ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 514/2010/214
'गीत गड़बड़ी वाले' शृंखला की आज है चौथी कड़ी। पिछले तीन कड़ियों में आपने सुने गायकों द्वारा की हुईं गड़बड़ियाँ। आज हम बात करते हैं एक ऐसी गड़बड़ी की जो किस तरह से हुई यह बता पाना बहुत मुश्किल है। यह गड़बड़ी है किसी युगल गीत में गायक और गायिका के दो अंतरों की लाइनों का आपस में बदल जाना। यानी कि गायक ने कुछ गाया, जिसका गायिका को जवाब देना है। और अगर यह जवाब गायिका दूसरे अंतरें में दे और दूसरे अंतरे में गायक के सवाल का जवाब वो पहले अंतरे में दे, इसको तो हम गड़बड़ई ही कहेंगे ना! ऐसी ही एक गड़बड़ी हुई थी फ़िल्म 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' के एक गीत में। यह फ़िल्मालय की फ़िल्म थी जिसका निर्माण शशधर मुखर्जी ने किया था, राज खोसला इसके निर्देशक थे। ओ. पी. नय्यर द्वारा स्वरबद्ध यह एक आशा-रफ़ी डुएट था "मैं प्यार का राही हूँ"। गीतकार थे राजा मेहन्दी अली ख़ान। अब इस गीत में क्या गड़बड़ी हुई है, यह समझने के लिए गीत के पूरे बोल यहाँ पर लिखना ज़रूरी है। तो पहले इस गीत के बोलों को पढिए, फिर हम बात को आगे बढ़ाते हैं।
मैं प्यार का राही हूँ,
तेरी ज़ुल्फ़ के साये में,
कुछ देर ठहर जाऊँ।
तुम एक मुसाफ़िर हो,
कब छोड़ के चल दोगे,
यह सोच के घबराऊँ।
तेरे बिन जी ना लगे अकेले,
हो सके तो मुझे साथ ले ले,
नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी,
छोड़ कर ज़िंदगी के झमेले,
जब छाये घटा याद करना ज़रा,
सात रंगों की उम्र कहानी।
प्यार की बिजलियाँ मुस्कुरायें,
देखिए आप पर गिर ना जाये,
दिल कहे देखता ही रहूँ मैं,
सामने बैठकर ये अदायें,
ना मैं हूँ नाज़नीं ना मैं हूँ महजबीं,
आप ही की नज़र की दीवानी।
इस गीत के पहले अन्तरे में रफी की पंक्तियाँ हैं, "तेरे बिन जी लगे ना अकेले... नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी छोड़कर ज़िन्दगी के झमेले", जिसके जवाब में आशा गाती हैं, "जब भी छाए घटा याद करना ज़रा सात रंगों की हूँ मैं कहानी"; और फिर दूसरे अन्तरे में रफी गाते हैं, "प्यार की बिजलियाँ मुस्कुराएँ ... दिल कहे देखता ही रहूँ मैं सामने बैठकर ये अदाएँ", जिसके जवाब में आशा की पंक्तियाँ हैं, "ना मैं हूँ नाज़नीं ना मैं हूँ महजबीं"। अगर गीत के भाव, अर्थ और भाव की दृष्टि से देखें तो प्रतीत होता है कि इन दो अंतरों में आशा भोसले की पंकियाँ आपस में बदल गईं हैं। अब गीत लिखते वक़्त राजा मेहन्दी अली ख़ान से ऐसी भूल तो यकीनन असम्भव है, तो फिर ऐसी गड़बड़ी हो कैसे गई। हाँ, यह हो सकता है कि उन दिनों ज़ेरॊक्स की सुविधा या कम्प्युटर प्रिण्ट तो होते नहीं थे, गायकों को अपने गानें ख़ुद ही गीतकार से लेकर लिख लेने पड़ते थे। तो हो सकता है कि किसी ने लिखते वक़्त यह गड़बड़ी कर दी होगी। क्या असल में यह एक गड़बड़ी थी या फिर राजा साहब ने ऐसा ही लिखा था, यह अब हम कभी नहीं जान पाएँगे क्योंकि राजा साहब तो अब हमारे बीच रहे नहीं। शायद यह राज़ एक राज़ बन कर ही रह जाएगी। तो आइए इस गड़बड़ी का किसी को भी दोष दिए बग़ैर इस सुंदर युगल गीत का आनंद उठाएँ।
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार राजा मेहन्दी अली ख़ान फ़िल्मी गीतकार बनने से पहले आकाशवाणी में काम करते थे, जहाँ पर उनके साथियों में से एक थे जाने माने साहित्यिक उपेन्द्रनाथ अश्क़।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०५ /शृंखला ०२
ये धुन है गीत के प्रील्यूड की है-
अतिरिक्त सूत्र - लता की आवाज़ में आपने ये शुरूआती बोल सुने गीत के
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन थे इस लो बजट फिल्म के - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म में थी रेहाना सुल्तान, निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी २ अंक कमा लिए आपने. श्याम कान्त जी दरअसल आपके अमित जी के और बिट्टू जी के जवाब देने का अंदाज़ एक जैसा है इस करण हो सकता है सुजॉय जी ने कुछ शंका व्यक्त की हो, बहरहाल आप जारी रहे, शरद जी सही जवाब १ अंक आपके, और अवध जी एक जवाब रह गया था कम से कम वही दे देते :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'गीत गड़बड़ी वाले' शृंखला की आज है चौथी कड़ी। पिछले तीन कड़ियों में आपने सुने गायकों द्वारा की हुईं गड़बड़ियाँ। आज हम बात करते हैं एक ऐसी गड़बड़ी की जो किस तरह से हुई यह बता पाना बहुत मुश्किल है। यह गड़बड़ी है किसी युगल गीत में गायक और गायिका के दो अंतरों की लाइनों का आपस में बदल जाना। यानी कि गायक ने कुछ गाया, जिसका गायिका को जवाब देना है। और अगर यह जवाब गायिका दूसरे अंतरें में दे और दूसरे अंतरे में गायक के सवाल का जवाब वो पहले अंतरे में दे, इसको तो हम गड़बड़ई ही कहेंगे ना! ऐसी ही एक गड़बड़ी हुई थी फ़िल्म 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' के एक गीत में। यह फ़िल्मालय की फ़िल्म थी जिसका निर्माण शशधर मुखर्जी ने किया था, राज खोसला इसके निर्देशक थे। ओ. पी. नय्यर द्वारा स्वरबद्ध यह एक आशा-रफ़ी डुएट था "मैं प्यार का राही हूँ"। गीतकार थे राजा मेहन्दी अली ख़ान। अब इस गीत में क्या गड़बड़ी हुई है, यह समझने के लिए गीत के पूरे बोल यहाँ पर लिखना ज़रूरी है। तो पहले इस गीत के बोलों को पढिए, फिर हम बात को आगे बढ़ाते हैं।
मैं प्यार का राही हूँ,
तेरी ज़ुल्फ़ के साये में,
कुछ देर ठहर जाऊँ।
तुम एक मुसाफ़िर हो,
कब छोड़ के चल दोगे,
यह सोच के घबराऊँ।
तेरे बिन जी ना लगे अकेले,
हो सके तो मुझे साथ ले ले,
नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी,
छोड़ कर ज़िंदगी के झमेले,
जब छाये घटा याद करना ज़रा,
सात रंगों की उम्र कहानी।
प्यार की बिजलियाँ मुस्कुरायें,
देखिए आप पर गिर ना जाये,
दिल कहे देखता ही रहूँ मैं,
सामने बैठकर ये अदायें,
ना मैं हूँ नाज़नीं ना मैं हूँ महजबीं,
आप ही की नज़र की दीवानी।
इस गीत के पहले अन्तरे में रफी की पंक्तियाँ हैं, "तेरे बिन जी लगे ना अकेले... नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी छोड़कर ज़िन्दगी के झमेले", जिसके जवाब में आशा गाती हैं, "जब भी छाए घटा याद करना ज़रा सात रंगों की हूँ मैं कहानी"; और फिर दूसरे अन्तरे में रफी गाते हैं, "प्यार की बिजलियाँ मुस्कुराएँ ... दिल कहे देखता ही रहूँ मैं सामने बैठकर ये अदाएँ", जिसके जवाब में आशा की पंक्तियाँ हैं, "ना मैं हूँ नाज़नीं ना मैं हूँ महजबीं"। अगर गीत के भाव, अर्थ और भाव की दृष्टि से देखें तो प्रतीत होता है कि इन दो अंतरों में आशा भोसले की पंकियाँ आपस में बदल गईं हैं। अब गीत लिखते वक़्त राजा मेहन्दी अली ख़ान से ऐसी भूल तो यकीनन असम्भव है, तो फिर ऐसी गड़बड़ी हो कैसे गई। हाँ, यह हो सकता है कि उन दिनों ज़ेरॊक्स की सुविधा या कम्प्युटर प्रिण्ट तो होते नहीं थे, गायकों को अपने गानें ख़ुद ही गीतकार से लेकर लिख लेने पड़ते थे। तो हो सकता है कि किसी ने लिखते वक़्त यह गड़बड़ी कर दी होगी। क्या असल में यह एक गड़बड़ी थी या फिर राजा साहब ने ऐसा ही लिखा था, यह अब हम कभी नहीं जान पाएँगे क्योंकि राजा साहब तो अब हमारे बीच रहे नहीं। शायद यह राज़ एक राज़ बन कर ही रह जाएगी। तो आइए इस गड़बड़ी का किसी को भी दोष दिए बग़ैर इस सुंदर युगल गीत का आनंद उठाएँ।
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार राजा मेहन्दी अली ख़ान फ़िल्मी गीतकार बनने से पहले आकाशवाणी में काम करते थे, जहाँ पर उनके साथियों में से एक थे जाने माने साहित्यिक उपेन्द्रनाथ अश्क़।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०५ /शृंखला ०२
ये धुन है गीत के प्रील्यूड की है-
अतिरिक्त सूत्र - लता की आवाज़ में आपने ये शुरूआती बोल सुने गीत के
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन थे इस लो बजट फिल्म के - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म में थी रेहाना सुल्तान, निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी २ अंक कमा लिए आपने. श्याम कान्त जी दरअसल आपके अमित जी के और बिट्टू जी के जवाब देने का अंदाज़ एक जैसा है इस करण हो सकता है सुजॉय जी ने कुछ शंका व्यक्त की हो, बहरहाल आप जारी रहे, शरद जी सही जवाब १ अंक आपके, और अवध जी एक जवाब रह गया था कम से कम वही दे देते :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
अन्य सभी प्रतिभागियों को मेरी और से शुभकामनाएं
धन्यवाद
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में ........
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी .......
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है .......
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी ...........
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है ........
के तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं ............
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे ...........
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं ...........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ..........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है...............
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में ........
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी .......
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है .......
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी ...........
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है ........
के तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं ............
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे ...........
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं ...........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ..........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है...............
बहुत प्यारा गाना है इतने समय से ये गाना सुन रही हूँ एक दो बार खुद लगा मैंने गलत याद कर लिया है.और अपने कई परिचितों को बताया भी कि उपर वाली पंक्तिय नीचे वाले अंतरे के साथ और अन्तिम वाली....यानि कहीं गलत सी नही लगती ये? सब कहते अपने दिमाग को ज्यादा मत दोड़ाया करो.....कुछ भी हो गाना है बेमिसाल.बीच में एक म्युक का टुकड़ा सुनाई देता 'नाजनी'से पहले वो वायलिन सी आवाज पर जैसे भीतर तक चीर देती है.कमाल. वाह बहुत खूब!
अवध लाल
आपको सिविल सेवा परीक्षा में सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
अवध लाल