स्वरसाधिका लता मंगेशकर को उनके जन्मदिवस पर हार्दिक मंगलकामना  
स्वरगोष्ठी – 237 में आज 
रागों का समय प्रबन्धन – 6 : रात के दूसरे प्रहर के राग 
लता जी के दिव्य स्वर में जयजयवन्ती  
‘मनमोहना बड़े झूठे...’ 
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक 
स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ की
 छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत
 करता हूँ। है। उत्तर भारतीय रागदारी संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक 
विशेषता यह भी है कि संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं
 या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर
 समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग 
बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की 
परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों को गाने-बजाने की एक निर्धारित 
समयावधि होती है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता 
है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन 
मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। 
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दिन के और सूर्यास्त से 
लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर को रात्रि के प्रहर कहे जाते हैं।
 उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग 
रागों का परम्परागत रूप से प्रयोग करते रहे हैं। रागों का यह समय-सिद्धान्त
 हमारे परम्परागत संस्कारों से उपजा है। विभिन्न रागों का वर्गीकरण अलग-अलग
 प्रहर के अनुसार करते हुए आज भी संगीतज्ञ व्यवहार करते हैं। राग भैरव का 
गायन-वादन प्रातःकाल और मालकौंस मध्यरात्रि में ही किया जाता है। कुछ राग 
ऋतु-प्रधान माने जाते हैं और विभिन्न ऋतुओं में ही उनका गायन-वादन किया 
जाता है। इस श्रृंखला में हम विभिन्न प्रहरों में बाँटे गए रागों की चर्चा 
कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में आज हम आपसे छठें प्रहर अर्थात 
रात्रि के दूसरे प्रहर के रागों पर चर्चा करेंगे और इस प्रहर के एक दक्षिण 
भारतीय राग नीलाम्बरी की एक कृति सुविख्यात संगीतज्ञ डॉ. एम. बालमुरली 
कृष्ण के स्वरों में प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही 1955 में प्रदर्शित 
फिल्म ‘सीमा’ से इसी प्रहर के राग जयजयवन्ती पर आधारित एक गीत लता मंगेशकर 
की आवाज़ में उनके जन्मदिन पर प्रस्तुत कर रहे हैं। ![]()  | 
| डॉ. एम.बालमुरली कृष्ण | 
तेरहवीं शताब्दी में सुप्रसिद्ध 
शास्त्रकार शारंगदेव ने अपने चर्चित ग्रन्थ ‘संगीत रत्नाकर’ में प्रत्येक 
वर्ग के रागों के गायन-वादन का समय निर्धारित किया था। आज हम आपसे ऐसे 
रागों पर चर्चा करेंगे जो रात्रि के दूसरे प्रहर में प्रयोग किये जाते हैं।
 इस प्रहर की अवधि रात्रि 9 बजे से लेकर मध्यरात्रि 12 बजे तक होती है। अब 
तक हमने अधवदर्शक स्वर, वादी-संवादी स्वर और पूर्वार्द्ध-उत्तरार्द्ध के 
स्वर के आधार पर रागों के समय निर्धारण की प्रक्रिया पर चर्चा की है। कुछ 
रागों का समय निर्धारण शुद्ध ऋषभ-धैवत और शुद्ध ऋषभ-गान्धार स्वरों के आधार
 पर किया जाता है। आज हम आपसे रात्रि के दूसरे प्रहर के जिन दो रागों पर 
चर्चा कर रहे हैं, उनमें दोनों गान्धार और दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता
 है। पहले आपको राग नीलाम्बरी सुनवाते हैं। यह मूलतः दक्षिण भारतीय संगीत 
पद्धति का राग है, जिसे उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में पण्डित ओंकारनाथ 
ठाकुर ने प्रचलित किया था। इस राग में दोनों गान्धार और दोनों निषाद का 
प्रयोग किया जाता है। आरोह में षडज के साथ कभी-कभी शुद्ध निषाद लगाया जाता 
है। इसी कारण राग नीलाम्बरी को काफी थाट वर्ग में रखा जाता है। आरोह में 
गान्धार और निषाद वर्जित होता है और अवरोह में सभी स्वर प्रयोग होते हैं। 
इसी कारण इस राग की जाति औड़व-सम्पूर्ण होती है। राग का वादी स्वर ऋषभ और 
संवादी स्वर पंचम होता है। आरोह में राग सिन्दूरा की छाया आने की सम्भावना 
रहती है, किन्तु अवरोह में दोनों गान्धार के प्रयोग से यह राग सिन्दूरा से 
अलग हो जाता है। इसी प्रकार धैवत, कोमल निषाद, कोमल गान्धार और ऋषभ की स्वर
 संगति के कारण राग जयजयवन्ती के आभास की सम्भावना रहती है, किन्तु कोमल 
गान्धार के बहुतायत से यह राग जयजयवन्ती से अलग हो जाता है। चूँकि यह 
दक्षिण भारतीय राग है, इसलिए आपको सुनवाने के लिए हमने इस संगीत पद्धति के 
प्रमुख संगीतज्ञ डॉ. एम. बालमुरली कृष्ण का गाया और स्वरबद्ध किया 
कृष्ण-भक्ति से परिपूर्ण राग नीलाम्बरी सुनवाते हैं। 
राग नीलाम्बरी : “बंगारु मुरली श्रृंगार रमणी...” : डॉ. एम. बालमुरली कृष्ण
 
![]()  | 
| लता मंगेशकर | 
राग जयजयवन्ती : “मनमोहना बड़े झूठे, हार के हार नहीं माने...” : लता मंगेशकर : फिल्म सीमा
 
संगीत पहेली 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 237वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको एक बार फिर एक राग आधारित 
फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे हैं। इस गीतांश को सुन कर आपको निम्नलिखित तीन
 में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 240 के 
सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की 
चौथी श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा। 
1 – गीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि इस गीतांश में किस राग का स्पर्श है? 
2 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए। 
3 – क्या आप गायक की आवाज़ को पहचान सकते हैं? यदि हाँ, तो उनका नाम बताइए। 
आप इन तीन में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
 पर ही शनिवार, 3 अक्टूबर 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS 
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते है, किन्तु उसका प्रकाशन अन्तिम तिथि के 
बाद किया जाएगा। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 239वें अंक में प्रकाशित
 करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे
 में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते 
हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए 
COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 
पिछली पहेली के विजेता 
 
‘स्वरगोष्ठी’
 के 235वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको 1957 में प्रदर्शित फिल्म 
‘नरसी भगत’ के एक गीत का अंश सुनवाया था और आपसे तीन में से किसी दो प्रश्न
 का उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग – केदार, दूसरे 
प्रश्न का सही उत्तर है- ताल – तीनताल और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- 
गायक हेमन्त कुमार और गायिका सुधा मल्होत्रा। 
इस
 बार की पहेली में तीनों प्रश्नों का सही उत्तर किसी भी प्रतिभागी ने नहीं 
दिया है। दो सही उत्तर देने वाली प्रतिभागी हैं, वोरहीज़, न्यूजर्सी से डॉ. 
किरीट छाया और जबलपुर से क्षिति तिवारी। दोनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो 
प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। 
अपनी बात 
 
मित्रो,
 ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर 
हमारी लघु श्रृंखला ‘रागों का समय प्रबन्धन’ जारी है। अगले अंक में हम 
रात्रि के तीसरे प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे और आपको कुछ रागबद्ध 
रचनाएँ भी सुनवाएँगे। इस श्रृंखला के लिए या अगली श्रृंखला आप अपनी पसन्द 
के गीत, संगीत और राग की फरमाइश कर सकते हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के विभिन्न 
अंकों के बारे में हमें पाठकों, श्रोताओं और पहेली के प्रतिभागियों की अनेक
 प्रतिक्रियाएँ और सुझाव मिलते हैं। प्राप्त सुझाव और फरमार्इशों के अनुसार
 ही हम अपनी आगामी प्रस्तुतियों का निर्धारण करते हैं। आप भी यदि कोई सुझाव
 देना चाहते हैं तो आपका स्वागत है। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे 
‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। हमें आपकी प्रतीक्षा 
रहेगी। 
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  
 


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