स्वरगोष्ठी – 207 में आज
भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : 5 : खयाल
राग ललित और बसन्त में आलाप, विलम्बित और द्रुत खयाल

भारतीय संगीत में ध्रुपद शैली के बाद जिस शैली का विकास हुआ उसे हम आज की सबसे लोकप्रिय और प्रचलित शैली ‘खयाल’ के नाम से जानते हैं। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक अनेक कारणों से जनरुचि में पर्याप्त बदलाव आ चुका था। संगीत मन्दिरों से निकल कर राजदरबारों में पहले ही स्थापित हो चुका था। ध्रुपद संगीत से प्रभावित होकर सूफी संगीत भी अस्तित्व में आ चुका था। कई विद्वान मानते हैं कि खयाल शैली पर सूफी संगीत का स्पष्ट प्रभाव पड़ा है। ‘खयाल’ शब्द फारसी भाषा का है, जिसका अर्थ ‘कल्पना’ होता है। मध्यकाल में खयाल नामक एक लोक संगीत की शैली भी प्रचलित थी। सम्भव है इस लोक शैली का प्रभाव भी खयाल शैली पर पड़ा हो। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जौनपुर के सुल्तान हुसैन शाह शर्क़ी को खयाल शैली का प्रवर्तक माना जाता है। अठारहवीं शताब्दी में मुहम्मद शाह रँगीले के दरबारी संगीतज्ञ नियामत खाँ ‘सदारंग’ ने इस शैली को शास्त्रीय संगीत के रूप में प्रतिष्ठित किया। खयाल शैली की भाषा ध्रुपद की भाँति संस्कृतनिष्ठ न होकर तत्कालीन प्रचालित ब्रज, पंजाबी, राजस्थानी, अवधी और भोजपुरी से प्रभावित हुई। इसके अलावा खयाल शैली में सदारंग ने आलाप के महत्त्व को कम करते हुए राग-विस्तार अथवा स्वर-विस्तार को अधिक महत्त्व दिया। खयाल शैली में आलाप का अंदाज़ खयाल अंगों के अनुरूप होता है। आगरा घराने के गायक ध्रुपद जैसा आलाप करते हैं। आज हम आपको खयाल शैली में ध्रुपद अंग जैसा आलाप और एक द्रुत खयाल उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ की आवाज़ में सुनवाते हैं।

राग ललित : आलाप और बन्दिश : ‘तड़पत हूँ जैसे जल बिन मीन...’ : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ
खयाल गायकी में स्वर-विस्तार की प्रधानता होने के कारण आलाप सीमित हो जाता है। खयाल के शुरुआती दौर में तानों का प्रयोग नहीं होता था। बाद में जब घरानों का निर्माण हुआ तब गायकी में रंजकता और चमत्कार उत्पन्न करने के लिए तानों का प्रचलन हुआ। खयाल में स्थायी और अन्तरा, दो भाग होते हैं। स्थायी में अपेक्षाकृत शब्द कम होते हैं, जिससे ताल के आवर्तन में बोलतानों के गाने में सुविधा रहे। विलम्बित या बड़ा खयाल प्रायः एकताल, तिलवाड़ा, झूमरा, आड़ा चौताल आदि तालों में और मध्य-द्रुत खयाल या छोटा खयाल तीनताल, एकताल, झपताल, रूपक आदि तालों में निबद्ध होते हैं। पखावज के स्थान पर तबला की संगति की जाती है। अब हम आपके लिए विलम्बित और मध्य-द्रुत खयाल का एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। अपने समय के सुविख्यात संगीतज्ञ उस्ताद अब्दुल करीम खाँ के स्वरों मे राग बसन्त में विलम्बित और द्रुत खयाल प्रस्तुत है।

राग बसन्त : विलम्बित खयाल ‘अब मैंने देखे...’ और द्रुत खयाल ‘फगुआ ब्रज देखन...’ : उस्ताद अब्दुल करीम खाँ
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 207वें अंक की पहेली में आज हम आपको कण्ठ संगीत का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से कोई दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली क्रमांक 210 के सम्पन्न होने तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस वर्ष की पहली श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – भारतीय संगीत की यह कौन सी शैली है? शैली का नाम बताइए।
2 – संगीत के इस अंश में किस राग का आभास हो रहा है? राग का नाम बताइए।
3 – प्रस्तुत रचना किस ताल में निबद्ध है? ताल का नाम बताइए।
आप उपरोक्त तीन में से किसी दो प्रश्न का उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार, 21 फरवरी, 2015 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 209वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत किये गए गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस मंच पर स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ की 205वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको उस्ताद असद अली खाँ का रुद्रवीणा पर बजाये राग आसावरी का अंश सुनवा कर आपसे तीन प्रश्न पूछे थे। आपको इनमे से किसी दो प्रश्न का उत्तर देना था। यह हमारे लिए अत्यन्त सुखद था कि सभी प्रतिभागियों ने तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- वाद्य रुद्रवीणा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- राग आसावरी और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल चौताल। इस बार की पहेली में पूछे गए प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी और पेंसिलवेनिया, अमेरिका से विजया राजकोटिया ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर इन दिनों हमारी लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ जारी है। श्रृंखला के आज के अंक से हमने संगीत के खयाल शैली का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला में आप भी योगदान कर सकते हैं। भारतीय संगीत की किसी शैली पर अपना परिचयात्मक आलेख अपने नाम और परिचय के साथ हमारे ई-मेल पते पर भेज दें। आप अपनी फरमाइश या अपनी पसन्द का आडियो क्लिप भी हमें भेज सकते हैं। अगले रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के नये अंक के साथ हम उपस्थित होंगे। अगले अंक भी हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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