ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 369/2010/69
'गीत रंगीले' शृंखला की नौवीं कड़ी के लिए आज हमने जिस गीत को चुना है, उसमें त्योहार की धूम भी है, गाँव वालों की मस्ती भी है, लेकिन साथ ही साथ देश भक्ति की भावना भी छुपी हुई है। और क्यों ना हो जब भारत कुमार, यानी कि हमारे मनोज कुमार जी की फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' का गाना हो, तो देश भक्ति के भाव तो आने ही थे! आइए आज सुनें इसी फ़िल्म से "पूर्वा सुहानी आई रे"। लता मंगेशकर, महेन्द्र कपूर, मनहर और साथियों की आवाज़ें हैं, गीत लिखा है संतोष आनंद ने और संगीतकार हैं कल्याणजी-आनंदजी। गीत फ़िल्माया गया है मनोज कुमार, विनोद खन्ना, भारती और सायरा बानो पर। आइए आज गीतकार व कवि संतोष आनंद जी की कुछ बातें की जाए! दोस्तों, कभी कभी सफलता दबे पाँव आने के बजाए दरवाज़े पर दस्तक देकर आती है। मूलत: हिंदी के जाने माने कवि संतोष आनंद को फ़िल्मी गीतकार बनने पर ऐसा ही अनुभव हुआ होगा! कम से कम गीत लिख कर ज़्यादा नाम और इनाम पाने वाले गीतकारों में शुमार होता है संतोष आनंद का। मनोज कुमार ने 'पूरब और पश्चिम' में उनसे सब से पहले फ़िल्मी गीत लिखवाया था "पूर्वा सुहानी आई रे"। यह गीत उनके जीवन में ऐसे सुगंधित और शीतल पुरवा की तरह आई कि वो तो शोहरत की ऊँचाइयों तक पहुँचे ही, सुनने वाले भी झूम उठे। इसके बाद बनी फ़िल्म 'शोर' और संतोष आनंद ने चटखारे लेते हुए लिखा "ज़रा सा उसको छुआ तो उसने मचा दिया शोर"। इस गीत ने बहुत शोर मचाया, हालाँकि इसी फ़िल्म में उन्होने एक गम्भीर दार्शनिक गीत भी लिखा था जो आज तक उतना ही लोकप्रिय है जितना उस समय हुआ था। जी हाँ, "एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है"।संतोष आनंद जी संबंधित और भी कई बातें हम आगे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी रखेंगे।
'पूरब और पश्चिम' १९७० की मनोज कुमार निर्मित, निर्देशित व अभिनीत फ़िल्म थी। मूल कहानी श्रीमति शशि गोस्वामी की थी, जिसे फ़िल्म के लिए लिखा मनोज कुमार ने। इस फ़िल्म के अन्य मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, सायरा बानो, प्राण, भारती, निरुपा रॊय, कामिनी कौशल, विनोद खन्ना, राजेन्द्र नाथ आदि। विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में कमल शर्मा ने आनंदजी भाई से फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' के संगीत से जुड़ा सवाल पूछा था, ख़ास कर आज के इस गीत को बजाने से पहले, तो भला यहाँ पर उस बातचीत के अंश को पेश करने से बेहतर और क्या होगा!
प्र: जैसे 'पूरब और पश्चिम', जैसा आप ने ज़िक्र किया, उसमें दो शब्द ही अपने आप में सारी बातें कह देता है। एक तरफ़ पूरब की बात है, दूसरी तरफ़ पश्चिम की बात है, कल्चर डिफ़रेण्ट हैं, उस पूरी तसवीर को संगीत में खड़ा करना और उसको सपोर्ट देना चैलेंजिंग् तो रहा ही होगा?
उ: चलेंजिंग् तो रहता है लेकिन साथ में एक इंट्रेस्टिंग् भी रहता है, इसलिए कि म्युज़िक डिरेक्टर को एक घराने में नहीं रहना पड़ता है, यह होता है न कि मैं इस घराने से हूँ, ऐसा नहीं है, यहाँ पे वेस्टर्ण म्युज़िक भी देना है, इंडियन म्युज़िक भी देना है, हिंदुस्तान के इतने सारे फ़ोक हैं अलग अलग, उन फ़ोक को भी आपको इस्तेमाल करना पड़ेगा, क्योंकि जैसा सिचुयशन आएगा, वैसा आपको गाना देना पड़ेगा, उसका सब का स्टडी तो करना पड़ेगा। उसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा, आपके यहाँ एक प्रोग्राम है जिसमें पुराने, गाँव के गानें आते हैं, क्या है वह?
प्र: 'लोक संगीत'।
उ: 'लोक संगीत'। इसको मैं बहुत सुनता रहा हूँ, यहाँ पे मादल क्यों बज रहा है, यहाँ पे यह क्यों बज रहा है, वो चीज़ें मुझपे बहुत हावी होती रही है, क्योंकि शुरु से मेरी यह जिज्ञासा रही है कि यह ऐसा क्यों है? कि यहाँ मादल क्यों बजाई जाती है। हिमाचल में अगर गाना हो रहा है तो फ़ास्ट गाना नहीं होगा क्योंकि उपर हाइ ऒल्टिट्युड पे साँस नहीं मिलती, तो वहाँ पे आपको स्लो ही नंबर देना पड़ेगा। अगर पंजाब है तो वहँ पे प्लैट्यू है तो आप धनधनाके, खुल के डांस कर सकते हैं। सौराष्ट्र में आप जाएँगे तो वहाँ पे कृष्ण, उषा, जो लेके आए थे, वो आपको मिलेगा, वहाँ का डांडिया एक अलग होता है, यहाँ पे ये अलग होता है, तो ये सारी चीज़ें अगर आप सीखते जाएँ, सीखने का आनंद भी आता है, और इन चीज़ों को काम में डालते हैं तो काम आसान भी हो जाता है।
दोस्तों, इन्ही शब्दों के साथ उस प्रोग्राम में बजाया गया था "पुरवा सुहानी आई रे", तो चलिए हम भी झूम उठते हैं इस गीत के साथ। गीत के शुरुआती बोलों पर ग़ौर कीजिएगा दोस्तों, "कहीं ना ऐसी सुबह देखी जैसे बालक की मुस्कान, या फिर दूर कहीं नींद में हल्की सी मुरली की तान, गुरुबानी गुरुद्वारे में, तो मस्जिद से उठती आज़ान, आत्मा और परमात्मा मिले जहाँ, यही है वह स्थान।" कितने उत्कृष्ट शब्दों में संतोष आनंद जी ने इस देश की महिमा का वर्णन किया है न! आइए सुनते हैं।
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार संतोष आनंद को फ़िल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' के गीत "मैं ना भूलूँगा" के लिये उस साल के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। और इसी फ़िल्म के उनके लिखे गीत "और नहीं बस और नहीं" के लिए गायक महेन्द्र कपूर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"पुकार", गीत बताएं -३ अंक.
2. एक निर्देशक जिनकी सभी फ़िल्में अंग्रेजी के "ए" अक्षर से शुरू होती है, केवल पहली फिल्म को छोडकर, ये उन्हीं की फिल्म का गीत है, उनका नाम बताएं -२ अंक.
3. गीत के गीतकार कौन हैं -२ अंक.
4. धमेन्द्र इस फिल्म के नायक थे, नायिका का नाम बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
आज सभी ने जम कर भाग लिए और अंक भी पाए, इंदु जी मुझे भी (सजीव) आपकी बात ठीक लग रही है, सुजॉय जी अपना पक्ष रखेंगें :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
'गीत रंगीले' शृंखला की नौवीं कड़ी के लिए आज हमने जिस गीत को चुना है, उसमें त्योहार की धूम भी है, गाँव वालों की मस्ती भी है, लेकिन साथ ही साथ देश भक्ति की भावना भी छुपी हुई है। और क्यों ना हो जब भारत कुमार, यानी कि हमारे मनोज कुमार जी की फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' का गाना हो, तो देश भक्ति के भाव तो आने ही थे! आइए आज सुनें इसी फ़िल्म से "पूर्वा सुहानी आई रे"। लता मंगेशकर, महेन्द्र कपूर, मनहर और साथियों की आवाज़ें हैं, गीत लिखा है संतोष आनंद ने और संगीतकार हैं कल्याणजी-आनंदजी। गीत फ़िल्माया गया है मनोज कुमार, विनोद खन्ना, भारती और सायरा बानो पर। आइए आज गीतकार व कवि संतोष आनंद जी की कुछ बातें की जाए! दोस्तों, कभी कभी सफलता दबे पाँव आने के बजाए दरवाज़े पर दस्तक देकर आती है। मूलत: हिंदी के जाने माने कवि संतोष आनंद को फ़िल्मी गीतकार बनने पर ऐसा ही अनुभव हुआ होगा! कम से कम गीत लिख कर ज़्यादा नाम और इनाम पाने वाले गीतकारों में शुमार होता है संतोष आनंद का। मनोज कुमार ने 'पूरब और पश्चिम' में उनसे सब से पहले फ़िल्मी गीत लिखवाया था "पूर्वा सुहानी आई रे"। यह गीत उनके जीवन में ऐसे सुगंधित और शीतल पुरवा की तरह आई कि वो तो शोहरत की ऊँचाइयों तक पहुँचे ही, सुनने वाले भी झूम उठे। इसके बाद बनी फ़िल्म 'शोर' और संतोष आनंद ने चटखारे लेते हुए लिखा "ज़रा सा उसको छुआ तो उसने मचा दिया शोर"। इस गीत ने बहुत शोर मचाया, हालाँकि इसी फ़िल्म में उन्होने एक गम्भीर दार्शनिक गीत भी लिखा था जो आज तक उतना ही लोकप्रिय है जितना उस समय हुआ था। जी हाँ, "एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है, ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है"।संतोष आनंद जी संबंधित और भी कई बातें हम आगे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी रखेंगे।
'पूरब और पश्चिम' १९७० की मनोज कुमार निर्मित, निर्देशित व अभिनीत फ़िल्म थी। मूल कहानी श्रीमति शशि गोस्वामी की थी, जिसे फ़िल्म के लिए लिखा मनोज कुमार ने। इस फ़िल्म के अन्य मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, सायरा बानो, प्राण, भारती, निरुपा रॊय, कामिनी कौशल, विनोद खन्ना, राजेन्द्र नाथ आदि। विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में कमल शर्मा ने आनंदजी भाई से फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' के संगीत से जुड़ा सवाल पूछा था, ख़ास कर आज के इस गीत को बजाने से पहले, तो भला यहाँ पर उस बातचीत के अंश को पेश करने से बेहतर और क्या होगा!
प्र: जैसे 'पूरब और पश्चिम', जैसा आप ने ज़िक्र किया, उसमें दो शब्द ही अपने आप में सारी बातें कह देता है। एक तरफ़ पूरब की बात है, दूसरी तरफ़ पश्चिम की बात है, कल्चर डिफ़रेण्ट हैं, उस पूरी तसवीर को संगीत में खड़ा करना और उसको सपोर्ट देना चैलेंजिंग् तो रहा ही होगा?
उ: चलेंजिंग् तो रहता है लेकिन साथ में एक इंट्रेस्टिंग् भी रहता है, इसलिए कि म्युज़िक डिरेक्टर को एक घराने में नहीं रहना पड़ता है, यह होता है न कि मैं इस घराने से हूँ, ऐसा नहीं है, यहाँ पे वेस्टर्ण म्युज़िक भी देना है, इंडियन म्युज़िक भी देना है, हिंदुस्तान के इतने सारे फ़ोक हैं अलग अलग, उन फ़ोक को भी आपको इस्तेमाल करना पड़ेगा, क्योंकि जैसा सिचुयशन आएगा, वैसा आपको गाना देना पड़ेगा, उसका सब का स्टडी तो करना पड़ेगा। उसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा, आपके यहाँ एक प्रोग्राम है जिसमें पुराने, गाँव के गानें आते हैं, क्या है वह?
प्र: 'लोक संगीत'।
उ: 'लोक संगीत'। इसको मैं बहुत सुनता रहा हूँ, यहाँ पे मादल क्यों बज रहा है, यहाँ पे यह क्यों बज रहा है, वो चीज़ें मुझपे बहुत हावी होती रही है, क्योंकि शुरु से मेरी यह जिज्ञासा रही है कि यह ऐसा क्यों है? कि यहाँ मादल क्यों बजाई जाती है। हिमाचल में अगर गाना हो रहा है तो फ़ास्ट गाना नहीं होगा क्योंकि उपर हाइ ऒल्टिट्युड पे साँस नहीं मिलती, तो वहाँ पे आपको स्लो ही नंबर देना पड़ेगा। अगर पंजाब है तो वहँ पे प्लैट्यू है तो आप धनधनाके, खुल के डांस कर सकते हैं। सौराष्ट्र में आप जाएँगे तो वहाँ पे कृष्ण, उषा, जो लेके आए थे, वो आपको मिलेगा, वहाँ का डांडिया एक अलग होता है, यहाँ पे ये अलग होता है, तो ये सारी चीज़ें अगर आप सीखते जाएँ, सीखने का आनंद भी आता है, और इन चीज़ों को काम में डालते हैं तो काम आसान भी हो जाता है।
दोस्तों, इन्ही शब्दों के साथ उस प्रोग्राम में बजाया गया था "पुरवा सुहानी आई रे", तो चलिए हम भी झूम उठते हैं इस गीत के साथ। गीत के शुरुआती बोलों पर ग़ौर कीजिएगा दोस्तों, "कहीं ना ऐसी सुबह देखी जैसे बालक की मुस्कान, या फिर दूर कहीं नींद में हल्की सी मुरली की तान, गुरुबानी गुरुद्वारे में, तो मस्जिद से उठती आज़ान, आत्मा और परमात्मा मिले जहाँ, यही है वह स्थान।" कितने उत्कृष्ट शब्दों में संतोष आनंद जी ने इस देश की महिमा का वर्णन किया है न! आइए सुनते हैं।
क्या आप जानते हैं...
कि गीतकार संतोष आनंद को फ़िल्म 'रोटी कपड़ा और मकान' के गीत "मैं ना भूलूँगा" के लिये उस साल के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। और इसी फ़िल्म के उनके लिखे गीत "और नहीं बस और नहीं" के लिए गायक महेन्द्र कपूर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
चलिए अब बूझिये ये पहेली, और हमें बताईये कि कौन सा है ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत. हम आपसे पूछेंगें ४ सवाल जिनमें कहीं कुछ ऐसे सूत्र भी होंगें जिनसे आप उस गीत तक पहुँच सकते हैं. हर सही जवाब के आपको कितने अंक मिलेंगें तो सवाल के आगे लिखा होगा. मगर याद रखिये एक व्यक्ति केवल एक ही सवाल का जवाब दे सकता है, यदि आपने एक से अधिक जवाब दिए तो आपको कोई अंक नहीं मिलेगा. तो लीजिए ये रहे आज के सवाल-
1. मुखड़े में शब्द है -"पुकार", गीत बताएं -३ अंक.
2. एक निर्देशक जिनकी सभी फ़िल्में अंग्रेजी के "ए" अक्षर से शुरू होती है, केवल पहली फिल्म को छोडकर, ये उन्हीं की फिल्म का गीत है, उनका नाम बताएं -२ अंक.
3. गीत के गीतकार कौन हैं -२ अंक.
4. धमेन्द्र इस फिल्म के नायक थे, नायिका का नाम बताएं-२ अंक.
विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।
पिछली पहेली का परिणाम-
आज सभी ने जम कर भाग लिए और अंक भी पाए, इंदु जी मुझे भी (सजीव) आपकी बात ठीक लग रही है, सुजॉय जी अपना पक्ष रखेंगें :)
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
पहेली रचना -सजीव सारथी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ha ha ha
jan bujh kr ek number ka ghata
ab chahe sawan jhuum ke aa jaye,bahar ke aaa jaye ,chahe bela milan ki aa jaye bhle hi koi aas ka pnchhi aa ke kah de main doosre prshno ke uttar nhi doongi.
aapki kasam main nhi btaoongi kuchh bhiiiiiiiii
संभल जाओ चमन वालो कि ’आए दिन बहार के’
गीत बहुत ही आनंद दायक है और गीतकार का नाम मैं तो बताने वाला नहीं.
अवध लाल