ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 222
राग यमन एक ऐसा राग है जिसकी उंगली थाम हर संगीत विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत सीखने के मैदान में उतरता है। इसके पीछे भी कारण है। राग यमन के असंख्य रूप हैं, कई नज़रिए हैं। यमन के मूल रूप को आधार बना कर बहुत से राग रागिनियाँ बनाई जा सकती है। यह राग मौका देती है संगीतज्ञों को नए नए प्रयोग करने के लिए, संगीत के नए नए आविष्कार करने के लिए। आज भी शास्त्रीय संगीत के गुरु अपने छात्रों को सब से पहले राग यमन पर दक्षता हासिल करने की सलाह दिया करते हैं क्योंकि एक बार यमन सिद्धहस्थ हो जाए तो बाक़ी के राग बड़ी आसानी से रप्त हो जाएँगे। वो कहते हैं ना कि "एक साधे सब साधे", बस वही बात है, एक बार यमन को मुट्ठी में कर लिया तो आप इस सुर संसार पर राज कर सकते हैं। जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि राग यमन के बहुत सारे रूप हैं, तो उनमें एक महत्वपूर्ण है राग यमन कल्याण। आज 'दस राग दस रंग' में इसी राग की बारी। इस राग पर फ़िल्मों में असंख्य गीत बने हैं, जिनमें से एक बेहद सुरीला और उत्कृष्ट गीत हम चुन कर लाए हैं। यह गीत फ़िल्म 'ममता' का है, जिसे रोशन के संगीत में और मजरूह साहब के बोलों पर हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर ने गाया है। "छुपा लो युं दिल में प्यार मेरा, के जैसे मंदिर में लौ दीये की"। संगीत जितना मधुर है, उतने ही मीठे हैं इस गीत के शब्द, और वैसा ही न्याय लता जी और हेमन्त दा ने किया है इस गीत के साथ। इस गीत को सुनते हुए जैसे हम किसी और ही दैविय दुनिया में पहुँच जाते हैं, एक पवित्र वातावरण हमारे आसपास पैदा हो जाता है। "ये सच है जीना था पाप तुम बिन, ये पाप मैने किया है अब तक, मगर है मन में छवि तुम्हारी के जैसे मंदिर में लौ दीए की"।
विविध भारती द्वारा रिकार्ड किए हेमन्त कुमार के 'जयमाला' कार्यक्रम में इस गीत को प्रस्तुत करते वक़्त हेमन्त दा ने कहा था - "अब एक गाना संगीतकार रोशन का भी सुन लीजिए। रोशन मेरे बहुत बहुत पुराने दोस्तों में से थे। बम्बई आने के बाद उनसे बहुत मेलजोल बढ़ा। वो मेलडी पर मरता था, पागल पागल सा, मेलडी जहाँ पर होता था वो पागल हो जाता था। फ़िल्म 'ममता' बन रही थी, उसमें मेरा कोई गाना नहीं था। रोशन ने मुझे बुलाया और कहा कि इस फ़िल्म का एक गीत आपको गाना है। राग यमन और भक्ति रस को मिलाकर यह गाना बनाया था उन्होने। मैने जब वह गाना उनसे सुना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैने उसमें पूरी जान डाल दी। और लता की बात तो छोड़ ही दीजिए, वो तो अच्छा गाएगी ही!" तो दोस्तों, रोशन के इस कालजयी रचना को सुनने से पहले आइए उनके द्वारा बनाए हुए कुछ और ऐसे गीतों पर एक नज़र दौड़ाएँ जिन्हे उन्होने इसी राग को आधार बना कर तैयार किया था। फ़िल्म 'दिल ही तो है' का "निगाहें मिलाने को जी चाहता है", फ़िल्म 'भीगी रात' में "दिल जो ना कह सका वही राज़-ए-दिल कहने की रात आयी", फ़िल्म 'चित्रलेखा' में "मन रे तू काहे ना धीर धरे" और "संसार से भागे फिरते हो", फ़िल्म 'बरसात की रात' में "ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात", इत्यादि। तो आइए सुनते हैं फ़िल्म 'ममता' में राग यमन और भक्ति रस का संगम, जिन पर उतने ही असरदार बोल लिखे हैं शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने। हाँ, आपको यह भी बता दें कि १९६६ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार और सुचित्रा सेन। इस फ़िल्म में लता जी के गाए तीन एकल गीत "रहें ना रहें हम", "हम गवन्वा ना जइबे हो" तथा "रहते थे कभी जिनके दिल में" ख़ासा लोकप्रिय हुआ था, लेकिन आज का प्रस्तुत गीत भी उनके मुक़ाबले कुछ कम नहीं। सुनिए...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. अगला गीत है राग शिवरंजनी पर आधारित.
२. संगीतकार हैं शंकर जयकिशन इस युगल गीत के.
३. हसरत के लिखे इस गीत में आपके इस प्रिय जालस्थल के नाम से मुखडा खुलता है.
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी ३८ अंक लेकर आप पूर्वी जी को टक्कर दे रहे हैं, पर अभी भी फासला है ४ अंकों का, शरद जी और स्वप्न जी आप दोनों भी मैदान में हैं, बेझिझक जवाब दिया कीजिये...इन्द्र नील जी आपकी बात से १०० फीसदी सहमत हैं हम भी...राज भाटिया जी आर के पुरम के किस थियटर में देखी थी आपने फिल्म ये भी तो बताईये...:) दिलीप जी प्रस्तुत शृंखला में आपसे बहुत सी जानकारियों की अपेक्षा रहेगी हम सभी श्रोताओं को....नियमित रहिएगा
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
राग यमन एक ऐसा राग है जिसकी उंगली थाम हर संगीत विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत सीखने के मैदान में उतरता है। इसके पीछे भी कारण है। राग यमन के असंख्य रूप हैं, कई नज़रिए हैं। यमन के मूल रूप को आधार बना कर बहुत से राग रागिनियाँ बनाई जा सकती है। यह राग मौका देती है संगीतज्ञों को नए नए प्रयोग करने के लिए, संगीत के नए नए आविष्कार करने के लिए। आज भी शास्त्रीय संगीत के गुरु अपने छात्रों को सब से पहले राग यमन पर दक्षता हासिल करने की सलाह दिया करते हैं क्योंकि एक बार यमन सिद्धहस्थ हो जाए तो बाक़ी के राग बड़ी आसानी से रप्त हो जाएँगे। वो कहते हैं ना कि "एक साधे सब साधे", बस वही बात है, एक बार यमन को मुट्ठी में कर लिया तो आप इस सुर संसार पर राज कर सकते हैं। जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि राग यमन के बहुत सारे रूप हैं, तो उनमें एक महत्वपूर्ण है राग यमन कल्याण। आज 'दस राग दस रंग' में इसी राग की बारी। इस राग पर फ़िल्मों में असंख्य गीत बने हैं, जिनमें से एक बेहद सुरीला और उत्कृष्ट गीत हम चुन कर लाए हैं। यह गीत फ़िल्म 'ममता' का है, जिसे रोशन के संगीत में और मजरूह साहब के बोलों पर हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर ने गाया है। "छुपा लो युं दिल में प्यार मेरा, के जैसे मंदिर में लौ दीये की"। संगीत जितना मधुर है, उतने ही मीठे हैं इस गीत के शब्द, और वैसा ही न्याय लता जी और हेमन्त दा ने किया है इस गीत के साथ। इस गीत को सुनते हुए जैसे हम किसी और ही दैविय दुनिया में पहुँच जाते हैं, एक पवित्र वातावरण हमारे आसपास पैदा हो जाता है। "ये सच है जीना था पाप तुम बिन, ये पाप मैने किया है अब तक, मगर है मन में छवि तुम्हारी के जैसे मंदिर में लौ दीए की"।
विविध भारती द्वारा रिकार्ड किए हेमन्त कुमार के 'जयमाला' कार्यक्रम में इस गीत को प्रस्तुत करते वक़्त हेमन्त दा ने कहा था - "अब एक गाना संगीतकार रोशन का भी सुन लीजिए। रोशन मेरे बहुत बहुत पुराने दोस्तों में से थे। बम्बई आने के बाद उनसे बहुत मेलजोल बढ़ा। वो मेलडी पर मरता था, पागल पागल सा, मेलडी जहाँ पर होता था वो पागल हो जाता था। फ़िल्म 'ममता' बन रही थी, उसमें मेरा कोई गाना नहीं था। रोशन ने मुझे बुलाया और कहा कि इस फ़िल्म का एक गीत आपको गाना है। राग यमन और भक्ति रस को मिलाकर यह गाना बनाया था उन्होने। मैने जब वह गाना उनसे सुना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैने उसमें पूरी जान डाल दी। और लता की बात तो छोड़ ही दीजिए, वो तो अच्छा गाएगी ही!" तो दोस्तों, रोशन के इस कालजयी रचना को सुनने से पहले आइए उनके द्वारा बनाए हुए कुछ और ऐसे गीतों पर एक नज़र दौड़ाएँ जिन्हे उन्होने इसी राग को आधार बना कर तैयार किया था। फ़िल्म 'दिल ही तो है' का "निगाहें मिलाने को जी चाहता है", फ़िल्म 'भीगी रात' में "दिल जो ना कह सका वही राज़-ए-दिल कहने की रात आयी", फ़िल्म 'चित्रलेखा' में "मन रे तू काहे ना धीर धरे" और "संसार से भागे फिरते हो", फ़िल्म 'बरसात की रात' में "ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात", इत्यादि। तो आइए सुनते हैं फ़िल्म 'ममता' में राग यमन और भक्ति रस का संगम, जिन पर उतने ही असरदार बोल लिखे हैं शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने। हाँ, आपको यह भी बता दें कि १९६६ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार और सुचित्रा सेन। इस फ़िल्म में लता जी के गाए तीन एकल गीत "रहें ना रहें हम", "हम गवन्वा ना जइबे हो" तथा "रहते थे कभी जिनके दिल में" ख़ासा लोकप्रिय हुआ था, लेकिन आज का प्रस्तुत गीत भी उनके मुक़ाबले कुछ कम नहीं। सुनिए...
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. अगला गीत है राग शिवरंजनी पर आधारित.
२. संगीतकार हैं शंकर जयकिशन इस युगल गीत के.
३. हसरत के लिखे इस गीत में आपके इस प्रिय जालस्थल के नाम से मुखडा खुलता है.
पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी ३८ अंक लेकर आप पूर्वी जी को टक्कर दे रहे हैं, पर अभी भी फासला है ४ अंकों का, शरद जी और स्वप्न जी आप दोनों भी मैदान में हैं, बेझिझक जवाब दिया कीजिये...इन्द्र नील जी आपकी बात से १०० फीसदी सहमत हैं हम भी...राज भाटिया जी आर के पुरम के किस थियटर में देखी थी आपने फिल्म ये भी तो बताईये...:) दिलीप जी प्रस्तुत शृंखला में आपसे बहुत सी जानकारियों की अपेक्षा रहेगी हम सभी श्रोताओं को....नियमित रहिएगा
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
आवाज़ दे के हमें तुम बुलाओ
मुहोब्बत में इतना न हमको सताओ
अभी तो मेरी ज़िन्दगी है परेशां
कहीं मर के हो खाक भी न परेशां
दिये की तरह से न हमको जलाओ - मुहोब्ब्त में
रफ़ी :
मैं सांसों के हर तार में छुप रहा हूँ
मैं धडकन के हर राग में बस रहा हूँ
ज़रा दिल की जानिब निगाहे झुकाओ - मुहोब्बत में
लता :
न होंगे अगर हम तो रोते रहोगे
सदा दिल का दामन भिगोते रहोगे
जो तुम पर मिटा हो उसे न मिटाओ - मुहोब्बत में
इस राग को देर रात में गाया जाता है....
शरद जी बहुत बहुत बधाई...
अब तो हम आ ही नहीं पाते हैं समय से क्या करें...
राग यमन की बंदिश , मजरूह के रूहानी बोल, हेमंत दा और लता के स्वार्गिक , अलौकिक सुर, और रोशन का मधुरतम मेलोडी लिये हुए संगीत...
बस इस समर्पण का आत्मिक भाव लिये हुए गीत का जवाब नहीं.
मजरूह के बोलों में शुद्ध हिन्दी के आध्यात्मिक और पाकीज़गी लिये हुए फ़लसफ़े का दर्शन होता है.सादे सीधे हृदय के अंतर्मन को चीरते ये भावशब्द-
ये आग बिरहा की मत लगाना , के जल के मैं राख हो चुकी हूं,
ये राख माथे पे मैने रख ली - के जैसे मंदिर में लौ दिये की...
हेमंत दा के स्वर याने मंदिर के गर्भगृह में से आती एक सारगर्भित आवाज़ जैसे कि कोई साधु भजन गा रहा हो, लता की आवाज़ याने की स्वच्छ सफ़ेद साडी़ पहने समर्पित नारी का अंतर्मन,
अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है.