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महताब तेरा चेहरा किस ख्वाब में देखा था....लता मुकेश की मखमली आवाज़ में एक सुरीला नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 235

दोस्तों, एक के बाद एक तीन गीत हम आपको सुनवा रहें हैं शंकर जयकिशन के स्वरबद्ध किए हुए, और मौका है शंकर जी के जन्म दिवस का जो था १५ अक्तुबर को। कल की तरह आज का गीत भी शैलेन्द्र का ही लिखा हुआ है। फ़िल्म 'आशिक़' का युगल गीत है मुकेश और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "महताब तेरा चेहरा किस ख़्वाब में देखा था, ऐ हुस्न-ए-जहाँ बतला तू कौन मैं कौन हूँ"। 'आशिक़' १९६२ की फ़िल्म थी जिसके निर्माता थे विजय किशोर दुबे और बनी रूबेन। ऋषीकेश मुकर्जी ने फ़िल्म को निर्देशित किया और इसके मुख्य कलाकार थे राज कपूर, नंदा और पद्मिनी। जहाँ तक म्युज़िक डिपार्ट्मेंट की बात है, तो शंकर जयकिशन के अलावा जिनका फ़िल्म के संगीत में योगदान रहा वे हैं मिनू कात्रक (रिकार्डिस्ट), डी. ओ. भंसाली (सहायक रिकार्डिस्ट), दत्ताराम वाडकर (संगीत सहायक), और सेबास्टियन डी' सूज़ा (संगीत सहायक)। गीतों में आवाज़ें लता जी और मुकेश जी के थे। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा इस फ़िल्म का एक और युगल गीत "ओ शमा मुझे फूँक दे, मैं ना मैं रहूँ तू ना तू रहे" भी लोकप्रिय हुआ था। और मुकेश की एकल आवाज़ में "तुम जो हमारे मीत ना होते, गीत हमारे गीत ना होते" भी शैलेन्द्र की एक चर्चित रचना है। दशकों बाद इसी तरह का एक गीत बना था फ़िल्म 'गीत' के लिए, "आप जो मेरे मीत ना होते, होठों पे मेरे गीत ना होते"। ख़ैर, आज तो हम "महताब तेरा चेहरा" की ही बातें करेंगे। इस गीत में रोमांटिसिज़्म के शायराना अंदाज़ फूट पड़े हैं शैलेन्द्र की क़लम से। दोस्तों, ध्यान देनेवाली बात है कि ऋषिकेश मुखर्जी की निर्देशित यह फ़िल्म थी और एक पर्फ़ेक्ट फ़िल्मकार की तरह वो अपनी फ़िल्मों में ऐसा कोई गीत नहीं डालते थे जो कहानी के प्रवाह के आगे रुकावट बनकर खड़ा हो जाए। राज कपूर के साथ उनकी घनिष्ठता की वजह से उनकी शंकर जयकिशन के साथ भी दोस्ती हुई, और बिमल राय के ज़रिए शैलेन्द्र से।

शंकर जयकिशन ने ऋषि दा के जिन फ़िल्मों में संगीत दिया था उनके नाम हैं 'अनाड़ी', 'असली नक़ली', 'आशिक़', 'गोदान', और 'सांझ और सवेरा'। गीतकारों में आनंद बक्शी और शैलेन्द्र ने ऋषि दा के साथ आठ आठ फ़िल्मों में गानें लिखे। हसरत जयपुरी, कैफ़ी आज़्मी, योगेश, मजरूह और गुलज़ार ने भी ऋषि दा के कई फ़िल्मों में गीत लिखे हैं। दोस्तों, ऋषि दा के साथ शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र के साथ का ज़िक्र तो हमने किया, लेकिन यह भी एक आश्चर्य की ही बात है हम कह सकते हैं कि मुकेश इस दुनिया से २७ अगस्त १९७६ को हमेशा के लिए चले गए थे, और इसके ठीक ३० साल बाद, यानी कि २७ अगस्त २००६ को ऋषि दा हमें अल्विदा कहा था। शंकर जयकिशन और सलिल चौधरी को अगर हम अलग रखें तो मुकेश ने ऋषि दा के फ़िल्मों में उन संगीतकारों के लिए गीत गाए हैं जिनके लिए उन्होने बहुत कम गाए हैं। कुछ उदाहरण दें आपको? आर. डी. बर्मन (फिर कब मिलोगी), हेमन्त कुमार (बीवी और मकान), एस. डी. बर्मन (चुपके चुपके)। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने मुकेश से ऋषि दा की फ़िल्म 'सत्यकाम' में मुकेश से गीत गवाया था। तो दोस्तों, आइए अब सुनते हैं "महताब तेरा चेहरा"। आज का यह अंक एक साथ समर्पित है ऋषिकेश मुखर्जी, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र और मुकेश की स्मृति को!



मुकेश :
मेहताब तेरा चेहरा,
किस ख्वाब में देखा था
ए हुस्ने जहाँ बतला ,
तू कौन मैं कौन हूँ ।
लता :
ख्वाबों में मिले अक्सर
इक राह चले मिल कर
फिर भी है यही बेहतर
मत पूछ मैं कौन हूँ ।
मुकेश :
मेह्ताब तेरा चेहरा
लता :
हुस्नो इश्क है तेरे जहाँ
दिल की धड़कनें तेरी जु़बां
आज ज़िन्दगी तुझसे जवां
मुकेश :
आगाज़ है क्या मेरा
अंजाम है क्या मेरा
है मेरा मुकद्दर क्या
बतला के मैं कौन हूँ । मेहताब ..
लता :
क्यूं घिरी घटा तू ही बता
क्यूं हंसी फ़िजा तू ही बता
फ़ूल क्यूं खिला तू ही बता
मुकेश :
किस राह पे चलना है
किस गाम पे रुकना है
किस काम को करना है
बतला के मैं कौन हूँ । मेह्ताब तेरा चेहरा
लता :
ज़िन्दगी को तू गीत बना
दिल के साज़ पे झूम के गा
इस जहान को तू प्यार सिखा
मुकेश :
मुकेश :
मेहताब तेरा चेहरा,
किस ख्वाब में देखा था
ए हुस्ने जहाँ बतला ,
तू कौन मैं कौन हूँ ।
लता :
ख्वाबों में मिले अक्सर
इक राह चले मिल कर
फिर भी है यही बेहतर
मत पूछ मैं कौन हूँ ।
मुकेश :
मेह्ताब तेरा चेहरा...

और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस फिल्म के शीर्षक में दो रंगों के नाम हैं.
२. चित्रगुप्त के संगीत से सजा एक बेहद चुलबुला गीत, जिसे सुनते ही मन नाच उठता है.
३. एक अंतरा इस शब्द से शुरू होता है -"जान".

पिछली पहेली का परिणाम -

सबसे पहले तो दीपावली पर्व की आप सब को ढेरों शुभकामनाएँ, शरद जी ने दो अंक और जोड़े अपने खाते में. पूर्वी जी जल्दी कीजिये विजेता बनिए और अपनी पसंद के गीतों की सूची भी तैयार कर भेज दीजिये....दीपो का ये त्यौहार आप सबके जीवन में भी ढेरों रोशनी, और अनगिनत खुशियाँ लेकर आये इसी दुआ के साथ इजाज़त लेते है...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

Shamikh Faraz said…
अरे प्रश्न बुझकों कहाँ कहाँ हो भई सब के सब.
पूर्वी जी का इन्त्ज़ार कर रहे थे ।
गीत है : दग़ा दगा़ वई वई वई
फ़िल्म : काली टोपी लाल रुमाल
दग़ा दग़ा वै वै वै
दग़ा दग़ा वै वै वै
हो गई तुमसे उल्फ़त हो गई) \-२
दग़ा दग़ा वै वै वै

यूँ ही राहों में खड़े हैं तेरा क्या लेते हैं
देख लेते हैं जलन दिल की बुझा लेते हैं |-२
आए हैं दूर से हम
तेरे मिलने को सनम
चेकुनम, चेकुनम, चेकुनम

दग़ा दग़ा वै वै वै ...

जान जलती है नज़र ऐसे चुराया न करो
हो ग़रीबों के दुखे दिल को दुखाया न करो |-२
आए हैं दूर से हम
तेरे मिलने को सनम
चेकुनम, चेकुनम, चेकुनम

दग़ा दग़ा वै वै वै ...

हम क़रीब आते हैं तुम और जुदा होते हो
लो चले जाते हैं काहे को ख़फ़ा होते हो |-२
अब नहीं आएँगे हम
तेरे मिलने को सनम
चेकुनम, चेकुनम, चेकुनम

दग़ा दग़ा वै वै वै ...
manu said…
aasan sawal hai shaayad...
:)
सवाल आसान नही था, मगर शरद जी नें आसान कर दिया. शरद जी को मानना पडेगा.
purvi said…
सभी को दीपावली की शुभकामनाएं.

शरद जी बहुत बहुत बधाई.

सुजोय जी,
आपको गीतों की सूची जल्द ही भेजूंगी.

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