स्वरगोष्ठी – 341 में आज 
फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 8 : ठुमरी पीलू और देश  
दो भिन्न रागों में श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी  - “गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...” 
![]()  | 
| आशा भोसले और मोहम्मद रफी | 
![]()  | 
| इकबाल बानो, उस्ताद अख्तर अली और ज़ाकिर अली खाँ | 
ठुमरी पीलू : ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ : गायिका इकबाल बानो 
ठुमरी पीलू : ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ उस्ताद अख्तर अली और ज़ाकिर अली खाँ  
ठुमरी देश : ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ : आशा भोसले और मोहम्मद रफी : फिल्म – मैं सुहागन हूँ 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 341वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक और फिल्मी ठुमरी गीत का 
अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन में से 
किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक ही 
उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। इस वर्ष के 
अन्तिम अंक के ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, 
उन्हें इस वर्ष के पाँचवें सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – इस ठुमरी रचना का अंश सुन कर बताइए कि आपको किस राग का अनुभव हो रहा है? 
2 – इस ठुमरी गीत में प्रयोग किये गए ताल का नाम बताइए। 
3 – इस ठुमरी में किस गायक की आवाज़ है? 
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 4 नवम्बर, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
 में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
 देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, 
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 343वें अंक में 
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के 
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना 
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे 
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 की 339वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको वर्ष 1938 में प्रदर्शित फिल्म – 
“स्ट्रीट सिंगर” से ली गई ठुमरी का अंश सुनवा कर हमने आपसे तीन में से 
किन्हीं दो प्रश्नों का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – कुन्दनलाल सहगल।  
इस अंक की पहेली प्रतियोगिता में तीनों प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले हमारे प्रतिभागी हैं - चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। इसके साथ ही इस बार हमारे एक नए प्रतिभागी, फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश से विद्याप्रकाश दीक्षित
 ने भी तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये हैं। हम उनका हार्दिक स्वागत करते
 हैं। आशा है कि हमारे अन्य पाठक / श्रोता भी नियमित रूप से साप्ताहिक 
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ का अवलोकन करते रहेंगे और पहेली प्रतियोगिता में भाग 
लेंगे। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से 
हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
मित्रों,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
 श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस आठवीं कड़ी 
में आपने राग पीलू की एक  पारम्परिक ठुमरी को गायिका इक़बाल बानो और उस्ताद 
अख्तर अली तथा ज़ाकिर अली खाँ के स्वर में रसास्वादन किया। इसी ठुमरी के 
फिल्मी रूप का राग देश में गायन मोहम्मद रफी और आशा भोसले के स्वर में 
आनन्द लिया। 
“स्वरगोष्ठी” 338वें अंक की पहेली के बारे टिप्पणी करते हुए हमारे एक पाठक Janardan Murhekar ने लिखा है - "लताजी द्वारा गाये "सौतेला भाई" के इस गीत ने मुझे अरसे से मोहित किया है। कब तक हंसध्वनि राग मे यह गीत बाँधा गया है, ऐसा मै समझता था। कृपया प्रकाश डालें।"
“स्वरगोष्ठी” 338वें अंक की पहेली के बारे टिप्पणी करते हुए हमारे एक पाठक Janardan Murhekar ने लिखा है - "लताजी द्वारा गाये "सौतेला भाई" के इस गीत ने मुझे अरसे से मोहित किया है। कब तक हंसध्वनि राग मे यह गीत बाँधा गया है, ऐसा मै समझता था। कृपया प्रकाश डालें।"
जनार्दन जी से निवेदन है - "संगीत
 के विभिन्न ग्रन्थों और विद्वानों के अनसार राग हंसध्वनि और अड़ाना में 
पर्याप्त अन्तर होता है। मूलतः कर्नाटक पद्यति के राग हंसध्वनि में सभी 
शुद्ध स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इस राग में मध्यम और धैवत स्वरों का प्रयोग 
नहीं होता। राग की जाति औड़व-औड़व है। जबकि राग अड़ाना में गान्धार और धैवत 
स्वर कोमल और दोनों निषाद स्वर का प्रयोग होता है। आरोह में गान्धार वर्जित
 और अवरोह में वक्र प्रयोग होता है। इस राग की जाति षाडव-सम्पूर्ण होती है।
 आशा है, जनार्दन जी सन्तुष्ट हो गए होंगे। "  
आपके अनुरोध पर पुनर्प्रसारित इस श्रृंखला के अगले अंक में भी हम आपसे एक और पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी रूप पर चर्चा करेंगे और शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा करेंगे और सम्बन्धित रागों तथा संगीत शैली में निबद्ध कुछ रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
आपके अनुरोध पर पुनर्प्रसारित इस श्रृंखला के अगले अंक में भी हम आपसे एक और पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी रूप पर चर्चा करेंगे और शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत और रागों पर चर्चा करेंगे और सम्बन्धित रागों तथा संगीत शैली में निबद्ध कुछ रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के लिए विषय, राग, रचना और कलाकार के बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें swargoshthi@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
वाचक स्वर : संज्ञा टण्डन   
आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
 आलेख व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र


Comments