एक गीत सौ कहानियाँ - 57
 
‘फूल तुम्हें भेजा है ख़त में...’
उपन्यासों
 को आधार बना कर बनने वाली फ़िल्मों में 1968 की नूतन और मनीष अभिनीत फ़िल्म 
’सरस्वतीचन्द्र’ एक उल्लेखनीय फ़िल्म थी। गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी की 
इसी शीर्षक से मूल उपन्यास को फ़िल्म के परदे पर उतारा निर्देशक गोविन्द 
सरय्या ने। 19-वीं सदी की सामन्तवाद के पार्श्व पर लिखी इस उपन्यास के 
फ़िल्मी संस्करण को उस वर्ष के राष्ट्रीय और फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कारों में ख़ास 
जगह मिली। जहाँ सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़ी और सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए 
क्रम से नरिमन इरानी और कल्याणजी-आनन्दजी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, वहीं
 फ़िल्मफ़ेअर में सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए अली रज़ा को पुरस्कार मिला। इसके 
अतिरिक्त फ़िल्मफ़ेअर में इस फ़िल्म के कई पक्षों को नामांकन मिले। फ़िल्म में 
इन्दीवर के लिखे गीत और कल्याणजी-आनन्दजी का संगीत वाकई यादगार साबित हुआ 
और फ़िल्म के सभी छह गीत आज तक लोकप्रिय हैं। "चंदन सा बदन चंचल चितवन" के 
दो संसकर्ण सहित अन्य चार गीत हैं "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए", "मैं 
तो भूल चली बाबुल का देस", "हमने अपना सब कुछ खोया" और एकमात्र योगल गीत 
"फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा दिल है"। | Lata, Indeevar & Mukesh | 
आज इस युगल गीत के 
बनने की दिलचस्प कहानी प्रस्तुत है। आज कलाकारों को उनकी कला की 
प्रतिक्रिया फ़ेसबूक, ट्विटर, एस.एम.एस, ई-मेल, वाट्स-ऐप आदि के माध्यम से 
मिल जाते हैं, पर एक ज़माना ऐसा था जब डाक के ज़रिए कलाकारों को ’fan mails' 
 आते थे। ख़तों के ज़रिए लोग अपने चहीते फ़नकारों को अपने दिल की बात, 
तारीफ़ें, शिकायतें पहुँचाते थे। कल्याणजी-आनन्दजी को भी ऐसे ख़त ढेरों मिलते
 थे। इसका एक कारण यह भी था कि लोग जानते थे कि कल्याणजी-आनन्दजी भाई केवल 
नए गायकों को ही नहीं बक्लि अभिनेताओं, निर्देशकों, लेखक-गीतकारों को भी 
मौका दिलवा देते हैं। तो एक बार यूं हुआ कि एक ख़त आया उनके घर जिस पर एक 
सफ़ेद फूल बना हुआ था और एक लिप-स्टिक से सिर्फ़ होंठ बने हुए थे। बस इतना ही
 था, कुछ और नहीं लिखा हुआ था सिवार "To Dear" के। कल्याणजी और आनन्दजी ने 
जब यह ख़त देखा तो दुविधा में पड़ गए कि यह प्रेम-पत्र भला किसके लिए आया है!
 इन्होंने इन्दीवर जी को यह ख़त दिखाया और कहा कि देखो ऐसे-ऐसे ख़त अब आने 
लगे हैं! इन्दीवर जी बोले कि "यह कौन है, होगी तो कोई लड़की, ये होंठ भी तो 
छोटे हैं तो लड़की की ही होगी"। उन्होंने पूछा कि किसके नाम पे आया है। 
आनन्दजी मज़ा लेते हुए कहा कि "To Dear" के नाम से आया है, आप अपना नाम लिख 
लो, मैं अपने नाम पे लिख लूँ या कल्याणजी भाई के नाम पे लिख देता हूँ। 
इन्दीवर जी बोले कि "इस पर तो गाना बन सकता है, फूल तुम्हें भेजा है ख़त में
 फूल नहीं मेरा दिल है, वाह वाह वाह वाह, अरे वाह वाह करो तुम!" आनन्दजी 
भाई ने कहा "और यह लिपस्टिक?" "भाड में जाए लिप-स्टिक, इसको आगे बढ़ाते 
हैं", इन्दीवर जी का जवाब था। और इस तरह से उन्होंने यह गाना पूरा लिख 
डाला।
| Kalyanji-Anandji | 
गाना पूरा हो जाने 
के बाद बारी आई इसे धुन में पिरोने की। इस बारे में भी आनन्दजी ने अपने एक 
साक्षात्कार में विस्तृत जानकारी दी है। उन्हीं के शब्दों में पढ़िए इस गीत 
के रचना प्रक्रिया की आगे की दास्तान। "अब गाना बनने के बाद हुआ कि प, फ, 
ब, भ, ये आप या तो क्रॉस करके गाइए या लास्ट में आएगा। तो इसके लिए क्या 
करना पड़ता है, ये मुकेश जी गाने वाले थे, तो जब यह गाना पूरा बन गया तो यह 
लगा कि ऐसे सिचुएशन पे जो मंझा हुआ चाहिए, वह है कि भाई कोई सहमा हुआ कोई, 
डिरेक्ट बात भी नहीं की है, "फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं मेरा 
दिल है, प्रियतम मेरे मुझको लिखना क्या यह तुम्हारे क़ाबिल है", मतलब वो भी 
एक इजाज़त ले रही है कि आपके लायक है कि नहीं। यह नहीं कि नहीं नहीं यह तो 
अपना ही हो गया, वो भी पूछ रही है मेरे से। तो ये मुकेश जी हैं तो पहले 
"फूल", "भूल", "भेजा" भी आएगा। मैंने इन्दीवर जी को बोला कि देखिए ऐसा ऐसा 
है। बोले कि तुम बनिये के बनिये ही रहोगे, कभी सुधरोगे नहीं तुम। जिसपे 
गाना हो रहा है, उनको क्या लगेगा? जिसने लिखा है उसको कितना बुरा लगेगा? 
ऐसे ही रहेगा, तो हमने बोला कि चलो ऐसे ही रखते हैं! तो उसको फिर गायकी के 
हिसाब से क्या कर दिया, उसमें ’ब्रेथ इनटेक’ डाल दिया, साँस लेके अगर गाया 
जाए तो "phool" होगा "PHoool" नहीं होगा। "फूल तुम्हें भेजा है..", बड़ा 
डेलिकेट है कि वह फूल है, बहुत नरम वस्तु। तो उस नरम वस्तु को नरम तरीके से
 ही गाया जाए! गीत को सुन कर आप महसूस कर सकते हैं कि कितनी नरमी और नाज़ुक 
तरीक़े से लता जी और मुकेश जी ने "फूल" शब्द को गाया है। तो इस तरह से यह 
गाना बन गया, और यह गाना आज भी लोगों को पसन्द आता है, क्यों आता है यह समझ
 में नहीं आता, यह इन्दीवर जी का कमाल है, लोगों का कमाल है, उस माहौल का 
कमाल है।"
आनन्दजी
 भाई ने सबकी तारीफ़ें की अपने को छोड़ कर। यही पहचान होती है एक सच्चे 
कलाकार की। कल्याणजी-आनन्दजी के करीअर का एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है 
’सरस्वतीचन्द्र’ जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय सम्मान मिला। अभी हाल ही में 
फ़िल्मकार संजय लीला भनसाली ने ’सरस्वतीचन्द्र’ को छोटे परदे पर उतारा है 
जिसमें मुख्य चरित्रों में गौतम रोडे और जेनिफ़र विन्गेट ने अभिनय किया। 
गोविन्द सरय्या की फ़िल्म तो फ़्लॉप रही, और भनसाली का टीवी धारावाहिक भी 
बहुत ख़ास कमाल नहीं दिखा सकी। कमाल की बात बस यह है कि फ़िल्म 
’सरस्वतीचन्द्र’ के गीतों को संगीत रसिक आज तक भूल नहीं पाए हैं और आज भी 
अक्सर रेडियो चैनलों पर सुनाई दे जाता है "फूल तुम्हें भेजा है ख़त में"। ख़त
 शीर्षक पर बनने वाले गीतों में निस्सन्देह यह गीत सर्वोपरि है।  लीजिए अब आप फिल्म 'सरस्वतीचन्द्र' का वही गीत सुनिए। 
फिल्म - सरस्वती चन्द्र : 'फूल तुम्हें भेजा है खत में...' : लता मंगेशकर और मुकेश : कल्याणजी आनंदजी 
खोज, आलेख व प्रस्तुति : सुजॉय चटर्जी 
प्रस्तुति सहयोग: कृष्णमोहन मिश्र 
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