ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 420/2010/120
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम पिछले नौ दिनों से सुन रहे हैं दुर्लभ गीतों से सजी लघु शृंखला 'दुर्लभ दस'। इन गीतों को सुनते हुए आपने महसूस किया होगा कि ये सभी बेहद कमचर्चित फ़िल्मों के गानें हैं। बस 'बिलवा मंगल' को छोड़ कर बाकी सभी फ़िल्में बॊक्स ऒफ़िस पर असफल रहीं, जिनमें अधिकतर धार्मिक और स्टण्ट फ़िल्में हैं। आपने यह भी महसूस किया होगा कि इन गीतों के गायक भी कमचर्चित गायकों में से ही थे। लेकिन आज इस शृंखला की दसवीं और अंतिम कड़ी के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह गीत है तो दुर्लभ और भूला बिसरा, लेकिन इसमें दो ऐसी आवाज़ें शामिल हैं जिन्होने अपार शोहरत व सफलता हासिल की है अपने अपने करीयर में। इन दोनों गायिकाओं ने असंख्य लोकप्रिय गीत हमें दिए हैं, जिनकी फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि अगर हिसाब लगाने बैठें तो न जाने कितने दिन गुज़र जाएँगे। लेकिन अगर आपसे हम यह कहें कि इन दोनों गायिकाओं के साथ में गाए हुए गीतों के बारे में बताइए, तो शायद आप झट से कोई गीत याद ही न कर पाएँ। तभी तो यह जोड़ी एक दुर्लभ जोड़ी है और आज के कड़ी की शान है यह जोड़ी। यह जोड़ी है फ़िल्म संगीत संसार के दो बेहद महत्वपूर्ण आवाज़ों की - सुरैय्या और आशा भोसले की। जी हाँ, इन दोनों ने बहुत ही कम गीत साथ में गाए हैं, और हमने जिस गीत को खोज निकाला है, वह है १९४९ की फ़िल्म 'सिंगार' का - "धड़क धड़क तेरे बिन मेरा जियरा...तेरे बिन चैन न आए रे"। फ़िल्म मे संगीत दिया था ख़ुरशीद अनवर ने, और गानें लिखे थे डी. एन. मधोक, नक्शब जराचवी और शक़ील बदायूनी ने। प्रस्तुत गीत मधोक साहब का लिखा हुआ है। जयराज, मधुबाला व सुरैय्या अभिनीत 'सिंगार' में सुरैय्या की आवाज़ में एकल गीत "नया नैनों में रंग नई ऊँची उमंग जिया बोले मीठी बानी, एक तुम हो साथ दूजे हाथ में हाथ तीजे शाम सुहानी" गीत लोकप्रिय हुआ था। सुरिंदर कौर ने भी इस फ़िल्म में पाँच गीत गाए थे।
संगीतकार ख़ुरशीद अनवर पर 'लिस्नर्स बुलेटिन' पत्रिका में सन् १९८५ के अगस्त महीने के अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ था कैयुम अज़ीज़ का लिखा हुआ। उसी लेख का एक अंश आज यहाँ पेश कर रहे हैं। "भारत विभाजन के बाद विशुद्ध व्यावसायिकता को दृष्टिगत रखते हुए पाकिस्तान जा बसने वाले, अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार ख़ुरशीद अनवर का ३० अक्तुबर १९८४ को लाहौर में दुखद निधन हो गया। वे लगभग ७० वर्ष के थे। ख़ुरशीद अनवर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत आल इण्डिया रेडियो के संगीत विभाग में प्रोड्युसर-इन-चार्ज की हैसियत से की थी। फ़िल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में पहली बार उन्हें पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' में सन् १९४१ में संगीत देने का अवसर मिला जिसमें वास्ती, जगदीश, राधारानी, जीवन आदि कलाकारों ने अभिनय किया था। निर्देशक थे जे. के. नन्दा। उनके मधुर संगीत से सजी पहली हिंदी फ़िल्म थी 'इशारा' जो सन् १९४३ में प्रदर्शित हुई थी। फ़िल्म के डी. एन. मधोक लिखित सभी ९ गीतों को सुरैय्या के गाए "पनघट पे मुरलिया बाजे" तथा गौहर सुल्ताना के गाए "शबनम क्यों नीर बहाए" विशेष लोकप्रिय हुए थे। अभिनेत्री वत्सला कुमठेकर ने भी फ़िल्म में दो गीत गाए थे - "दिल लेके दगा नहीं देना" तथा "इश्क़ का दर्द सुहाना"।" ख़ुरशीद अनवर के शुरुआती फ़िल्मों के बारे में हमने आपको जानकारी दी, उनसे जुड़ी कुछ और बातें हम आगे चलकर फिर कभी देंगे जब भी कभी उनका स्वरब्द्ध किया हुआ गीत इस महफ़िल में पेश होगा। फिलहाल वक़्त हो चला है सुरैय्या, आशा भोसले और साथियों के गाए फ़िल्म 'सिंगार' के इस गीत को सुनने का। और इसके साथ ही 'दुर्लभ दस' शृंखला को समाप्त करने की दीजिए हमें इजाज़त, अपनी राय व वि़चारों का हम oig@hindyugm के पते पर इंतज़ार करेंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पाकिस्तान में ख़ुरशीद अनवर की जो फ़िल्में मशहूर हुईं थीं उनमें शामिल हैं 'ज़हरे-इश्क़', 'घुंघट', 'चिंगारी', 'इंतज़ार', 'कोयल', 'शौहर', 'चमेली', 'हीर रांझा' इत्यादि।।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस संगीतकार जोड़ी के एक पार्टनर का जन्मदिन ३० जून को आता है, कौन सी है ये जोड़ी -३ अंक.
२. १९५९ में आई इस फिल्म के इस मशहूर गीत में इन्होने उस वाध्य का प्रमुखता से इस्तेमाल किया था, जिसे बजा कर वो कभी संगीत की दुनिया पे छा गए थे, फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
३. इस युगल गीत में एक आवाज़ मुकेश की है, गीतकार का नाम बताएं - २ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "नज़रें" - गीत के बोल बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत अच्छे, इंदु जी और शरद जी ने तीन -तीन अंक बाँट लिए, बहुत बढ़िया
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम पिछले नौ दिनों से सुन रहे हैं दुर्लभ गीतों से सजी लघु शृंखला 'दुर्लभ दस'। इन गीतों को सुनते हुए आपने महसूस किया होगा कि ये सभी बेहद कमचर्चित फ़िल्मों के गानें हैं। बस 'बिलवा मंगल' को छोड़ कर बाकी सभी फ़िल्में बॊक्स ऒफ़िस पर असफल रहीं, जिनमें अधिकतर धार्मिक और स्टण्ट फ़िल्में हैं। आपने यह भी महसूस किया होगा कि इन गीतों के गायक भी कमचर्चित गायकों में से ही थे। लेकिन आज इस शृंखला की दसवीं और अंतिम कड़ी के लिए हमने जिस गीत को चुना है, वह गीत है तो दुर्लभ और भूला बिसरा, लेकिन इसमें दो ऐसी आवाज़ें शामिल हैं जिन्होने अपार शोहरत व सफलता हासिल की है अपने अपने करीयर में। इन दोनों गायिकाओं ने असंख्य लोकप्रिय गीत हमें दिए हैं, जिनकी फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि अगर हिसाब लगाने बैठें तो न जाने कितने दिन गुज़र जाएँगे। लेकिन अगर आपसे हम यह कहें कि इन दोनों गायिकाओं के साथ में गाए हुए गीतों के बारे में बताइए, तो शायद आप झट से कोई गीत याद ही न कर पाएँ। तभी तो यह जोड़ी एक दुर्लभ जोड़ी है और आज के कड़ी की शान है यह जोड़ी। यह जोड़ी है फ़िल्म संगीत संसार के दो बेहद महत्वपूर्ण आवाज़ों की - सुरैय्या और आशा भोसले की। जी हाँ, इन दोनों ने बहुत ही कम गीत साथ में गाए हैं, और हमने जिस गीत को खोज निकाला है, वह है १९४९ की फ़िल्म 'सिंगार' का - "धड़क धड़क तेरे बिन मेरा जियरा...तेरे बिन चैन न आए रे"। फ़िल्म मे संगीत दिया था ख़ुरशीद अनवर ने, और गानें लिखे थे डी. एन. मधोक, नक्शब जराचवी और शक़ील बदायूनी ने। प्रस्तुत गीत मधोक साहब का लिखा हुआ है। जयराज, मधुबाला व सुरैय्या अभिनीत 'सिंगार' में सुरैय्या की आवाज़ में एकल गीत "नया नैनों में रंग नई ऊँची उमंग जिया बोले मीठी बानी, एक तुम हो साथ दूजे हाथ में हाथ तीजे शाम सुहानी" गीत लोकप्रिय हुआ था। सुरिंदर कौर ने भी इस फ़िल्म में पाँच गीत गाए थे।
संगीतकार ख़ुरशीद अनवर पर 'लिस्नर्स बुलेटिन' पत्रिका में सन् १९८५ के अगस्त महीने के अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ था कैयुम अज़ीज़ का लिखा हुआ। उसी लेख का एक अंश आज यहाँ पेश कर रहे हैं। "भारत विभाजन के बाद विशुद्ध व्यावसायिकता को दृष्टिगत रखते हुए पाकिस्तान जा बसने वाले, अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार ख़ुरशीद अनवर का ३० अक्तुबर १९८४ को लाहौर में दुखद निधन हो गया। वे लगभग ७० वर्ष के थे। ख़ुरशीद अनवर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत आल इण्डिया रेडियो के संगीत विभाग में प्रोड्युसर-इन-चार्ज की हैसियत से की थी। फ़िल्मों में संगीत निर्देशक के रूप में पहली बार उन्हें पंजाबी फ़िल्म 'कुड़माई' में सन् १९४१ में संगीत देने का अवसर मिला जिसमें वास्ती, जगदीश, राधारानी, जीवन आदि कलाकारों ने अभिनय किया था। निर्देशक थे जे. के. नन्दा। उनके मधुर संगीत से सजी पहली हिंदी फ़िल्म थी 'इशारा' जो सन् १९४३ में प्रदर्शित हुई थी। फ़िल्म के डी. एन. मधोक लिखित सभी ९ गीतों को सुरैय्या के गाए "पनघट पे मुरलिया बाजे" तथा गौहर सुल्ताना के गाए "शबनम क्यों नीर बहाए" विशेष लोकप्रिय हुए थे। अभिनेत्री वत्सला कुमठेकर ने भी फ़िल्म में दो गीत गाए थे - "दिल लेके दगा नहीं देना" तथा "इश्क़ का दर्द सुहाना"।" ख़ुरशीद अनवर के शुरुआती फ़िल्मों के बारे में हमने आपको जानकारी दी, उनसे जुड़ी कुछ और बातें हम आगे चलकर फिर कभी देंगे जब भी कभी उनका स्वरब्द्ध किया हुआ गीत इस महफ़िल में पेश होगा। फिलहाल वक़्त हो चला है सुरैय्या, आशा भोसले और साथियों के गाए फ़िल्म 'सिंगार' के इस गीत को सुनने का। और इसके साथ ही 'दुर्लभ दस' शृंखला को समाप्त करने की दीजिए हमें इजाज़त, अपनी राय व वि़चारों का हम oig@hindyugm के पते पर इंतज़ार करेंगे। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि पाकिस्तान में ख़ुरशीद अनवर की जो फ़िल्में मशहूर हुईं थीं उनमें शामिल हैं 'ज़हरे-इश्क़', 'घुंघट', 'चिंगारी', 'इंतज़ार', 'कोयल', 'शौहर', 'चमेली', 'हीर रांझा' इत्यादि।।
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. इस संगीतकार जोड़ी के एक पार्टनर का जन्मदिन ३० जून को आता है, कौन सी है ये जोड़ी -३ अंक.
२. १९५९ में आई इस फिल्म के इस मशहूर गीत में इन्होने उस वाध्य का प्रमुखता से इस्तेमाल किया था, जिसे बजा कर वो कभी संगीत की दुनिया पे छा गए थे, फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
३. इस युगल गीत में एक आवाज़ मुकेश की है, गीतकार का नाम बताएं - २ अंक.
४. मुखड़े में शब्द है "नज़रें" - गीत के बोल बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत अच्छे, इंदु जी और शरद जी ने तीन -तीन अंक बाँट लिए, बहुत बढ़िया
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
हालाँकि जहाँ तक मुझे पता है वास्तव में बीन की आवाज़ वाली धुन बजायी गयी थी 'clayviolin' नामक वाद्य पर.
अवध लाल
क्या गडबड है भई?