स्वरगोष्ठी – ५६ में आज
‘और राग सब बने बराती दुल्हा राग बसन्त...’
फिल्म – स्त्री : ‘बसन्त है आया रंगीला...’ : गीत – भरत व्यास : संगीत – सी. रामचन्द्र
यह भी एक सुखद संयोग ही है कि भारतीय संगीत के विश्वविख्यात कलासाधक और सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी का जन्म भी बसन्त ऋतु में ४ फरवरी, १९२२ को हुआ था। कल ही संगीत-जगत ने उनका ९१ वाँ जन्म-दिन मनाया है। सात दशक तक भारतीय संगीताकाश पर छाए रहने वाले पण्डित भीमसेन जोशी का गत वर्ष जनवरी में निधन हुआ था। भारतीय संगीत की विविध विधाओं- ध्रुवपद, खयाल, तराना, ठुमरी, भजन, अभंग आदि सभी पर उनका समान अधिकार था। उनकी खरज भरी आवाज़ का श्रोताओं पर जादुई असर होता था। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बढ़त देते थे, उसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है। तानें तो उनके कण्ठ में दासी बन कर विचरती थी। संगीत-जगत के सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित होने के बावजूद स्वयं अपने बारे में बातचीत करने के मामले में वे संकोची रहे। आइए भारत के इस अनमोल रत्न की जयन्ती के अवसर पर उन्हीं के गाये राग बसन्त की एक रचना के माध्यम से उनका स्मरण भी करते हैं, साथ ही ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन भी। लीजिए, आप भी सुनिए- पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में राग बसन्त की तीनताल में निबद्ध यह मनोहारी प्रस्तुति। तबला पर पण्डित नाना मुले और हारमोनियम पर पुरुषोत्तम वलवालकर ने संगति की है।
राग बसन्त : ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ : स्वर – पण्डित भीमसेन जोशी
आइए, अब थोड़ी जानकारी राग बसन्त के बारे में प्राप्त कर ली जाए। राग बसन्त ऋतु प्रधान राग है। बसन्त ऋतु में इसे किसी भी समय गाया-बजाया जा सकता है। अन्य अवसरों पर इस राग को रात्रि के तीसरे प्रहर में ही गाने-बजाने की परम्परा है। पूर्वी थाट के अन्तर्गत आने वाले इस राग की जाति औडव-सम्पूर्ण होती है, आरोह में पाँच स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह के स्वर हैं- स ग म॑ ध (कोमल) नि सं, तथा अवरोह के स्वर हैं- सं नि ध (कोमल) प म॑ ग रे(कोमल) स । इस राग में ललित अंग से दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ और पंचम स्वर वर्जित है। राग बसन्त का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। कभी-कभी संवादी स्वर मध्यम का प्रयोग भी होता है। यह एक प्राचीन राग है। ‘रागमाला’ में इसे हिंडोल का पुत्र कहा गया है। आइए अब हम सुनते हैं, सारंगी पर राग बसन्त। वादक हैं सुप्रसिद्ध सारंगी-नवाज़ उस्ताद सुल्तान खाँ, जिनका गत नवम्बर में निधन हो गया था, और इनके साथ तबला संगति की है, बेहद लोकप्रिय उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने।
और अब आज की इस गोष्ठी के अन्त में हम आपको एक फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं, जिस पर आधारित होगा आज की पहेली का प्रश्न। पहले आप यह गीत सुनिए-
एक सवाल आपसे
‘स्वरगोष्ठी’ के ५४ वें अंक में हमने आपसे फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ के गीत- ‘पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई...’, के राग के बारे में प्रश्न किया था, जिसका सही उत्तर है- राग अहीर भैरव और सही उत्तर देने वाले हमारे पाठक हैं- लखनऊ के राकेश रमण जी, मीरजापुर, उत्तर प्रदेश के डॉ. पी.के. त्रिपाठी तथा इन्दौर की क्षिति तिवारी। इन सभी पाठकों को रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से बधाई। इसी के साथ डॉ. त्रिपाठी ने पण्डित ओमकारनाथ ठाकुर के गाये ‘वन्देमातरम’ गीत को ऐतिहासिक महत्त्व का गीत कहा। हमारे एक और पाठक त्रिलोचन सिंह ने प्रतिबंधित गीतों की सराहना करते हुए आज़ादी के मतवालों को अपनी श्रद्धांजलि दी है।
झरोखा अगले अंक का
कृष्णमोहन मिश्र
‘और राग सब बने बराती दुल्हा राग बसन्त...’
भारतीय संगीत की मूल अवधारणा भक्ति-रस है। इसके साथ-साथ इस संगीत में समय और ऋतुओं के अनुकूल रागों का भी विशेष महत्त्व होता है। विभिन्न रागों के परम्परागत गायन-वादन में समय और मौसम का सिद्धान्त आज वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरता है। गत सप्ताह ऋतुराज बसन्त ने अपने आगमन की आहट दी है। इस ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त का गायन-वादन अनूठा परिवेश रचता है।
समस्त पाठको-श्रोताओं का अभिनन्दन करते हुए मैं कृष्णमोहन मिश्र, आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में ऋतुराज बसन्त का स्वागत और महान संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनका स्मरण करने उपस्थित हुआ हूँ। हमारे परम्परागत भारतीय संगीत में ऋतु-प्रधान रागों का समृद्ध भण्डार है। छः ऋतुओं में बसन्त और पावस ऋतु, मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। आज के अंक से हम बसन्त ऋतु के रागों पर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं। इस मनभावन ऋतु में कुछ विशेष रागों के गायन-वादन की परम्परा है, जिनमें सर्वप्रमुख राग है- बसन्त। आइए, आज सबसे पहले राग बसन्त पर आधारित एक मोहक फिल्मी गीत की चर्चा से सभा की शुरुआत करते हैं।
हिन्दी सिनेमा के प्रमुख स्तम्भ वी. शान्ताराम ने फिल्म ‘स्त्री’ का निर्माण किया था, जिसके संगीतकार सी. रामचन्द्र ने फिल्म में एक से बढ़ कर एक राग आधारित गीतों की रचना की थी। इन्हीं गीतों में से एक गीत- ‘बसन्त है आया रंगीला...’ भी था, जिसे लता मंगेशकर, आशा भोसले और महेन्द्र कपूर ने स्वर देकर एक श्रेष्ठ सांगीतिक कृति का रूप दे दिया। एक समय में सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच व्यावसायिक के साथ-साथ भावनात्मक सम्बन्ध भी थे, जिससे हिन्दी फिल्म-जगत अनेक कालजयी गीतों से समृद्ध हुआ। परन्तु १९५८ के आसपास दोनों में मतभेद हो गया। फिल्म ‘स्त्री’ में लता मंगेशकर की स्वेच्छा से सी. रामचन्द्र के संगीत में वापसी हुई, किन्तु इस फिल्म में उन्हें पुनः अग्रिम पंक्ति की गायिका का स्थान नहीं मिल सका। इस गीत में भी लता जी की उपस्थिति के बावजूद आशा जी का स्वर अधिक महत्त्वपूर्ण नज़र आता है। आइए, राग बसन्त के स्वरों पर आधारित, ऋतुराज बसन्त का स्वागत करता यह गीत-
हिन्दी सिनेमा के प्रमुख स्तम्भ वी. शान्ताराम ने फिल्म ‘स्त्री’ का निर्माण किया था, जिसके संगीतकार सी. रामचन्द्र ने फिल्म में एक से बढ़ कर एक राग आधारित गीतों की रचना की थी। इन्हीं गीतों में से एक गीत- ‘बसन्त है आया रंगीला...’ भी था, जिसे लता मंगेशकर, आशा भोसले और महेन्द्र कपूर ने स्वर देकर एक श्रेष्ठ सांगीतिक कृति का रूप दे दिया। एक समय में सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच व्यावसायिक के साथ-साथ भावनात्मक सम्बन्ध भी थे, जिससे हिन्दी फिल्म-जगत अनेक कालजयी गीतों से समृद्ध हुआ। परन्तु १९५८ के आसपास दोनों में मतभेद हो गया। फिल्म ‘स्त्री’ में लता मंगेशकर की स्वेच्छा से सी. रामचन्द्र के संगीत में वापसी हुई, किन्तु इस फिल्म में उन्हें पुनः अग्रिम पंक्ति की गायिका का स्थान नहीं मिल सका। इस गीत में भी लता जी की उपस्थिति के बावजूद आशा जी का स्वर अधिक महत्त्वपूर्ण नज़र आता है। आइए, राग बसन्त के स्वरों पर आधारित, ऋतुराज बसन्त का स्वागत करता यह गीत-
फिल्म – स्त्री : ‘बसन्त है आया रंगीला...’ : गीत – भरत व्यास : संगीत – सी. रामचन्द्र
यह भी एक सुखद संयोग ही है कि भारतीय संगीत के विश्वविख्यात कलासाधक और सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी का जन्म भी बसन्त ऋतु में ४ फरवरी, १९२२ को हुआ था। कल ही संगीत-जगत ने उनका ९१ वाँ जन्म-दिन मनाया है। सात दशक तक भारतीय संगीताकाश पर छाए रहने वाले पण्डित भीमसेन जोशी का गत वर्ष जनवरी में निधन हुआ था। भारतीय संगीत की विविध विधाओं- ध्रुवपद, खयाल, तराना, ठुमरी, भजन, अभंग आदि सभी पर उनका समान अधिकार था। उनकी खरज भरी आवाज़ का श्रोताओं पर जादुई असर होता था। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बढ़त देते थे, उसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है। तानें तो उनके कण्ठ में दासी बन कर विचरती थी। संगीत-जगत के सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित होने के बावजूद स्वयं अपने बारे में बातचीत करने के मामले में वे संकोची रहे। आइए भारत के इस अनमोल रत्न की जयन्ती के अवसर पर उन्हीं के गाये राग बसन्त की एक रचना के माध्यम से उनका स्मरण भी करते हैं, साथ ही ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन भी। लीजिए, आप भी सुनिए- पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में राग बसन्त की तीनताल में निबद्ध यह मनोहारी प्रस्तुति। तबला पर पण्डित नाना मुले और हारमोनियम पर पुरुषोत्तम वलवालकर ने संगति की है।
राग बसन्त : ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ : स्वर – पण्डित भीमसेन जोशी
आइए, अब थोड़ी जानकारी राग बसन्त के बारे में प्राप्त कर ली जाए। राग बसन्त ऋतु प्रधान राग है। बसन्त ऋतु में इसे किसी भी समय गाया-बजाया जा सकता है। अन्य अवसरों पर इस राग को रात्रि के तीसरे प्रहर में ही गाने-बजाने की परम्परा है। पूर्वी थाट के अन्तर्गत आने वाले इस राग की जाति औडव-सम्पूर्ण होती है, आरोह में पाँच स्वर और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं। आरोह के स्वर हैं- स ग म॑ ध (कोमल) नि सं, तथा अवरोह के स्वर हैं- सं नि ध (कोमल) प म॑ ग रे(कोमल) स । इस राग में ललित अंग से दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। आरोह में ऋषभ और पंचम स्वर वर्जित है। राग बसन्त का वादी स्वर षडज और संवादी स्वर पंचम होता है। कभी-कभी संवादी स्वर मध्यम का प्रयोग भी होता है। यह एक प्राचीन राग है। ‘रागमाला’ में इसे हिंडोल का पुत्र कहा गया है। आइए अब हम सुनते हैं, सारंगी पर राग बसन्त। वादक हैं सुप्रसिद्ध सारंगी-नवाज़ उस्ताद सुल्तान खाँ, जिनका गत नवम्बर में निधन हो गया था, और इनके साथ तबला संगति की है, बेहद लोकप्रिय उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने।
राग बसन्त : सारंगी वादन : वादक – उस्ताद सुल्तान खाँ
और अब आज की इस गोष्ठी के अन्त में हम आपको एक फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं, जिस पर आधारित होगा आज की पहेली का प्रश्न। पहले आप यह गीत सुनिए-
एक सवाल आपसे
मित्रों, अभी आपने यह गीत सुना, जो राग बहार पर आधारित है। आज हमने आपको राग का नाम पहले ही बता दिया है। जाहिर है, आपको राग नहीं पहचानना है। आपको उस फिल्म का नाम बताना है, जिससे यह गीत लिया गया है। और यदि आपने संगीतकार का नाम भी हमें लिख भेजेंगे तो आप अतिरिक्त बोनस अंक के हकदार भी होंगे। अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’के ५८ वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे।
इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज भेज सकते हैं। अगले रविवार को हमारी-आपकी सांगीतिक बैठक पुनः आयोजित होगी।
आपकी बात
इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज भेज सकते हैं। अगले रविवार को हमारी-आपकी सांगीतिक बैठक पुनः आयोजित होगी।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५४ वें अंक में हमने आपसे फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ के गीत- ‘पूछो ना कैसे मैंने रैन बिताई...’, के राग के बारे में प्रश्न किया था, जिसका सही उत्तर है- राग अहीर भैरव और सही उत्तर देने वाले हमारे पाठक हैं- लखनऊ के राकेश रमण जी, मीरजापुर, उत्तर प्रदेश के डॉ. पी.के. त्रिपाठी तथा इन्दौर की क्षिति तिवारी। इन सभी पाठकों को रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से बधाई। इसी के साथ डॉ. त्रिपाठी ने पण्डित ओमकारनाथ ठाकुर के गाये ‘वन्देमातरम’ गीत को ऐतिहासिक महत्त्व का गीत कहा। हमारे एक और पाठक त्रिलोचन सिंह ने प्रतिबंधित गीतों की सराहना करते हुए आज़ादी के मतवालों को अपनी श्रद्धांजलि दी है।
झरोखा अगले अंक का
आज से आरम्भ बसन्त ऋतु के रागों पर आधारित इस श्रृंखला के अगले अंक में हम राग बहार पर चर्चा करेंगे। अगले अंक में भी हम भारतरत्न भीमसेन जोशी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा जारी रखेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० बजे हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
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