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सुधा मल्होत्रा |
लता
मंगेशकर, अनेक संगीतकारों के साथ-साथ रोशन की भी प्रिय गायिका रही हैं।
इसी प्रकार रोशन भी लता मंगेशकर के प्रिय संगीतकार थे। इस श्रृंखला की
शुरुआती तीन कड़ियों में हमने आपको छठे दशक के आरम्भिक दौर की रोशन के संगीत
निर्देशन में लता मंगेशकर के तीन गीत लगातार सुनवाए हैं। लता मंगेशकर की
पारखी संगीत दृष्टि ने बहुत पहले ही रोशन की प्रतिभा को पहचान लिया था।
रोशन को लता मंगेशकर का साथ हमेशा मिलता रहा। रोशन की शुरुआती दौर की कई
फिल्में व्यावसायिक दृष्टि से असफल हो जाने के बावजूद जब लता मंगेशकर ने
स्वयं अपनी निर्माण संस्था की फिल्म ‘भैरवी’ की घोषणा की तो उस फिल्म के
संगीत निर्देशक रोशन ही थे। रोशन के लिए यह एक ऐसा सम्मान था, जिसको पाने
के लिए उस समय के कई सफल संगीतकार लालायित थे। लता मंगेशकर द्वारा
संगीतकारों के एक बड़े समूह में से किसे चुना जाएगा, इस अटकल का निदान करते
हुए रोशन का चुना जाना वास्तव में यह सिद्ध करता है कि उनको रोशन की संगीत
प्रतिभा पर कितना भरोसा था। 50 के दशक में रोशन ने लता मंगेशकर के स्वर में
अनेक लोकप्रिय गीत स्वरबद्ध किये। इस दशक में रोशन ने पाश्चात्य संगीत,
लोक संगीत और राग आधारित गीतों के साथ-साथ कव्वाली स्वरबद्ध करनी भी शुरू
कर दी थी। आगे चल कर उन्हें कव्वालियों का विशेषज्ञ माना गया था। 1958 में
प्रदर्शित फिल्म ‘अजी बस शुक्रिया’ में लता मंगेशकर के गाये गीतों के
माध्यम से रोशन ने रचनात्मकता के साथ-साथ लोकप्रियता के शिखर को स्पर्श कर
लिया था। इस फिल्म में रोशन का स्वरबद्ध किया गीत
–“सारी सारी रात तेरी याद सताए...”
लोकप्रियता के मानक स्थापित करता है। दशक के अन्त तक आते-आते सफलता रोशन
के कदम चूमने लगी थी। 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘बाबर’ में एक से बढ़ कर एक
राग आधारित गीत शामिल थे। आज के अंक में हमने इसी फिल्म का एक गीत चुना है।
फिल्म ‘बाबर’ में ही रोशन ने मोहम्मद रफी, मन्ना डे, सुधा मल्होत्रा, आशा
भोसले और साथियों की आवाज़ में एक कव्वाली
–“हसीनों के जलवे परेशान रहते...” स्वरबद्ध कर अपनी क्षमता का परिचय भी दिया था। इसी फिल्म में राग शिवरंजनी पर आधारित मोहम्मद रफी की आवाज़ में गीत
–“तुम एक बार मुहब्बत का इम्तिहान तो लो...” अपनी सरल धुन के कारण खूब लोकप्रिय हुआ था। फिल्म ‘बाबर’ में ही गायिका सुधा मलहोत्रा के स्वर में राग खमाज पर आधारित गीत
–“पयाम-ए-इश्क़ मुहब्बत हमें पसन्द नहीं...” और राग यमन का स्पर्श करते गीत
–“सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो...”
शामिल था। सुधा मल्होत्रा ने यह दोनों गीत अत्यन्त भावपूर्ण ढंग से गाया
है। इसी फिल्म में रोशन का साथ गीतकार साहिर लुधियानवी से हुआ थ। आगे चल कर
इस जोड़ी ने अनेक लोकप्रिय गीतों को जन्म दिया था। अब आप साहिर लुधियानवी
का लिखा, राग यमन के स्वरो को आधार बना कर रोशन का स्वरबद्ध किया और सुधा
मल्होत्रा का गाया फिल्म ‘बाबर’ का गीत सुनिए।
राग कल्याण अथवा यमन : “सलाम-ए-हसरत कबूल कर लो...” : सुधा मल्होत्रा : फिल्म – बाबर
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उस्ताद राशिद खाँ |
राग
कल्याण अथवा यमन, कल्याण थाट का ही आश्रय राग है। यह सम्पूर्ण-सम्पूर्ण
जाति का राग है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में सभी सात स्वर प्रयोग होते
हैं। राग में मध्यम स्वर तीव्र और शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते
हैं। राग कल्याण अथवा यमन का वादी स्वर गान्धार और संवादी स्वर निषाद होता
है। इस राग के गायन-वादन का उपयुक्त समय गोधूलि बेला, अर्थात रात्रि के
पहले प्रहर का पूर्वार्द्ध काल होता है। इस राग का प्राचीन नाम कल्याण ही
मिलता है। मुगल काल में राग का नाम यमन प्रचलित हुआ। वर्तमान में इसका
दोनों नाम, कल्याण और यमन, प्रचलित है। यह दोनों नाम एक ही राग के सूचक
हैं, किन्तु जब हम ‘यमन कल्याण’ कहते हैं तो यह एक अन्य राग का सूचक हो
जाता है। राग यमन कल्याण, राग कल्याण अथवा यमन से भिन्न है। इसमें दोनों
मध्यम का प्रयोग होता है, जबकि यमन में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होता
है। राग कल्याण अथवा यमन के चलन में अधिकतर मन्द्र सप्तक के निषाद से आरम्भ
होता है और जब तीव्र मध्यम से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तब पंचम स्वर को
छोड़ देते हैं। राग कल्याण के कुछ प्रचलित प्रकार हैं; पूरिया कल्याण, शुद्ध
कल्याण, जैत कल्याण आदि। राग कल्याण गंभीर प्रकृति का राग है। इसमे
ध्रुपद, खयाल तराना तथा वाद्य संगीत पर मसीतखानी और रजाखानी गतें प्रस्तुत
की जाती हैं। राग की यथार्थ प्रकृति और स्वरूप का उदाहरण देने के लिए अब हम
आपको इस राग की एक श्रृंगारपरक् बन्दिश प्रस्तुत कर रहे हैं। तीनताल में
निबद्ध इस रचना के विश्वविख्यात गायक उस्ताद राशिद खाँ हैं। आप यह बन्दिश
सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग कल्याण अथवा यमन : ‘ऐसो सुगढ़ सुगढ़वा बालमा...’ : उस्ताद राशिद खान
‘स्वरगोष्ठी’
के 318वें अंक की पहेली में आज हम आपको संगीतकार रोशन द्वारा स्वरबद्ध
सातवें दशक के आरम्भिक दौर की एक फिल्म के एक राग आधारित गीत का अंश सुनवा
रहे है। इसे सुन कर आपको तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के उत्तर देने
हैं। 320वें अंक की पहेली के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक
अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष के दूसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – गीत में किस राग का आधार है? हमें राग का नाम लिख भेजिए।
2 – रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है? ताल का नाम लिखिए।
3 – यह किस पार्श्वगायक की आवाज़ है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार 27 मई, 2017 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर,
प्रदेश और देश के नाम के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 320वें अंक में
प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के
बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना
चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे
दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘‘स्वरगोष्ठी’
की 316वीं कड़ी की पहेली में हमने आपको 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘नौबहार’
के एक राग आधारित गीत का एक अंश प्रस्तुत कर आपसे तीन में से दो प्रश्नों
का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है, राग – भीमपलासी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है, ताल – कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है, स्वर – लता मंगेशकर।
इस अंक की पहेली में हमारे नियमित प्रतिभागी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया, जबलपुर से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी
ने प्रश्नों के सही उत्तर दिए हैं और इस सप्ताह के विजेता बने हैं।
उपरोक्त सभी चार प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से
हार्दिक बधाई।
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
श्रृंखला ‘संगीतकार रोशन के गीतों में राग-दर्शन’ के इस अंक में हमने आपके
लिए राग कल्याण अथवा यमन पर आधारित रोशन के एक गीत और राग की शास्त्रीय
संरचना पर चर्चा की और इस राग का एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया। रोशन के
संगीत पर चर्चा के लिए हमने फिल्म संगीत के सुप्रसिद्ध इतिहासकार सुजॉय
चटर्जी के आलेख और लेखक पंकज राग की पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ का सहयोग
लिया है। हम इन दोनों विद्वानों का आभार प्रकट करते हैं। आगामी अंक में हम
भारतीय संगीत जगत के सुविख्यात संगीतकार रोशन के एक अन्य राग आधारित गीत पर
चर्चा करेंगे। हमारी आगामी श्रृंखलाओं के विषय, राग, रचना और कलाकार के
बारे में यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार
को प्रातः 8 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का
स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
रेडियो प्लेबैक इण्डिया
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