स्वरगोष्ठी – 356 में आज 
पाँच स्वर के राग – 4 : “चन्दा रे मोरी पतियाँ ले जा…” 
उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ से राग दुर्गा की बन्दिश तथा मुकेश और लता से श्रृंगाररस का गीत सुनिए  
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| उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ | 
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| फिल्म 'बंजारिन' का पोस्टर | 
आज की
 कड़ी में हम पाँच स्वर के जिस राग की चर्चा कर रहे हैं, उसे राग दुर्गा के 
नाम से पहचाना जाता है। संगीत का परिचय देने वाले ग्रन्थों में राग दुर्गा 
के दो रूप मिलते हैं। इस राग का सर्वाधिक प्रचलित स्वरूप बिलावल थाट के 
अन्तर्गत माना जाता है और इसमें गान्धार और निषाद स्वर वर्जित होता है। राग
 दुर्गा का दूसरा स्वरूप खमाज थाट के अन्तर्गत आता है और इसमें ऋषभ और पंचम
 स्वर वर्जित होता है। आज के अंक में हम बिलावल थाट के राग दुर्गा पर चर्चा
 कर रहे हैं और इसी स्वरूप का उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले आप राग 
दुर्गा के स्वरों पर आधारित एक फिल्मी गीत सुनेंगे। वर्ष 1960 में रतन 
पिक्चर्स के बैनर से जसवन्त झवेरी द्वारा निर्मित और निर्देशित तथा मनहर 
देसाई, कंचन कामिनी और ललिता कुमारी अभिनीत फिल्म “बंजारिन” प्रदर्शित हुई 
थी। टिकट खिड़की पर यह फिल्म बहुत सफल तो नहीं हुई थी, किन्तु फिल्म का 
गीत-संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ था। फिल्म के गीतकार थे पण्डित मधुर और 
संगीतकार थे परदेशी। फिल्म संगीत के इतिहास में चाँद परदेशी अथवा परदेशी एक
 ही व्यक्ति का नाम है। अब इन्हें ‘भूले बिसरे संगीतकार’ के रूप में 
चिह्नित किया जाता है। उन्होने बहुत कम फिल्मों में संगीत दिया है, किन्तु 
जितना भी दिया है, उनमें गज़ब का सुरीलापन है। फिल्म संगीत के इतिहास में 
उनके बारे में नाममात्र की जानकारी ही उपलब्ध है। यहाँ तक कि इस आलेख को 
तैयार करते समय हमें चाँद परदेशी का कोई भी चित्र नहीं मिला। हाँ, उनकी 
संगीतबद्ध फिल्म “बंजारिन” का एक पोस्टर अवश्य मिला, जिसे हम अपने पाठकों के
 लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। चाँद परदेशी ने 1960 से लेकर 1983 के बीच जितनी 
भी फ़िल्मों का संगीत-निर्देशन किया उनमें से लगभग 10 फिल्मों की जानकारी 
उपलब्ध हुई है। शेष फिल्मों के न तो वीडियो उपलब्ध हैं, न पोस्टर या अन्य 
कोई सूत्र। वर्ष 1960 में ‘बंजारिन’, 1964 में ‘खुफिया महल’, 1972 में 
‘बाँकेलाल’, 1973 में ‘परिवर्तन’, 1976 में ‘कितने दूर कितने पास’, 1979 
में ‘वनमानुष’, 1981 में ‘ये कैसा नशा’, 1983 में ‘भाई आखिर भाई होता है’ 
और इसी वर्ष ‘एक बार चले आओ’ चाँद परदेशी के संगीत निर्देशन में बनी 
फिल्मों की जानकारी उपलब्ध है। पाठकों से अनुरोध है कि इस प्रतिभावान 
संगीतकार के बारे में यदि कोई जानकारी हो या दी गई जानकारी में कोई संशोधन 
हो तो हमें अवश्य सूचित करें, ताकि हम अपने पाठको को सही जानकारी उपलब्ध 
करा सकें। आइए, चाँद परदेशी के संगीत निर्देशन में 1960 में प्रदर्शित 
फिल्म “बंजारिन” का यह युगलगीत सुनते हैं, जिसे लता मंगेशकर और मुकेश ने 
स्वर दिया है। यह गीत राग दुर्गा के स्वरों पर आधारित है। 
राग दुर्गा : “चन्दा रे मोरी पतियाँ ले जा...” : लता मंगेशकर और मुकेश : फिल्म – बंजारिन  
थाट बिलावल, ग नि वर्जित, औड़व-औड़व जाति, 
ध रे स्वर संवाद करत, जब गावत गुनिजन रात्रि। 
संगीत
 के ग्रन्थों में दुर्गा नाम से राग के दो प्रकार मिलते हैं। एक का सम्बन्ध
 बिलावल थाट से और दूसरे का सम्बन्ध खमाज थाट से माना जाता है। आजकल बिलावल
 थाट के राग दुर्गा का प्रचलन अधिक है। राग दुर्गा के इन दोनों प्रकार की 
जाति औड़व-औड़व होती है, अर्थात दोनों रूप के आरोह-अवरोह में पाँच-पाँच स्वर 
होते हैं। बिलावल थाट के राग दुर्गा में वादी और संवादी स्वर क्रमशः धैवत 
और ऋषभ होता है तथा इस राग में गान्धार और निषाद वर्जित होता है। जबकि खमाज
 थाट के राग दुर्गा में वादी-संवादी क्रमशः गान्धार और निषाद होता है तथा 
ऋषभ और पंचम स्वर वर्जित होता है। इसके साथ ही खमाज थाट के राग दुर्गा के 
आरोह में शुद्ध निषाद और अवरोह में कोमल निषाद का प्रयोग भी होता है। 
पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे के मतानुसार राग दुर्गा में वादी-संवादी 
क्रमशः मध्यम और षडज होता है। ग्रन्थकार हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव और अन्य 
विद्वान इस विचार से सहमत नहीं हैं। इनके अनुसार राग दुर्गा के समप्रकृति 
राग जलधर केदार में वर्जित स्वर समान होते है। ऐसे में यदि वादी-संवादी 
स्वर भी एक जैसे हो तो दोनों रागों में अन्तर करना कठिन हो जाता है। इसके 
अलावा राग दुर्गा पंचम की अपेक्षा धैवत स्वर अधिक महत्वपूर्ण होता है और 
अन्य किसी राग की छाया आने की सम्भावना नहीं होती। इसके विपरीत मध्यम पर 
न्यास करने से जलधर केदार राग की स्पष्ट छाया आती है। अतः राग दुर्गा के 
वादी और संवादी स्वर क्रमशः धैवत और ऋषभ सर्वाधिक उपयुक्त हैं। यह उत्तरांग
 प्रधान राग है। दक्षिण भारतीय संगीत प्रणाली में राग दुर्गा के समतुल्य 
राग को शुद्ध सावेरी के नाम से जाना जाता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में 
राग दुर्गा का गायन-वादन सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। बिलावल थाट के राग
 दुर्गा के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपको सुविख्यात 
संगीतज्ञ उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ के स्वर में इस राग की एक बन्दिश 
प्रस्तुत कर रहे हैं। तीनताल में निबद्ध इस रचन के बोल हैं –“जय दुर्गे दुर्गति परिहारिणी...”। आप यह खयाल रचना सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 
राग दुर्गा : “जय दुर्गे दुर्गति परिहारिणी...” : उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ 
 संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 356वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक रागबद्ध फिल्मी गीत का 
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के 
लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने आवश्यक हैं।
 यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी
 आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 360वें अंक की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस 
प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018 के प्रथम सत्र का 
विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना 
के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित
 भी किया जाएगा।   
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है? 
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 
3 – इस गीत में किस गायक और गायिका की युगल आवाज़ है? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 10 फरवरी, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, 
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 357वें अंक
 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक 
के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना 
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे 
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 354वीं कड़ी में हमने आपको वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म “बैजू बावरा” 
के एक रागबद्ध फिल्मी गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही
 उत्तर की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – मालकौंस, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुहम्मद रफी। 
“स्वरगोष्ठी” की पहेली प्रतियोगिता में पहली बार भाग लेने वाले मगनलाल गढ़िया
 ने तीनों प्रश्नो के सही उत्तर देकर विजेता बने हैं। हम उनका हार्दिक 
अभिनन्दन करते है। इस पहेली के हमारे अन्य नियमित प्रतिभागी विजेता हैं; 
वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
 उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से 
हार्दिक बधाई। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी हिस्सा ले 
सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर
 ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग
 ले सकते हैं। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर हमारी नई 
श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” के इस अंक में आपने राग दुर्गा का परिचय 
प्राप्त किया। इसके साथ ही राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने लिए उस्ताद 
गुलाम मुस्तफा खाँ के स्वर में राग दुर्गा के एक द्रुत खयाल का रसास्वादन 
कराया। राग दुर्गा के स्वरों का उपयोग करते हुए बहुत कम फिल्मी गीत रचे गए 
हैं। आज आपने फिल्म “बंजारिन” से राग दुर्गा के स्वरों में पिरोया एक चर्चित
 गीत लता मंगेशकर और मुकेश के युगल स्वर में सुना। अगले अंक में पाँच स्वर 
के एक अन्य राग पर आपसे चर्चा करेंगे। इस नई श्रृंखला “पाँच स्वर के राग” 
अथवा आगामी श्रृंखलाओं के लिए यदि आपका कोई सुझाव या फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
 पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र   
 रेडियो प्लेबैक इण्डिया


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