ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 567/2010/267
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी का एक बार फिर बहुत बहुत स्वागत है। सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं। कल हमने आपसे वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच के अनबन के बारे में बताएँगे। दोस्तों, राजु भारतन लिखित लता जी की जीवनी को पढ़ने पर पता चला कि इस किताब के लिखने के दौरान भारतन साहब सी. रामचन्द्र से मिले थे और सी. रामचन्द्र ने कहा था, "she wanted to marry me, but i was already married.... all i wanted was some fun, but that was not to be.." इसी किताब में "ऐ मेरे वतन के लोगों" के किस्से के बारे में भी लिखा गया है कि शुरु शुरु में यह एक डुएट गीत के रूप में लिखा गया था जिसे लता और आशा, दोनों को मिलकर गाना था। लेकिन जिस दिन मंगेशकर बहनों को दिल्ली जाना था उस फ़ंक्शन के लिए, आशा जी ने सी. रामचन्द्र को फ़ोन कर यह कह दिया कि दीदी अकेली जा रही हैं और वो इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कहना चाहतीं। इसी गीत को प्रस्तुत करते हुए दिलीप कुमार ने गायिका और गीतकार के नामों की तो घोषणा कर दी लेकिन संगीतकार का नाम बताना भूल गए। इस बात से सी. रामचन्द्र आगबबूला होकर जब बैकस्टेज पर दिलीप साहब को टोका तो दिलीप साहब ने बस इतना ही कहा कि "अन्ना, मुझे नहीं मालूम था कि आपने इस गीत की धुन बनाई है"। राजु भारतन के किताब के अलावा सी. रामचन्द्र की मराठी में लिखी आत्मकथा 'माझ्या जीवांची सरगम' में उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ उस "गायिका" का नाम हटा दिया है लेकिन उस आत्मकथा को पढ़ने वाला हर इंसान समझ सकता है कि इशारा किसकी तरफ़ है। उस आत्मकथा में जिस "सीता" का उन्होंने उल्लेख किया है, वो लता जी के सिवा और कोई नहीं है, यह बात भी हर कोई समझ सकता है। यह तो थी एक तरफ़ की कहानी। उधर लता जी के चाहनेवालों का यह मानना है कि सी. रामचन्द्र ने ही लता को एक बार प्रेम निवेदन किया था जिसे लता ने ठुकरा दिया था। इस अशालीन प्रस्ताव से गुस्से में आकर लता जी ने उनके साथ वही सलूक करना ठीक समझा जो उन्होंने नय्यर साहब और अपनी बहन आशा के साथ किया था। लता जी कभी शादी नहीं करना चाहती थी और ख़ास उस समय तो बिल्कुल नहीं जब उनके कंधों पर उनके पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी थी। दोस्तों, ये सब बातें जो अभी मैंने कहे, वो सब सुनी और पढ़ी हुई बातें हैं। असलियत क्या है यह किसी को भी नहीं मालूम। और हमें भी क्या लेना देना इन महान कलाकारों के व्यक्तिगत जीवन से। हमें तो इसी बात से ख़ुश रहना चाहिए कि क्या क्या नायाब गीत इन दोनों ने हमें दिए हैं।
दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने जिस लता-चितलकर डुएट को चुना है, वह है फ़िल्म 'शगुफ़ा' का। १९५३ में एच. एस. रवैल ने दो ऐसी फ़िल्में निर्देशित की जिनमें संगीत सी. रामचन्द्र का था। इनमें से एक थी 'लहरें' जिसमें किशोर कुमार और श्यामा मुख्य कलाकार थे, और दूसरी फ़िल्म थी 'शगुफ़ा'। यह अभिनेता प्रेम नाथ की ही फ़िल्म थी उन्ही के बैनर पी. एन. फ़िल्म्स तले। प्रेम नाथ और बीना रॊय अभिनीत इस फ़िल्म में राजेन्द्र कृष्ण और सी. रामचन्द्र का फिर एक बार साथ हुआ और फिर एक बार जन्म लिए एक से एक सुमधुर गीत। इस फ़िल्म के अधिकतर गीत लता जी के गाये हुए थे जैसे कि "छीन सके तो छीन ले ख़ुशियाँ मेरे नसीब की, लायेगी रंग एक दिन आह किसी ग़रीब की", लोक शैली में रची "छोटा सा देखो मेरा नादान बालमा", हल्के फुल्के अंदाज़ में बना "ये कैसी ख़ुशी है ये कैसा नशा है, मुझे क्या हुआ है", जुदाई के दर्द में डूबी "घिर घिर आयी कारी बदरिया", और मिलन के रंग में रंगी "ये हवा ये समा चांदनी है जवाँ"। गीता दत्त और साथियों नें गाया "मेरी बहकी बहकी चाल" जिसका भी एक अलग ही मज़ा है। गीता दत्त ने सुंदर के साथ मिलकर एक हास्य क़व्वाली "कैसे खेल मोहब्बत में खेलें सितमगर तेरे लिए" ने एक बार फिर राजेन्द्र कृष्ण को हास्य गीतों के बादशाह के रूप में प्रमाणित किया। और इस फ़िल्म का जो ख़ास गीत रहा वह था लता और चितलकर का गाया आज का प्रस्तुत युगल गीत "तुम मेरी ज़िंदगी में तूफ़ान बनके आये"। ऐसा लगता है जैसे इस गीत के बोल भी लता और चितलकर के तरफ़ ही इशारा कर रहे हों। तो लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है फ़िल्म 'शगुफ़ा' का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचद्र ने 'Academy of Indian Music' नामक संस्था भी चलाई, जहाँ प्रमिला दातार और कविता कृष्णमूर्ति उनकी शिष्याएँ रहीं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -चितलकर और साथियों का गाया एक जोश भरा गीत है ये.
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत खुशी हो रही है देखकर कि नए प्रतिभागियों कमान संभाल रखी है....अमित जी दीपा जी और हिन्दुस्तानी जी को बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी का एक बार फिर बहुत बहुत स्वागत है। सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं। कल हमने आपसे वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच के अनबन के बारे में बताएँगे। दोस्तों, राजु भारतन लिखित लता जी की जीवनी को पढ़ने पर पता चला कि इस किताब के लिखने के दौरान भारतन साहब सी. रामचन्द्र से मिले थे और सी. रामचन्द्र ने कहा था, "she wanted to marry me, but i was already married.... all i wanted was some fun, but that was not to be.." इसी किताब में "ऐ मेरे वतन के लोगों" के किस्से के बारे में भी लिखा गया है कि शुरु शुरु में यह एक डुएट गीत के रूप में लिखा गया था जिसे लता और आशा, दोनों को मिलकर गाना था। लेकिन जिस दिन मंगेशकर बहनों को दिल्ली जाना था उस फ़ंक्शन के लिए, आशा जी ने सी. रामचन्द्र को फ़ोन कर यह कह दिया कि दीदी अकेली जा रही हैं और वो इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कहना चाहतीं। इसी गीत को प्रस्तुत करते हुए दिलीप कुमार ने गायिका और गीतकार के नामों की तो घोषणा कर दी लेकिन संगीतकार का नाम बताना भूल गए। इस बात से सी. रामचन्द्र आगबबूला होकर जब बैकस्टेज पर दिलीप साहब को टोका तो दिलीप साहब ने बस इतना ही कहा कि "अन्ना, मुझे नहीं मालूम था कि आपने इस गीत की धुन बनाई है"। राजु भारतन के किताब के अलावा सी. रामचन्द्र की मराठी में लिखी आत्मकथा 'माझ्या जीवांची सरगम' में उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ उस "गायिका" का नाम हटा दिया है लेकिन उस आत्मकथा को पढ़ने वाला हर इंसान समझ सकता है कि इशारा किसकी तरफ़ है। उस आत्मकथा में जिस "सीता" का उन्होंने उल्लेख किया है, वो लता जी के सिवा और कोई नहीं है, यह बात भी हर कोई समझ सकता है। यह तो थी एक तरफ़ की कहानी। उधर लता जी के चाहनेवालों का यह मानना है कि सी. रामचन्द्र ने ही लता को एक बार प्रेम निवेदन किया था जिसे लता ने ठुकरा दिया था। इस अशालीन प्रस्ताव से गुस्से में आकर लता जी ने उनके साथ वही सलूक करना ठीक समझा जो उन्होंने नय्यर साहब और अपनी बहन आशा के साथ किया था। लता जी कभी शादी नहीं करना चाहती थी और ख़ास उस समय तो बिल्कुल नहीं जब उनके कंधों पर उनके पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी थी। दोस्तों, ये सब बातें जो अभी मैंने कहे, वो सब सुनी और पढ़ी हुई बातें हैं। असलियत क्या है यह किसी को भी नहीं मालूम। और हमें भी क्या लेना देना इन महान कलाकारों के व्यक्तिगत जीवन से। हमें तो इसी बात से ख़ुश रहना चाहिए कि क्या क्या नायाब गीत इन दोनों ने हमें दिए हैं।
दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने जिस लता-चितलकर डुएट को चुना है, वह है फ़िल्म 'शगुफ़ा' का। १९५३ में एच. एस. रवैल ने दो ऐसी फ़िल्में निर्देशित की जिनमें संगीत सी. रामचन्द्र का था। इनमें से एक थी 'लहरें' जिसमें किशोर कुमार और श्यामा मुख्य कलाकार थे, और दूसरी फ़िल्म थी 'शगुफ़ा'। यह अभिनेता प्रेम नाथ की ही फ़िल्म थी उन्ही के बैनर पी. एन. फ़िल्म्स तले। प्रेम नाथ और बीना रॊय अभिनीत इस फ़िल्म में राजेन्द्र कृष्ण और सी. रामचन्द्र का फिर एक बार साथ हुआ और फिर एक बार जन्म लिए एक से एक सुमधुर गीत। इस फ़िल्म के अधिकतर गीत लता जी के गाये हुए थे जैसे कि "छीन सके तो छीन ले ख़ुशियाँ मेरे नसीब की, लायेगी रंग एक दिन आह किसी ग़रीब की", लोक शैली में रची "छोटा सा देखो मेरा नादान बालमा", हल्के फुल्के अंदाज़ में बना "ये कैसी ख़ुशी है ये कैसा नशा है, मुझे क्या हुआ है", जुदाई के दर्द में डूबी "घिर घिर आयी कारी बदरिया", और मिलन के रंग में रंगी "ये हवा ये समा चांदनी है जवाँ"। गीता दत्त और साथियों नें गाया "मेरी बहकी बहकी चाल" जिसका भी एक अलग ही मज़ा है। गीता दत्त ने सुंदर के साथ मिलकर एक हास्य क़व्वाली "कैसे खेल मोहब्बत में खेलें सितमगर तेरे लिए" ने एक बार फिर राजेन्द्र कृष्ण को हास्य गीतों के बादशाह के रूप में प्रमाणित किया। और इस फ़िल्म का जो ख़ास गीत रहा वह था लता और चितलकर का गाया आज का प्रस्तुत युगल गीत "तुम मेरी ज़िंदगी में तूफ़ान बनके आये"। ऐसा लगता है जैसे इस गीत के बोल भी लता और चितलकर के तरफ़ ही इशारा कर रहे हों। तो लीजिए पेश-ए-ख़िदमत है फ़िल्म 'शगुफ़ा' का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि सी. रामचद्र ने 'Academy of Indian Music' नामक संस्था भी चलाई, जहाँ प्रमिला दातार और कविता कृष्णमूर्ति उनकी शिष्याएँ रहीं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -चितलकर और साथियों का गाया एक जोश भरा गीत है ये.
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत खुशी हो रही है देखकर कि नए प्रतिभागियों कमान संभाल रखी है....अमित जी दीपा जी और हिन्दुस्तानी जी को बहुत बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
बहुत ही घाव कर देने वाला गीत बहुत शोर मचा था
कुछ ऐसी ही बात हुसन लाल जी से हुई थी इतना झगडा बड़ा कि लता ने अपनी टेप में उनका गीत तो क्या नाम भी नहीं लिखा भी नहीं लिखा
प्रदीप चट्टर्जी ने बहुत सारे अच्छे गाने लिखे थे. जैसे:
गगन झनझना रहा - नास्तिक
पपीहा रे मेरे पिया से कहियो - किस्मत
अकेली हूँ मैं पिया --सम्बन्ध