 
देने की अनुमति दीजिए।   
राग सोहनी : ‘प्रेम जोगन बन के...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ : फिल्म – मुगल-ए-आजम
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 367वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बाँग्ला फिल्म से रागबद्ध
 हिन्दी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक 
अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर 
देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का 
उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 370वें अंक की 
‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के
 दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के 
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की 
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।   
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस उस्ताद गायक के स्वर है।? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 5 मई, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, 
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 369वें अंक में प्रकाशित 
करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि
 आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम
 आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 365वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म “बैजू बावरा” 
से एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही
 उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – पूरिया धनाश्री, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – एकताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – उस्ताद अमीर खाँ। 
“स्वरगोष्ठी”
 की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही 
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 सभी प्रतिभागियों से अनुरोध अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही
 भेजा करें। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर 
से हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा 
ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही 
उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप 
इसमें भाग ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर हमारी 
श्रृंखला “दस थाट, बीस राग और बीस गीत” की छठी कड़ी में आपने मारवा थाट का 
परिचय प्राप्त किया और इस थाट के आश्रय राग मारवा में पिरोया दो खयाल 
सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में रसास्वादन किया। इसके साथ ही 
मारवा थाट के जन्य राग सोहनी में निबद्ध फिल्म “मुगल-ए-आजम” का एक फिल्मी 
गीत उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वर में सुना। हमें विश्वास है कि हमारे 
अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी 
प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो
 तो हमें अवश्य लिखें। अगली कड़ी में हम इस श्रृंखला का अगला अंक प्रस्तुत 
करेंगे। हमारी नई श्रृंखला अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका कोई 
सुझाव या अनुरोध हो तो हमें  swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 रेय


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