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ये रात ये चांदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ....पुरअसर आवाज़ संगीत और शब्दों का शानदार संगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 247

साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन को एक साथ समर्पित शृंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को' में आप सभी का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है। लता, गीता, तलत, किशोर और मन्ना दा के बाद आज जिस गायक की आवाज़ साहिर साहब के बोलों पर और दादा बर्मन की धुनों पर हवाओं में गूँजेंगी, उस गायक का नाम है हेमन्त कुमार। जब भी साहिर और सचिन दा की एक साथ बात चलती है, यकायक 'नवकेतन' बैनर की याद भी आ ही जाती है। और क्यों ना आए, इसी बैनर के तले ही तो इस गीतकार - संगीतकार जोड़ी ने ५० के दशक के शुरुआती सालों में एक से एक बेहतरीन नग़में हमें दिए थे। सचिन दा ने नवकेतन बैनर की पहली फ़िल्म 'अफ़सर' में संगीत दिया था १९५० में। उसके बाद १९५१ में आई सुपरहिट फ़िल्म 'बाज़ी', जिसका एक गीत आप सुन चुके हैं। १९५२ में नवकेतन ने बनाई 'आंधियाँ', लेकिन इसके संगीत के लिए चुना गया था उस्ताद अली अक़बर ख़ान साहब को। देव आनंद और कल्पना कार्तिक अभिनीत यह फ़िल्म नहीं चली, लेकिन हेमन्त दा का गाया "दिल है किसी दीवाने का" गीत मशहूर हुआ था। १९५२ में भले ही बर्मन दादा ने 'आंधियाँ' का संगीत न दिया हो, लेकिन देव आनंद के साथ वे जुड़े रहे और इसी साल, यानी कि १९५२ में निर्देशक गुरु दत्त ने बर्मन दादा को चुना फ़िल्म 'जाल' के लिए, जिसके देव साहब नायक थे। 'जाल' बनी थी 'फ़िल्म आर्ट्स प्रोडक्शन्स' के बैनर तले, और इस फ़िल्म में देव साहब की नायिका बनीं गीता बाली। और इस फ़िल्म में बर्मन दा का एक बार फिर से साथ हुआ साहिर साहब का, और एक बार फिर 'बाज़ी' जैसी कामयाबी रिपीट हुई। आज हम आपको सुनवा रहे हैं इसी फ़िल्म 'जाल' का एक सदाबहार गीत "ये रात ये चांदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ"।

फ़िल्म 'जाल' के संगीत की जहाँ तक बात है, और ख़ास तौर से प्रस्तुत गीत की जहाँ तक बात है, इस गीत के दो वर्ज़न हैं। एक हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर की युगल आवाज़ों में है जो कुछ ग़मगीन अंदाज़ में गाया गया है जुदाई के दर्द को उभारते हुए; और दूसरा वर्ज़न हेमन्त दा की एकल आवाज़ में है, जो एक फ़ास्ट और पॊज़िटिव मूड में है, और ऒर्केस्ट्रेशन भी कमाल का हुआ है। हेमन्त दा की आवाज़ में गीत के शुरु में जो आलाप है, और इंटर्ल्युड में जो हमिंग् है, उन्हे सुनकर एक अजीब सी अनुभूति होती है, जिसे सिर्फ़ सुन कर ही महसूस किया जा सकता है, यहाँ आलेख में पढ़कर नहीं। साहिर साहब एक अंतरे में लिखते हैं "पेड़ों की शाख़ों पे सोयी सोयी चांदनी, तेरे ख़यालों मे खोयी खोयी चांदनी, और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी, रात ये बहार की फिर कभी ना आएगी, दो एक पल और है ये समां, सुन जा दिल की दास्ताँ"। आप ही कहें कि हम भला क्या तारीफ़ करें ऐसे शब्दों की। प्रकृति के सौंदर्य का वास्ता देकर जिस तरह से साहिर साहब के नायक नायिका को अपने पास बुला रहा है, बस कमाल है! इसी फ़िल्म में लता जी का गाया एक गीत है "पिघला है सोना दूर गगन पर", इस तरह के गीत साहिर जैसे गीतकारों की कलम से ही निकल सकता है। फ़िल्म 'जाल' गोवा की पृष्ठभूमी पर बनाई गई थी, जब पोर्चुगीज़ लोगों की यहाँ कॉलोनी हुआ करती थी। ऐसे में फ़िल्म के संगीत में वैसी संस्कृति को दर्शाना अनिवार्य था। तभी तो बर्मन दादा ने "चोरी चोरी मेरी गली आना है बुरा" में बैंजो, ट्रम्पेट जैसे साज़ों का इस्तेमाल कर एक बड़ा ही सुंदर गीत बनाया था जिसे लता जी और साथियों ने गाया था। और इन सब गीतों में बर्मन दादा के सहायक रहे एन. दत्ता, जो बाद में ख़ुद स्वतंत्र संगीतकार भी बने। कुल मिलाकर 'जाल' एक सफल संगीतमय फ़िल्म साबित हुई जिसने देव आनंद, गुरु दत्त, साहिर लुधियानवी और सचिन देव बर्मन के मुकुट पर एक और मयूरपंख लगा दिया। तो आइए, हेमन्त दा की पुरसर एकल आवाज़ का आनंद उठाते हैं। इस गीत को सुनते हुए महसूस कीजिए किसी के इंतज़ार का दर्द।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (पहले तीन गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी और पूर्वी एस जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. एक दर्द भरा गीत कल सुनेंगें हम सचिन दा की पुण्यतिथि पर.
२. साहिर ने उंडेला है सारे जहाँ का दर्द इस गीत में.
३. एक अंतरे की पहले पंक्ति में शब्द है -"लाख".

पिछली पहेली का परिणाम -
चलिए आखिरकार हमारे पराग जी भी बन ही गए विजेता, हालाँकि ये बहुत पहले हो जाना चाहिए था, खैर देर से ही सही.....ढोल नगाडे तो बज ही गए.....दोस्तों ज़ोरदार तालियों के साथ स्वागत करें हमारे चौथे विजेता पराग सांकला जी का. वैसे तो पराग जी के चुने गीता दत्त जी के १० मधुर गीत हम जल्द ही सुनेंगें आने वाली शृंखला में, पर गीता जी के इतर भी हम चाहेंगें कि आप अपनी पसंद हमें जल्द से जल्द लिख भेजें. राज सिंह और समीर लाल जी आप दोनों को बहुत दिनों बाद देखकर अच्छा लगा. मुरली जी, पूर्वी जी, राज जी और शरद जी, आप सब का भी आभार.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

AVADH said…
दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना.
अवध लाल
लाख यहां झोली फ़ैलाले

दुखी नम मेरे सुन मेरा कहना
AVADH said…
हेमंत दा की गुरु गंभीर आवाज़ में गीत के अंत में यह गूँज आती है कि सुन जा दिल की दास्ताँ... दास्ताँ ...दास्ताँ. मुझे यह अनुभव होता है कि अगर किस्मत से हेमंत दा से कभी मुलाक़ात हुई होती और उनसे केवल एक ही शब्द सुनना होता तो मेरी प्रार्थना होती कि 'दास्ताँ' गा कर धन्य कर दीजिये.
अवध लाल
दुखी मन मेरे , सुन मेरा कहना,
जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना..

दर्द हमारा कोई ना जाने, अपनी गरज के सब है दिवाने,
किसके आगे रोना रोये, देश पराया लोग बेगाने...
दुखी मन मेरे.....

लाख यहां झोली फ़ैलाले, कुछ नहीं देंगे इस जग वाले,
पत्थर के दिल मोम ना होंगे,
चाहे जितना नीर बहा ले...

दुखी मन मेरे,

अपने लिये कब है ये मेले , हम है हर मेले में अकेले,
क्या पायेगा उसमें रह कर , जो दुनिया जीब्वन से खेले,

दुखी मन मेरे...

फ़िल्म फ़ंटूश...
हेमंत दा का स्वच्छ, पवित्र और गांभिर्य भरा स्वर यूं एहसास दिलाता है, कि जैसे कोई साधु मंदिर में किर्तन कर रहा हो, बहजन गा रहा हो.

एस डी इस मामले में खब्ती थे, कि गाने के मूड और कंपोज़िशन के आधार पर वे गायक का चुनाव करते थे.

प्यासा फ़िल्म में जाने वो कैसे लोग थे- में जब उन्होने हेमंत दा को चुना तो साहिर को ये गंवारा नहीं हुआ, और वे रफ़ी साहब के लिये ज़िद करने लगे.उन्होनें एस डी का मज़ाक भी उडाया. बाद में ये गीत बडा ही मक्बूल हुआ, मगर सचिन दा के और साहिर के रिश्ते खट्टे हो गये.
Parag said…
दिलीप जी को बहुत बधाई.

सुजॉय जी, आप भारतीय समयानुसार शाम के ६:३० को पहेली प्रस्तुत करते है, जो यहाँ पर सुबह के ६ होते है. अब तो डे लाईट सेविंग होने के बाद तो यहाँ पर सुबह के ५ बजे होंगे. इतना जल्दी कम्पूटर पर आना काफी मुश्कील हो जाता है. और जैसा मैंने पहले भी कहा था की मेरा फ़िल्मी गीतोंका ज्ञान ज्यादातर गीता दत्त जी के गानोंतक ही सीमित है. इसके बावजूद मैंने अपनी तरफ से कोशीश की है और आगे भी करता रहूँगा.

आभारी
पराग
पराग जी की बात में दम दिखाई देता है । अदा जी को तथा विदेश में रहने वालओं को भी समय की परेशानी थी । यदि पहेली का समय रात को ९.०० बजे के आसपास कर दिया जावे तो बहुत से विदेश में रहने वाले भी हिस्सा ले सकते हैं । दिलीप जी बधाई !
Murari Pareek said…
dilip ji ka kahanaa durust hai hum aaj let ho gaye !!! shani aur ravi ko der honaa hi hai!!!
Naresh said…
"ye rat ye chandni phir kaha" ye gana sukhad ahsas dilata hai. gmbhir mahol me bhi rumaniyat paida karta hai.
Naresh
Shamikh Faraz said…
सुन्दर गीत.

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