Skip to main content

ज़िन्दगी सपने जैसा सच भी है, पर तेरे साथ....एक चित्रकार, एक कवि और इन सबसे भी बढ़कर मोहब्बत की जीती जागती मिसाल है इमरोज़ - एक खास मुलाकात

दोस्तों, कभी कभी कुछ विशेष व्यक्तियों से मिलना, बात करना जीवन भर याद रह जाने वाला एक अनुभव बन रह जाता है, अपना एक ऐसा ही अनुभव आज हम सब के साथ बांटने जा रही हैं, रश्मि प्रभा जी, तो बिना कुछ अधिक कहे हम रश्मि जी और उनके खास मेहमान को सौंपते हैं आपकी आँखों को, हमें यकीन है कि ये गुफ्तगू आपके लिए भी उतनी यादगार होने वाली है जितनी रेशमी जी के लिए थी...

आज मैं रश्मि प्रभा आपकी मुलाकात प्यार के जाने-माने स्तम्भ इमरोज़ से करवाने जा रही हूँ...
प्यार कभी दर्द, कभी ख़ुशी, कभी दूर, कभी पास के एहसास से गुजरता है. हर प्यार करनेवालों का यही रहा अफसाना.
पर इन अफसानों से अलग एक प्यार- जहाँ कोई गम, कोई दूरी नहीं हुई, कोई इर्ष्या नहीं उठी, बस एक विश्वास की लौ रोशन रही ...विश्वास - जिसका नाम है इमरोज़ !

अमृता के इमरोज़ या इमरोज़ की अमृता - जैसे भी कह लें, एक ही अर्थ है.

तो मिलाती हूँ आप सबों को इमरोज़ से.

“नमस्कार इमरोज़ जी,..........शुरू करें हम अपनी बातें ख़ास?..........शुरू करती हूँ बातें उम्र के उस मोड़ से जहाँ आप एक युवक थे...वहाँ चढ़ते सूरज सी महत्वाकांक्षाएं होंगी...”
कूची और कैनवास से आपकी मुलाकात कब हुई ?


इमरोज़ - बचपन मैंने पंछियों के साथ
तितलियों के साथ उड़कर देखा था
पर ख्यालों के साथ में
स्कूल में ड्राइंग कहीं भी नहीं थी
न प्राइमरी स्कूल में न हाई स्कूल में
पर मेरे हाथों में ड्राइंग थी
अपने आप आई हुई

मैं स्कूल की हर कॉपी पर
कुछ न कुछ बनाता रहता था
ब्रश के साथ मेरी मुलाकात
लाहौर के आर्ट स्कूल में हुई थी
आर्ट स्कूल में वाटर कलर के रंगों से
मैं तीन साल खूब खेला था
वो खेल अब भी जारी है...

कैनवस के साथ मेरी मुलाकात
ज़िन्दगी के स्कूल में हुई आर्टिस्ट होकर
जब रंगों से दोस्ती हुई अमृता से भी दोस्ती हो गई
कैनवस पर पहली पेंटिंग
मैंने अमृता के लिए ही बनाई थी.........

ख़्वाबों की लकीरों से परे अमृता कब कैनवस पर उतरीं ?

इमरोज़ - अमृता मेरे ख़्वाबों में नहीं आई
सीधी ज़िन्दगी में आ गई
वो बात और है
कि वो ख्वाब जैसी ज़िन्दगी है
उससे मिलकर मैं ज़िन्दगी को भी मिलता रहा
और साथ अपने आपको भी मिलता रहा
साथ मिलकर चलते चलते
अपने आप ज़िन्दगी राह भी होती रही
और मंजिल भी
एक दिन चलते चलते उसने पूछा
तेरा क्या ख्याल है
ज़िन्दगी सच है कि सपना
मैंने उसकी बोलती आँखों को देखकर कहा
ज़िन्दगी सपने जैसा सच भी है
पर तेरे साथ .....

उसके आने पर
मुझे लिखना आया
और उसको देख देख लिखा ...

तू अक्षर अक्षर कविता
और कविता कविता ज़िन्दगी ....
कभी कभी खूबसूरत ख्याल
खूबसूरत बदन भी धर लेते हैं ....

अमृता नज़्म बनकर आईं या ज़िन्दगी ?

इमरोज़ - अमृता ज़िन्दगी बनकर आई
और कविता बनकर मिली
एक खूबसूरत माहौल बनाकर
सुबह शाम करती रही
रसोई करती तो वो भी मज़े से करती
वो ज़िन्दगी के सपने देखती
और सपने उसकी नज्में लिखते .....

कैसा लगता है इमरोज़ जी जब आपको प्यार का स्तम्भ कहा जाता है ?

इमरोज़ - जिन्होंने ये कहा है मेरे बारे में
उन सब मेहरबान लोगों का
बहुत-बहुत शुक्रिया

आज की भागती ज़िन्दगी में आप क्या सोचते हैं? क्या महसूस करते हैं?

इमरोज़ - सुकून उसमें है जो आपके पास है
और जो मिला हुआ है
वो ज़िन्दगी का सुकून बन जाता है
पर जो भाग रहे हैं
वे बहुत कुछ चाहते हैं
बहुत कुछ
चाहत की दौड़ कभी ख़त्म नहीं होती
ये ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है
खाना सेहत बनाता है
पर ज़रूरत से ज्यादा खाना
ज़हर भी बन जाता है

आपकी चित्रकला का मुख्य केंद्र अमृता प्रीतम के अलावा और क्या रहा ?

इमरोज़ - मैं रंगों से खेलता हूँ
और रंग मुझसे
रंगों से खेलते खेलते
मैं भी रंग हो जाता हूँ
कुछ बनने ना बनने से
बेफिक्र बेपरवाह
कभी कभी खेलते खेलते
कुछ अच्छा भी बन जाता है
वो ही अच्छा मेरी पेंटिंग बन जाती है
मैं अपने लिए अपने आपको
पेंट करता हूँ

लोगों को सोचकर
मैंने कभी कुछ नहीं बनाया
लोगों को सोचकर कभी भी पेंटिंग नहीं हो पाती

एक प्रेमी से अलग आपकी क्या सोच रही?

इमरोज़ - मेरी सोच....
किताबें पढ़ने से लिखना पढना आ जाता है
और ज़िन्दगी पढ़ने से जीना
प्यार होने से प्यार का पता लगता है

सिंगलिंग्रों ने पढ़ाई तो कोई नहीं की पर ज़िन्दगी से पढ़ लिया लगता है. सिंगलिंग्रों की लड़की जवान होकर जिसके साथ जी चाहें चल-फिर सकती हैं, दोस्ती कर सकती हैं और जब वो अपना मर्द चुन लेती हैं. एक दावत करती हैं, अपना मर्द चुनने की ख़ुशी में. अपने सारे दोस्तों को बुलाती हैं और सबसे कहती हैं कि आज अपनी दोस्ती पूरी हो गई और उसका मनचाहा सबसे हाथ मिलाता है, फिर सब जश्न मानते हैं.

कुछ दिनों से ये दावत और ये जीने की दलेरी ये साफगोई मुझे बार बार याद आ रही है.
मेरे एक दोस्त को उम्र के आख़री पहर में मोहब्बत हो गई. एक सयानी उम्र की खूबसूरत औरत से, जो खूबसूरत कवि भी है, दोस्त आप भी मशहूर शायर है...मोहब्बत के बाद दोस्त की शायरी में एक खूबसूरती बढ़ने लगी है पर उसके घर की खूबसूरती कम होनी शुरू हो रही है !

जब किसी का घर से बाहर ध्यान लग जाता है, तो उसके घर का ध्यान टूट जाता है. वो पत्नी के पास बैठा भी, पत्नी के पास नहीं होता घर में होकर भी घर में नहीं होता अब घर भी घर नहीं लगता, पत्नी भी पत्नी नहीं लगती ! रिश्ता अपने आप छूट गया है, पर संस्कार नहीं छूंट रहे वो माना हुआ सयाना है , कॉलेज में फिलोसफी पढ़ाता रहा है - कई साल !

आस-पास के लोगों की मुश्किलें आसान कर देनेवाले को आज अपनी मुश्किल का हल मिलना मुश्किल हो गया है... ज़िन्दगी दूर खड़ी हैरान हो रही है !

मोहब्बत करनेवालों को जाने की राह नहीं नज़र आ रही ! राह तो सीधी है, पर संस्कारों के अँधेरे में नज़र नहीं आ रही! जब से पत्नी को मर्द की मोहब्बत का पता लगा है, वह हैरान तो है, मगर उदास नहीं !

पूछा सिर्फ हाजिर से जा सकता है, गैर हाजिर पति से क्या पूछना ? वह चुपचाप हालात को देख रही है और अपने अकेले हो जाने को मानकर अपने आपके साथ जीना सीख रही है !

मोहब्बत यह इलज़ाम कबूल नहीं करती कि वो घर तोडती है ! मोहब्बत ही घर बनाती है, ख्यालों से भी खूबसूरत घर... सच तो ये है कि मोहब्बत बगैर घर बनता ही नहीं.

पत्नी अब एक औरत है अपने आप की आप- जिम्मेदार और बदमुख्तियार चारों तरफ देखती है, घर में बड़ा कुछ बिखरा हुआ नज़र आता है !कल के रिश्ते की बिखरी हुई मौजूदगी और एक अजीब ख़ामोशी भी ....वह सब बिखरा हुआ बहा देती है !

और चीजों को संवारती है, सजाती है और सिंग्लिरी लड़की की तरह एक दावत देने की तैयारी करती है !

मर्द को विदा करने के लिए और विदा लेने के लिए जा रहे मर्द की मर्जी का खाना बनाती है, मेज़ फूलों से सजाती है, सामने बैठकर खाना खिलाती है.... वो ऑंखें होते हुए भी ऑंखें नहीं मिलाता !

जाते वक़्त औरत ने पैरों को हाथ लगाने की बजाय मर्द से पहली बार हाथ मिलाया और कहा- पीछे मुड़कर न देखना, आपकी ज़िन्दगी आपके सामने है और 'आज' में है, अपने आप का ख्याल रखना, मेरे फिकर अब मेरे हैं !

जो कभी नहीं हुआ वह आज हो रहा है. पर आज ने रोज़ आना है ज़िन्दगी को आदर के साथ जीने के लिए भी , आदर के साथ विदा लेने के लिए भी ....

अब बहुत कुछ बदल गया है , अब आपकी दिनचर्या क्या होती है ?

इमरोज़ - उसकी धूप में
और अपनी छाँव में बैठा
मैं अपनी फकीरी करता रहता हूँ ...
पता नहीं ये फकीरी मुझे ज़िन्दगी ने दी है
कि ज़िन्दगी देनेवाले ने...

अमृता जी के लिए क्या कहना चाहेंगे ?

इमरोज़ - सपना सपना होकर
औरत हुई
और अपने आपको
अपनी मर्जी का सोचा ...
फिक्र फिक्र होकर
कवि हुई
वारिस शाह को जगाया
और कहा- देख अपना पंजाब लहुलुहान ...
मोहब्बत मोहब्बत होकर
एक राबिया हुई
किसी से भी नफरत करने से
इनकार किया
और अपने वजूद से बताया
कि मोहब्बत किसी से भी नफरत नहीं करती

ज़िन्दगी ज़िन्दगी होकर
वो मनचाही हुई
मनचाहा लिखा भी
और मनचाहा जिया भी....
मैं अमृता पर
कितना भी बोल लूँ
अमृता अनलिखी रह जाती है ....

वो जब भी मिलती है
एक अनलिखी नज़्म नज़र आती है

मैं उस अनलिखी नज़्म को
कई बार लिख चुका हूँ
वो फिर भी अनलिखी ही रह जाती है

हो सकता है
ये अनलिखी नज़्म
लिखने के लिए हो ही ना,

सिर्फ जीने के लिए ही है ....

जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है?

इमरोज़ - हर जगह आदर
पहली तालीम होनी चाहिए
जो इस वक़्त कहीं नहीं
ना सोच में ना घर में ना ज़िन्दगी में
माँ बाप बच्चों के लिए आदर जानते ही नहीं
आदर करनेवाले माँ बाप हुकम कभी नहीं करते
स्कूलों में टीचर बच्चों के साथ
थप्पड़ों से गुस्से से
बच्चों का निरादर करते रहते हैं
आदर ना टीचरों में है ना किसी स्कूल के कोर्स में
आदर ज़िन्दगी का
एक खूबसूरत रंग भी है
हर मेल मिलाप हर रिश्ते का
लाजमी रंग और ज़रूरी अंग भी है
यहाँ तक कि
एक-दूसरे से विदा
होने के लिए भी आदर ज़रूरी है
और एक दूजे को विदा करने के लिए भी ज़रूरी ....
किसी को भी फूल देते वक़्त
कुछ खुशबू अपने हाथों को भी लगी रह जाती है ....
आदर रिश्तों की खुशबू है

आप तो आम लोगों से बिल्कुल अलग हैं, शांत,स्थिर ..... फिर भी जानना चाहूँगी क्या ज़िन्दगी में क्षणांश के लिए भी कोई शिकायत आपके मन को नहीं हुई?

इमरोज़ - एक छोटी सी शिकायत
जो बता सकते हैं
वो लोगों को क्यूँ नहीं बताते
कि पाप सोच करती है
जिस्म नहीं
गंगा जिस्म साफ़ करती है
सोच नहीं

शिकायत के लहजे में
कोई मुझसे पूछता है
कि मैं अपनी पेंटिंग पर
अपना नाम क्यूँ नहीं लिखता ?

मैंने कहा
मेरा नाम मेरी पेंटिंग का
हिस्सा नहीं बनता इसलिए......

वैसे किसी भी पेंटर का नाम
उसकी पेंटिंग का हिस्सा
कभी नहीं बना
जब कभी भी
मैंने शब्द तो बोले
पर अर्थ नहीं जिए

तब अपने आप से शिकायत होती रही है....

दूसरों से शिकायत करना
गुस्सा ही है
अपने से शिकायत अपनत्व

यह मुलाकात अविस्मरणीय, अद्भुत, ज्ञानवर्धक रही ........... इस मुलाकात के दरम्यान मैंने जाना इमरोज़ प्यार का स्तम्भ ही नहीं, हम जिसे खुदा कहते हैं, उसकी परछाईं हैं.......विदा लेने से पहले कुछ झलकियाँ देखिये उस घर की, जहाँ आज भी अमृता की खुशबू है, हर कमरे, हर दीवार, हर कोने में सशरीर न होते हुए भी अमृता मौजूद है, और मौजूद है इमरोज़ और उनकी बे-इन्तेहाई मोहब्बत.

Comments

इस बेमिसाल इंटर वियू के लिए धन्येवाद रश्मि जी
sanjay patel said…
इमरोज़ साहब से प्यार भरी मुलाक़ात करवाने के लिये दिल से शुक्रिया.रविवार सुबह में उजाला भर दिया इस इंटरव्यू ने.
kya kahoon yahi soch rahe hai...kala aur sahitya ka anootha sangam....aise mein zindgi to fale-foolegi hi na....shukriya jo aapne mulakaat ki aur hamko bhi ru-ba-ru karwaya.
आपका ये साक्षात्कार एक यादगार बन गया है....बहुत अच्छा ...इमरोज़ जी से मुलाक़ात अविस्मरणीय है...
ये साक्षात्कार एक यादगार बन गया.........
धन्येवाद रश्मि di bahut kuchh mila sikhne ko....
rashmi ji
yun laga samne baithe hon imroj ji .......kahin bhi nhi laga ki sakshatkar padh rahi hun.........aapne to mulaqat ko jivant kar diya.......shukriya.
Rakesh said…
interview nahi yaha display kiya hai ek jeeta jagta mohabbat ka paigam prem ka saleeka yaha prastut kiya hai jiski aaj bahut jarurat hai hum dogli jindagi ke kagar per ja rehehai aise samayaise sksh se mulaqat ker unke jo pavitra jawab aapne yah post kiye hai ve es peedhi aur meri umra ko bhi ek aisa sandesh hai jisko bar bar hame padhna chahiye jeena chahiye ....dhanyawad ...ki aapke madhyam se mein samradhh ho saka
shanno said…
Achcha laga yeh interview..dhanybaad.
RAJ SINH said…
क्या संजोग है रश्मिजी की आज ही (७ मार्च को शाम ४से ६ ) मैंने इमरोज़ जी के साथ बिताये .बहुत सारी चर्चा हुयी जिसमे ये प्रसंग भी आये जिनकी आपने चर्चा की है .डेढ़ घंटे की बातचीत खुल कर हुयी (इन्टरवियू नहीं कहूँगा ) वीडियो रिकार्ड की .

आपके शीर्षक से पूरी तरह सहमत ही नहीं ,स्तब्ध भी हुआ की ऐसे सच्चे इन्सान भी हैं दुनियां में .दुर्भाग्य से शैलेश बाहर थे ,सोमवार को दिल्ली में होते और आज रात ही मुझे मुंबई वापस आना था .वह वीडियो बातचीत की उन्हें भेज दूंगा ,हिंद युग्म के लिए .
इमरोज़ अमृता को गया नहीं मानते .आज भी अपने साथ मौजूद मानते हैं.और आज भी अपने साथ ही मानते हैं इस लिए ऐसे जिक्र करते हैं की वर्तमान काल में वे हैं , भूतकाल की नहीं.
मैंने मोहब्बत की यह ऊँचाई कभी नहीं देखी .मेरे लिए यह स्मरणीय दिन रहेगा .
"Imroj" jinko pyar ki pratimurti kaha jata hai, ko apne saamne dekh pana, bahut badi baat thi mere liye!! Rasshmi Di, iske liye tumhe sukhriya.......:)
इमरोज से की गई ये मुलाक़ात बहुत पसंद आई. हो सके तो अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी जी के इन्तेर्वियू की कोई पुरानी रिकॉर्डिंग हो तो वह भी हिंद युग्म पर अवश्य उपलब्ध कराएं.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट