स्वरगोष्ठी – 360 में आज 
पाँच स्वर के राग – 8 : “मैका पिया बुलावे अपने मन्दिरवा...” 
विदुषी गंगूबाई हंगल से राग कलावती की बन्दिश और लता मंगेशकर व सुरेश वाडकर से फिल्म का गीत सुनिए  
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| विदुषी गंगूबाई हंगल | 
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| सुरेश वाडकर और लता मंगेशकर | 
‘रेडियो
 प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी 
श्रृंखला – “पाँच स्वर के राग” की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब
 संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम आपसे 
भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनमें केवल पाँच 
स्वरों का प्रयोग होता है। भारतीय संगीत में रागों के गायन अथवा वादन की 
प्राचीन परम्परा है। संगीत के सिद्धान्तों के अनुसार राग की रचना स्वरों पर
 आधारित होती है। विद्वानों ने बाईस श्रुतियों में से सात शुद्ध अथवा 
प्राकृत स्वर, चार कोमल स्वर और एक तीव्र स्वर; अर्थात कुल बारह स्वरो में 
से कुछ स्वरों को संयोजित कर रागों की रचना की है। सात शुद्ध स्वर हैं; 
षडज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद। इन स्वरों में से षडज और 
पंचम अचल स्वर माने जाते हैं। शेष में से ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद 
स्वरों के शुद्ध स्वर की श्रुति से नीचे की श्रुति पर कोमल स्वर का स्थान 
होता है। इसी प्रकार शुद्ध मध्यम से ऊपर की श्रुति पर तीव्र मध्यम स्वर का 
स्थान होता है। संगीत के इन्हीं सात स्वरों के संयोजन से रागों का आकार 
ग्रहण होता है। किसी राग की रचना के लिए कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात
 स्वर की आवश्यकता होती है। जिन रागों में केवल पाँच स्वर का प्रयोग होता 
है, उन्हें औड़व जाति, जिन रागों में छः स्वर होते हैं उन्हें षाडव जाति और 
जिनमें सातो स्वर प्रयोग हों उन्हें सम्पूर्ण जाति का राग कहा जाता है। 
रागों की जातियों का वर्गीकरण राग के आरोह और अवरोह में लगने वाले स्वरों 
की संख्या के अनुसार कुल नौ जातियों में किया जाता है। इस श्रृंखला में हम 
आपसे कुछ ऐसे रागों पर चर्चा कर रहे हैं, जिनके आरोह और अवरोह में 
पाँच-पाँच स्वरों का प्रयोग होता है। ऐसे रागों को औड़व-औड़व जाति का राग कहा
 जाता है। श्रृंखला की आठवीं कड़ी में आज हम आपके लिए औड़व-औड़व जाति के राग 
कलावती का परिचय प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही विदुषी गंगूबाई हंगल के 
स्वरों में प्रस्तुत राग कलावती की एक बन्दिश के माध्यम से हम राग के 
शास्त्रीय स्वरूप का दर्शन करा रहे हैं। राग कलावती के स्वरों का फिल्मी 
गीतों में बहुत कम उपयोग किया गया है। राग कलावती के स्वरों पर आधारित एक 
फिल्मी गीत का हमने चयन किया है। आज की कड़ी में हम आपको 1985 में प्रदर्शित
 फिल्म “सुर संगम” से लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का स्वरबद्ध किया एक गीत 
–“मैका पिया बुलावे अपने मन्दिरवा...” लता मंगेशकर और सुरेश वाडकर के स्वर 
में सुनवा रहे हैं। 
आज के
 अंक में हम पाँच स्वरों वाले एक और प्रचलित राग, कलावती पर आपसे चर्चा 
करेंगे और इस राग में दो उदाहरण भी प्रस्तुत करेंगे। पिछले अंक में हमने 
1985 में प्रदर्शित फिल्म “उत्सव” से संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का 
राग विभास पर आधारीर एक गीत प्रस्तुत किया था। आज के अंक में भी हमने 1985 
की ही दूसरी फिल्म “सुर संगम” से एक गीत चुना है। परन्तु इस गीत का राग 
विभास नहीं बल्कि राग कलावती है। फिल्म “सुर संगम” एक महान संगीतज्ञ के 
आदर्श जीवन पर आधारित है। फिल्म में संगीत-शिक्षण की प्राचीन गुरु-शिष्य 
परम्परा को भी रेखांकित किया गया है। एक संगीतज्ञ के जीवन पर केन्द्रित 
होने के कारण लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के लिए गीतों में विभिन्न रागों के 
समावेश की चुनौती थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि उन्होने इस चुनौती को 
स्वीकार किया। उन्होने संगीतज्ञ के केन्द्रीय चरित्र के लिए सुविख्यात युगल
 गायक पण्डित राजन साजन मिश्र बन्धु के बड़े भाई पण्डित राजन मिश्र के स्वर 
का चयन किया। फिल्म के अन्य पुरुष चरित्र के लिए सुरेश वाडकर, स्त्री 
चरित्र के लिए लता मंगेशकर और बाल कलाकार के लिए दक्षिण भारत की गायिका पी.
 सुशीला की आवाज़ को चुना। फिल्म “सुर संगम” से लिया गया आज का गीत राग 
कलावती के स्वरों पर आधारित है। फिल्म में यह गीत संगीतज्ञ की बेटी और उनके
 होने वाले दामाद पर फिल्माया गया है। स्वर दिया है, लता मंगेशकर और सुरेश 
वाडकर ने। गीतकार वसन्त देव और संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं। 
राग कलावती : “मैका पिया बुलावे अपने मन्दिरवा...” : लता मंगेशकर और सुरेश वाडकर : फिल्म – सुर संगम 
कलावती रे म वर्जित, कोमल लेत निषाद, 
मध्यरात्रि में गाइए, प स का है संवाद। 
राग
 कलावती को खमाज थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग में ऋषभ और मध्यम 
स्वर पूर्णतः वर्जित होता है। इसीलिए राग की जाति औड़व-औड़व होती है। राग 
कलावती में निषाद स्वर कोमल प्रयोग किया जाता है और शेष स्वर शुद्ध होते 
हैं। राग का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर धैवत होता है। राग के 
गायन-वादन का उपयुक्त समय रात्रि का दूसरा प्रहर और मध्यरात्रि माना जाता 
है। यह कर्नाटक पद्धति का राग है, जो अब उत्तर भारतीय संगीत में पर्याप्त 
लोकप्रिय राग हो गया है। उत्तर भारतीय संगीत पद्धति के स्वरों के अनुसार 
राग झिंझोटी में ऋषभ और मध्यम स्वर वर्जित कर देने से राग कलावती की रचना 
होती है। आरोह में कोमल निषाद स्वर का वक्र प्रयोग किया जाता है, किन्तु 
अवरोह में सीधा प्रयोग किया जाता है। ग, प, ग, सा, के प्रयोग से राग शंकरा 
का आभास होता है, किन्तु कोमल निषाद और धैवत के दीर्घ प्रयोग से राग कलावती
 का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। राग कलावती का समप्रकृति राग जनसम्मोहिनी 
होता है। राग कलावती का शास्त्रीय स्वरूप समझने के लिए अब हम आपको किराना 
घराने की सुविख्यात गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल के स्वर में इस राग की एक 
रचना प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी सप्ताह 5 मार्च को इस महान गायिका का 106वाँ
 जन्मदिन मनाया गया है। पद्मविभूषण सम्मान से अलंकृत विदुषी गांगूबाई हंगल 
के स्वर में अब आप तीनताल में निबद्ध यह रचना सुनिए और मुझे आज के इस अंक 
को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 
राग कलावती : “बोलन लागी कोयलिया...” : विदुषी गंगूबाई हंगल 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 360वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का
 अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के 
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
 यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
 आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस 
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का 
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना 
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
 भी किया जाएगा।   
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस प्रसिद्ध गायिका की आवाज़ है? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 17 मार्च, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, 
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 362वें
 अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा 
कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच
 बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ 
के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 358वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1985 में प्रदर्शित फिल्म “उत्सव” के एक
 रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही 
उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – विभास, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – सुरेश वाडकर। 
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, राजस्थान से हमारी एक पुरानी पाठक चित्तौड़गढ़, राजस्थान से इन्दुपुरी गोस्वामी, हमारी एक नई पाठक आशा भानप और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी छः प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से 
हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले 
सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर
 ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग
 ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” की आठवीं कड़ी में आपने राग कलावती का परिचय 
प्राप्त किया। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने लिए विदुषी 
गंगूबाई हंगल से एक खयाल रचना का रसास्वादन किया था। साथ ही आपने फिल्म 
“सुर संगम” से राग कलावती के स्वरों में पिरोया एक मधुर गीत लता मंगेशकर और
 सुरेश वाडकर के स्वर में सुना। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी 
“स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया 
हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें 
अवश्य लिखें। अगले अंक में पाँच स्वर के एक अन्य राग पर आपसे चर्चा करेंगे।
 इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका
 कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 


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