ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 232
कहते हैं कि क़िस्मत में जो रहता है, वही होता है। शुरु से ही इस बात पर बहस चलती आ रही है कि क़िस्मत बड़ी है या मेहनत। यक़ीनन इस दुनिया में मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन इस बात को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि क़िस्मत का भी एक बड़ा हाथ होता है हर किसी की ज़िंदगी में। ख़ैर, यह मंच सही जगह नहीं है इस बहस में जाने का, लेकिन आज का जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं वह क़िस्मत के खेल की ही बात कहता है। संगीतकार रवि फ़िल्मी दुनिया में आए थे एक गायक बनने के लिए, लेकिन बन गए संगीतकार। शायद यह भी उनके क़िस्मत में ही लिखा था। इसमें कोई दोराय नहीं कि बतौर संगीतकार उन्होने हमें एक से एक बेहतरीन गीत दिए हैं ५० से लेकर ८० के दशक तक। लेकिन शुरुआत में उनकी दिली तमन्ना थी कि वो एक गायक बनें। ख़ुद संगीतकार बन जाने के बाद ना तो उनके फ़िल्मों के निर्माताओं ने उन्हे कभी गाने का मौका दिया और ना ही किसी दूसरे संगीतकार ने उनसे गवाया। हालाँकि उनकी आवाज़ हिंदी फ़िल्मों के टिपिकल हीरो जैसी नहीं थी, लेकिन एक अजीब सी कशिश उनकी आवाज़ में महसूस की जा सकती है जो सुननेवाले को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। आज हम आपको रवि का गाया फ़िल्म 'एक फूल दो माली' का दार्शनिक गीत सुनवाने के लिए लाए हैं "क़िस्मत के खेल निराले मेरे भइया"। इस फ़िल्म के संगीतकार भी वो ही हैं, और सब से बड़ी बात कि इस गीत को उन्होने ही लिखा है। जी हाँ, फ़िल्म के पर्दे पर ज़रूर प्रेम धवन का नाम दिया गया था, लेकिन रवि जी ने ही अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह गीत उन्होने ही लिखा था। तो भई, आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर तो एक तरह से रवि जी का ही राज है।
हाल ही में हमने आपको रवि के संगीत निर्देशन में एक भजन सुनवाया था "दर्शन दो घनश्याम" और उनके बचपन का क़िस्सा भी बताया था कि किस तरह से वो सत्संग में जाकर भजन गाया करते थे। क्योंकि आज बात चली है रवि जी की गायकी की, तो आइए उसी इंटरव्यू (उजाले उनकी यादों के, विविध भारती) से कुछ और बातें जानें रवि जी की गायकी के बारे में। इंटरव्यू के इस अंश को पढ़कर आप भी यही बोल पड़ेंगे कि "क़िस्मत के खेल निराले मेरे भइया"। और अब, ओवर टू रवि जी। "आपको पता है रेडियो में गाने के लिए जिन्होने मेरा ऒडिशन लिया था वो और कोई नहीं बल्कि महान सितारिस्ट पंडित रविशंकर जी थे। उन्होने कहा कि मेरी आवाज़ अच्छी है और मुझे और रियाज़ करनी चाहिए। मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं अपनी रिकार्ड की हुई आवाज़ सुनूँ। १९४९ के आख़िर में एक बहुत बड़ा 'वर्ल्ड ट्रेड फ़ेयर' दिल्ली के राम लीला मैदान में आयोजित किया गया था। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ वहाँ गया। वहाँ बहुत सारे स्टॊल्स थे, मैनें देखा कि एक स्टॊल में 'वायर रिकार्डर' के नाम से कुछ रखा हुआ है। मैने दुकानदार से पूछा कि यह क्या है। उसने बताया कि इसमें आवाज़ रिकार्ड करके दोबारा बजाया जा सकता है। मैं अपनी रिकार्डेड आवाज़ सुनना चाह रहा था बहुत दिनों से, तो मैने सोचा कि यही अच्छा मौका है, लेकिन मैं दोस्तों के सामने नहीं करना चाहता था। इसलिए मैं अगले दिन फिर अकेला गया और जो गीत रिकार्ड करवाया वह था "तेरे कूचे में अरमानों की दुनिया लेकर आया हूँ"। जब उसने रिकार्डिंग् को बजाया, तो मैं सोच रहा था कि आवाज़ तो रफ़ी साहब से मिल रही है। (यह सुनकर विविध भारती के सारे उद्घोषक ज़ोर से हँस पड़े थे)। तो यह पहली बार मैने अपनी आवाज़ सुनी। मेरे दोस्त भी कहते थे कि मेरी आवाज़ अच्छी है और मुझे बम्बई में क़िस्मत आज़माने जाना ही चाहिए। मैं भी मानता था कि मैं बम्बई जाकर ज़िंदगी में कुछ कर सकता हूँ। जब P&T वालों ने मुझे पठानकोट स्थानांतरित करने का नोटिस दिया तो मैने तीन सुझाव दिए - पहला दिल्ली, दूसरा बम्बई, और तीसरा भारत का कोई और शहर। लेकिन मेरे अनुरोध को स्वीकारा नहीं गया और मुझे पठानकोट जाने का आदेश मिला। मैं निराश होकर घर आया और २० दिनों की छुट्टी लेकर बम्बई की ट्रेन में बैठ गया। मैं बम्बई में किसी को नहीं जानता था। यह १९४५ की बात है, तब तक मेरी शादी भी हो गई थी और एक बेटी भी थी। मैंने बम्बई की ट्रेन में गीतों की किताब पढ़कर समय बिताया।" दोस्तों, बम्बई में उतरने के बाद रवि साहब के संघर्ष का दौर शुरु हुआ, और आख़िर में वो हेमन्त कुमार के दरवाज़े तक पहुँच ही गए, जहाँ पर हेमन्त दा ने उन्हे कोरस में शामिल कर लिया। एकल गीत गाने का तो सुयोग नहीं हुया लेकिन हेमन्त दा उनकी संगीत प्रतिभा को पहचान गए और उन्हे अपना सहायक बना लिया। तो दोस्तों, आज बस यहीं तक, रवि साहब की दास्तान आगे भी जारी रहेगी जब भी कभी हम उनके गीत लेकर आएँगे इस महफ़िल में। सुनिए आज का यह गीत और टिप्पणी में ज़रूर लिखिएगा कि क़िस्मत के खेल के बारे में आपके क्या विचार हैं? क्या आप क़िस्मत पर विश्वास करते हैं? क्या आपको लगता है कि चाहे आदमी लाख मेहनत करे, उसकी मेहनत तभी रंग लाएगी जब उसकी क़िस्मत उस पर मुहर लगाएगी? कल फिर मिलेंगे इसी महफ़िल में।
किस्मत के खेल निराले मेरे भैया
किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे भैया ।
किस्मत के हाथ में दुनिया की डोर है
किस्मत के आगे तेरा कोई न ज़ोर है
सब कुछ है उसी के हवाले मेरे भैया ।
किस्मत में लिक्खा है जो सुख का सबेरा
कब तक रहेगा ये ग़म का आंधेरा
इक दिन तो मिलेंगे उजाले मेरे भैया ।
ये सच्चा तीरथ ऊँचा हिमालय
ये मन का मन्दिर सुख का शिवालय
धूनी यहीं पे तू रमा ले मेरे भैया ।
दुनिया में प्राणी क्या क्या सपने सजाए
किस्मत की आँधी उन्हे पल में मिटाए
बिगड़ी को कौन संभाले मेरे भैया
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस संगीतकार जोड़ी के एक पार्टनर की जयंती है कल.
२. ऋषिकेश मुखर्जी है इस फिल्म के निर्देशक.
३. इस रोमांटिक दोगाने के मुखड़े में शब्द है - "सर".
पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी बधाई एक बार फिर आपके ३३ अंक हो चुके हैं, इसी तरह से आते रहेंगें तो पूर्वी जी के लिए मुश्किलें खड़ी पर पायेंगें कुछ हद तक.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
कहते हैं कि क़िस्मत में जो रहता है, वही होता है। शुरु से ही इस बात पर बहस चलती आ रही है कि क़िस्मत बड़ी है या मेहनत। यक़ीनन इस दुनिया में मेहनत का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन इस बात को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि क़िस्मत का भी एक बड़ा हाथ होता है हर किसी की ज़िंदगी में। ख़ैर, यह मंच सही जगह नहीं है इस बहस में जाने का, लेकिन आज का जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं वह क़िस्मत के खेल की ही बात कहता है। संगीतकार रवि फ़िल्मी दुनिया में आए थे एक गायक बनने के लिए, लेकिन बन गए संगीतकार। शायद यह भी उनके क़िस्मत में ही लिखा था। इसमें कोई दोराय नहीं कि बतौर संगीतकार उन्होने हमें एक से एक बेहतरीन गीत दिए हैं ५० से लेकर ८० के दशक तक। लेकिन शुरुआत में उनकी दिली तमन्ना थी कि वो एक गायक बनें। ख़ुद संगीतकार बन जाने के बाद ना तो उनके फ़िल्मों के निर्माताओं ने उन्हे कभी गाने का मौका दिया और ना ही किसी दूसरे संगीतकार ने उनसे गवाया। हालाँकि उनकी आवाज़ हिंदी फ़िल्मों के टिपिकल हीरो जैसी नहीं थी, लेकिन एक अजीब सी कशिश उनकी आवाज़ में महसूस की जा सकती है जो सुननेवाले को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। आज हम आपको रवि का गाया फ़िल्म 'एक फूल दो माली' का दार्शनिक गीत सुनवाने के लिए लाए हैं "क़िस्मत के खेल निराले मेरे भइया"। इस फ़िल्म के संगीतकार भी वो ही हैं, और सब से बड़ी बात कि इस गीत को उन्होने ही लिखा है। जी हाँ, फ़िल्म के पर्दे पर ज़रूर प्रेम धवन का नाम दिया गया था, लेकिन रवि जी ने ही अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह गीत उन्होने ही लिखा था। तो भई, आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर तो एक तरह से रवि जी का ही राज है।
हाल ही में हमने आपको रवि के संगीत निर्देशन में एक भजन सुनवाया था "दर्शन दो घनश्याम" और उनके बचपन का क़िस्सा भी बताया था कि किस तरह से वो सत्संग में जाकर भजन गाया करते थे। क्योंकि आज बात चली है रवि जी की गायकी की, तो आइए उसी इंटरव्यू (उजाले उनकी यादों के, विविध भारती) से कुछ और बातें जानें रवि जी की गायकी के बारे में। इंटरव्यू के इस अंश को पढ़कर आप भी यही बोल पड़ेंगे कि "क़िस्मत के खेल निराले मेरे भइया"। और अब, ओवर टू रवि जी। "आपको पता है रेडियो में गाने के लिए जिन्होने मेरा ऒडिशन लिया था वो और कोई नहीं बल्कि महान सितारिस्ट पंडित रविशंकर जी थे। उन्होने कहा कि मेरी आवाज़ अच्छी है और मुझे और रियाज़ करनी चाहिए। मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं अपनी रिकार्ड की हुई आवाज़ सुनूँ। १९४९ के आख़िर में एक बहुत बड़ा 'वर्ल्ड ट्रेड फ़ेयर' दिल्ली के राम लीला मैदान में आयोजित किया गया था। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ वहाँ गया। वहाँ बहुत सारे स्टॊल्स थे, मैनें देखा कि एक स्टॊल में 'वायर रिकार्डर' के नाम से कुछ रखा हुआ है। मैने दुकानदार से पूछा कि यह क्या है। उसने बताया कि इसमें आवाज़ रिकार्ड करके दोबारा बजाया जा सकता है। मैं अपनी रिकार्डेड आवाज़ सुनना चाह रहा था बहुत दिनों से, तो मैने सोचा कि यही अच्छा मौका है, लेकिन मैं दोस्तों के सामने नहीं करना चाहता था। इसलिए मैं अगले दिन फिर अकेला गया और जो गीत रिकार्ड करवाया वह था "तेरे कूचे में अरमानों की दुनिया लेकर आया हूँ"। जब उसने रिकार्डिंग् को बजाया, तो मैं सोच रहा था कि आवाज़ तो रफ़ी साहब से मिल रही है। (यह सुनकर विविध भारती के सारे उद्घोषक ज़ोर से हँस पड़े थे)। तो यह पहली बार मैने अपनी आवाज़ सुनी। मेरे दोस्त भी कहते थे कि मेरी आवाज़ अच्छी है और मुझे बम्बई में क़िस्मत आज़माने जाना ही चाहिए। मैं भी मानता था कि मैं बम्बई जाकर ज़िंदगी में कुछ कर सकता हूँ। जब P&T वालों ने मुझे पठानकोट स्थानांतरित करने का नोटिस दिया तो मैने तीन सुझाव दिए - पहला दिल्ली, दूसरा बम्बई, और तीसरा भारत का कोई और शहर। लेकिन मेरे अनुरोध को स्वीकारा नहीं गया और मुझे पठानकोट जाने का आदेश मिला। मैं निराश होकर घर आया और २० दिनों की छुट्टी लेकर बम्बई की ट्रेन में बैठ गया। मैं बम्बई में किसी को नहीं जानता था। यह १९४५ की बात है, तब तक मेरी शादी भी हो गई थी और एक बेटी भी थी। मैंने बम्बई की ट्रेन में गीतों की किताब पढ़कर समय बिताया।" दोस्तों, बम्बई में उतरने के बाद रवि साहब के संघर्ष का दौर शुरु हुआ, और आख़िर में वो हेमन्त कुमार के दरवाज़े तक पहुँच ही गए, जहाँ पर हेमन्त दा ने उन्हे कोरस में शामिल कर लिया। एकल गीत गाने का तो सुयोग नहीं हुया लेकिन हेमन्त दा उनकी संगीत प्रतिभा को पहचान गए और उन्हे अपना सहायक बना लिया। तो दोस्तों, आज बस यहीं तक, रवि साहब की दास्तान आगे भी जारी रहेगी जब भी कभी हम उनके गीत लेकर आएँगे इस महफ़िल में। सुनिए आज का यह गीत और टिप्पणी में ज़रूर लिखिएगा कि क़िस्मत के खेल के बारे में आपके क्या विचार हैं? क्या आप क़िस्मत पर विश्वास करते हैं? क्या आपको लगता है कि चाहे आदमी लाख मेहनत करे, उसकी मेहनत तभी रंग लाएगी जब उसकी क़िस्मत उस पर मुहर लगाएगी? कल फिर मिलेंगे इसी महफ़िल में।
किस्मत के खेल निराले मेरे भैया
किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे भैया ।
किस्मत के हाथ में दुनिया की डोर है
किस्मत के आगे तेरा कोई न ज़ोर है
सब कुछ है उसी के हवाले मेरे भैया ।
किस्मत में लिक्खा है जो सुख का सबेरा
कब तक रहेगा ये ग़म का आंधेरा
इक दिन तो मिलेंगे उजाले मेरे भैया ।
ये सच्चा तीरथ ऊँचा हिमालय
ये मन का मन्दिर सुख का शिवालय
धूनी यहीं पे तू रमा ले मेरे भैया ।
दुनिया में प्राणी क्या क्या सपने सजाए
किस्मत की आँधी उन्हे पल में मिटाए
बिगड़ी को कौन संभाले मेरे भैया
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस संगीतकार जोड़ी के एक पार्टनर की जयंती है कल.
२. ऋषिकेश मुखर्जी है इस फिल्म के निर्देशक.
३. इस रोमांटिक दोगाने के मुखड़े में शब्द है - "सर".
पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी बधाई एक बार फिर आपके ३३ अंक हो चुके हैं, इसी तरह से आते रहेंगें तो पूर्वी जी के लिए मुश्किलें खड़ी पर पायेंगें कुछ हद तक.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ROHIT RAJPUT
फिल्म -असली नकली 1962
गायक -लता मंगेशकर, मो. रफी
आज बहुत दिनों बाद यहाँ पर आना हुआ, थोडी देर से पहुंची पर " सर " की खोज में आखिर लगता है कि सही जगह पर पहुँच ही गयी.
कैसे हैं सब लोग? सब को पूर्वी की राम राम....
रोहित जी और पराग जी का स्कोर भी बढ़िया हो गया है, शरद जी फिर से सबसे आगे निकलने की दौड़ में हैं. सभी को हमारी बहुत शुभकामनाएं.
हृषिदा की फ़िल्मों में सिर्फ़ दो ही संगीतकार जोडी नें संगीत दिया था , एक शंकर जयकिशन , दूसरे लक्ष्मिकान्त प्यारेलाल . शंकरजी का जन्म दिन तो २५ अक्तूबर है. एल. पी. के जनम दिन नहीं मिलते(या मुझे नहीं पता)
एक ही फ़िल्म है सत्यकाम, जिसके तीन गाने हैं , कम सुने हुए. सुनना पडेंगे.....
ज़िंदगी है क्या के मुखडे में सर शब्द नहीं है.
अब बाकी लताजी के दो गाने हैं, वे मिल नहीं रहे हैं सुनने को-
दो दिन की ज़िंदगी,
अभी क्या सुनोगे,
श्री रवि जी के बारे में मुझे कुछ
बातें याद आ रही हैं जो मैंने कहीं पढ़ी या सुनी हैं. परन्तु आप जैसे दिग्गज जानकारों के सामने ज़ाहिर है कि मेरी सूचना हो सकता है उतनी सही न हो. अतः अनुरोध है कि यदि संभव हो सके तो खोज कर पुष्टि करने की कृपा करें. १. शायद संगीतकार रवि जी ने फिल्म 'वचन' में श्री चन्द्र जी के साथ ' रवि और चन्द्र' जोड़ी के रूप में संगीत दिया था. शायद एक गीत ' जब लिया हाथ में हाथ निभाना साथ मेरे सजना, देखो जी तुम भूल न जाना' जो बहुत लोकप्रिय हुआ था इसी फिल्म से था.
२. एक और गाना ' ओ बाबू, ओ बाबू, ओ जाने वाले बाबू एक पैसा दे दे" बहुत लोकप्रिय हुआ था. जिसके गीतकार भी संभवतः रवि जी ही थे और उन्होंने इसमें अपना स्वर भी दिया था.
३.क्या इसी भाव पर गाना ' ग़रीबों की सुनो वोह तुम्हारी सुनेगा. तुम एक पैसा दोगे वोह दस लाख देगा.' का संगीत भी रवि जी ने ही दिया था?
आपके आलेख से संगीत प्रेमियों को कितनी अनोखी जानकारी मिलती है जिसका जवाब नहीं.
आभार सहित,
अवध लाल
RV: Before Nagin, one Sharmaji was there whom I knew, one day he
asked me if I am interested in going on a 'mahurat'. I said what I
would do there. He then told me that I can interract with filmi
people there. It was the mahurat of Devendra Goel's film Ada. I went
there and saw Sharmaji. Also I noticed a young guy whom I knew. "arey
Kailash, tu yahaan kya kar raha hai?", I shouted in surprise. Once
Kailash was my neighbour in Delhi. He then told me that Devendra Goel
was his uncle and he has come for the mahurat of his uncle's film. He
them introduced me to his uncle 'aur baat waheen Khatam ho gayi'.
After that I kept on working with Hemantda in Filmistan.In 1951, no I
think its 1950, Babulal Chaturvedi was the Programme Incharge of All
India Radio. One day he called me and told that he wanted to record
lullabies of different parts of the country. He asked me to sing a
lullaby of Uttar Pradesh. I remembered my mother used to utter few
words, not by singing though, like "chanda mama door ki..... munne ko
de pyaali mein". I composed it and got it recorded in radio. They had
brought a child artiste Suman Hemadi in whose voice it got recorded.
VB: Suman Hemadi means Suman Kalyanpur?
RV: Yes, later she became Suman kalyanpur. Then , after few days,
Kailash came to me with a proposition. He told me that he can get me
the job of music director in his uncle's next film but the condition
is that his name would also be there as music director. I thought he
was just saying non-sense, so I agreed. But later I came to know that
he indeed persuaded Devendra Goel and I was doing the music of his
film. But soon i came to know that Kailash did not know even the 'M'
of music. His name was Kailash Chandra, so it was decided that the
name of the music director would appear as Ravi Chandra. One day Asha
Bhosle got irritated as Kailash was giving absurd suggestions to her.
VB: He had started interfering in your work?
RV: Yes, he was trying to show his power. Anyway, the picture was
completed. Devendra Goel liked my work and announced his next film
with me. But I objected and told him that I would do the film only on
condition that only my name will be there. I wont do if Kailash is
there. He was surprised and asked me the reason. When I told him the
whole story and that he did not know even the basics of music, he not
only threw him out but also wrote a letter to HMV to change the
credits of the last film and got the 'Chandra' part removed from all
records.