Skip to main content

फ़िक्र करे फुकरे....मिका ने दिया खुश रहने का नया मन्त्र

ताजा सुर ताल (18)

ताजा सुर ताल में आज सुनिए प्रीतम और जयदीप सहानी का रचा ताज़ा हिट गीत

सजीव - सुजॉय, कभी कभी मन करता है कि कुछ ऐसे मस्ती भरे गीत सुनें की सारे गम और फ़िक्र दूर हट जाएँ...क्या आपका भी मन होता है ऐसा कभी...

सुजॉय - पंजाबी धुन और बोलों से सजे ढेरों गीत है ऐसे हिंदी फिल्मों में जिसमें मस्ती जम कर भरी है...."नि तू रात खड़ी थी छत पे कि मैं समझा कि चाँद निकला", "ये देश है वीर जवानों का", "नि मैं यार मनाना नी चाहे लोग बोलियाँ बोले", और हाल के बरसों में तो जैसे हिट गीत बनाने का फ़ार्मूला जैसे बन गया है पंजाबी संगीत का आधार.

सजीव - बिल्कुल! 'जब वी मेट' के "मौजा ही मौजा" और "नगाड़ा नगाड़ा" के बाद तो जैसे पंजाबी लोक धुनों के साथ रीमिक्स फ़िल्म संगीत पर छा सा गया है।

सुजॉय - 'जब वी मेट' से याद आया सजीव कि इन दिनों शाहीद कपूर के नए फ़िल्म की प्रोमो ज़ोर शोर से हर चैनल पर चल रहा है।

सजीव - कहीं तुम्हारा इशारा 'दिल बोले हड़िप्पा' की तरफ़ तो नहीं?

सुजॉय - बिल्कुल! शाहीद और पंजाबी धुनों का तो जैसे चोली दामन का साथ रहा है। 'जब वी मेट' के अलावा बरसों पहले आयी फ़िल्म 'फ़िदा' में भी एक गीत था "अज वे माही लेट्स डू बल्ले बल्ले" जो काफ़ी चला था।

सजीव - सुजॉय, ऐसे थिरकते नग़में भले ही बहुत लम्बी रेस के घोड़े न हों, लेकिन जब फ़िल्म रिलीज़ होती है तो ऐसे गानें फ़िल्म को प्रोमोट करने में काफ़ी हद तक सहायक होते हैं। कुछ दिनों के लिए ही सही लेकिन ये गानें लोगों की ज़ुबान पर चढ़ते हैं और फ़िल्म को भी कामयाब बनाते हैं। और फ़िल्म निर्माण एक कला होने के साथ साथ व्यवसाय भी है, इसलिए इस पक्ष को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।

सुजॉय - ख़ैर! आज हम बात कर रहे हैं 'दिल बोले हड़िप्पा' की। पहली बार रानी मुखर्जी और शाहीद कपूर की जोड़ी बनी है, और इस फ़िल्म से लोगों को काफ़ी सारी उम्मीदें भी हैं।

सजीव - सुजॉय, क्या तुम्हे 'हड़िप्पा' शब्द का अर्थ पता है?

सुजॉय - अब तक तो पता नहीं था, लेकिन क्योंकि मैं चंडीगढ़ में रहता हूँ, इसलिए मेरे काफ़ी सारे पंजाबी दोस्त हैं, जिन्होने मुझे बताया कि 'हड़िप्पा' का क्या मतलब है। दरसल 'हड़िप्पा' भंगड़ा में इस्तेमाल होने वाला एक शब्द है, ठीक वैसे ही जैसे 'बल्ले बल्ले' का इस्तेमाल होता है। जिस तरह से 'बल्ले बल्ले' का अर्थ होता है 'hurray', उसी तरह से 'हड़िप्पा' का अर्थ होता है 'bravo'! 'चक दे' भी कुछ कुछ इसी तरह का शब्द है।

सजीव - वाह! ये तो तुमने बड़ी अच्छी जानकारी दी। वैसे मैने सुना है कि पहले इस फ़िल्म का नाम सिर्फ़ 'हड़िप्पा' सोचा गया था। लेकिन बाद में फ़िल्म के निर्माता आदित्य चोपड़ा को पता चला कि 'हड़िप्पा' शीर्षक संजय लीला भंसाली ने पहले से ही अपने नाम दर्ज कर चुके हैं। इसलिए इसे बदल कर 'दिल बोले हड़िप्पा' कर दिया गया।

सुजॉय - यह तो बड़ी नई बात पता चली। इसका मतलब यह कि भंसाली जी की भी फ़िल्म आने वाली है 'हड़िप्पा'। अच्छा सजीव, इससे पहले कि हम आज के गीत जो कि है इस फ़िल्म का शीर्षक गीत, सुनवाएँ, क्या आप को कोई ऐसा हिंदी फ़िल्मी गीत याद आ रहा है जिसमें 'हड़िप्पा' शब्द का इस्तेमाल हुआ था?

सजीव - बिल्कुल सुजॉय, मुझे कम से कम एक गीत तो ज़रूर याद है। लता जी और किशोर दा ने ज़ीनत अमान और देव आनंद की फ़िल्म 'वारैंट' में एक गीत गाया था "लड़ी नजरिया लड़ी, चली रे फुलझड़ी, पड़ी शुभ घड़ी, ये घड़ी खड़ी है हाथों में लिए प्रेम हथकड़ी, हड़िप्पा लड़ी हड़िप्पा लड़ी"।

सुजॉय - बिल्कुल, मैं भी इसी गीत की ओर इशारा कर रहा था। अब आइए बात करते हैं 'दिल बोले हड़िप्पा' के टाइटल गीत की। मिका सिंह, सुनिधि चौहान और साथियों का गाया यह गीत है। जयदीप साहनी ने लिखा है। सजीव, जयदीप साहनी आज के दौर के एक ऐसे फ़िल्म लेखक और गीतकार हैं जो इस पीढ़ी के चंद अग्रणी लेखकों में से एक हैं।

सजीव - हाँ, प्रसून जोशी के बाद तो मुझे जयदीप ही ऐसे हैं जो कहानी, संवाद, स्क्रीनप्ले और साथ ही गीतकारिता भी बाख़ूबी निभा रहे हैं। क्या तुम जयदीप के करीयर की महत्वपूर्ण फ़िल्मों के बारे में कुछ बता सकते हो?

सुजॉय -सन् २००० में 'जंगल', २००२ में 'कंपनी' जैसी फ़िल्में लिख कर जयदीप का काफ़ी नाम हो गया था। लेकिन सब से ज़्यादा ख्याति उन्हे जिन तीन फ़िल्मों से मिली, वो फ़िल्में हैं सन् २००५ की 'बण्टी और बबली' (स्क्रीनप्ले व संवाद), २००६ का 'खोंसला का घोंसला' (कहानी, स्क्रीनप्ले व संवाद), २००७ की सुपरहिट फ़िल्म 'चक दे इंडिया' (कहानी, गीतकार)। इन सब के अलावा 'आजा नचले', 'ब्लफ़ मास्टर', 'जॉनी ग़द्दार' और 'रब ने बना दी जोड़ी' में उनके लिखे गानें ख़ूब पसंद किए गए। और अब 'दिल बोले हड़िप्पा'।

सजीव - इस गीत के बोल हैं "भूल फ़िकरा, है जिगरा, तो संग मेरे बोल हड़िप्पा"।

सुजॉय - यानी कि अगर जिगरवाले हो तो सब फ़िक्र छोड़ कर मेरे साथ साथ बोल 'हड़िप्पा'। मैनें इस फ़िल्म की कहानी पढ़ी है, लेकिन मैं यहाँ नहीं बताउँगा क्योंकि जो लोग थियटर में जा कर इस फ़िल्म को देखने की सोच रहे हैं वो शायद मुझ से नाराज़ हो जाएँ, और होना भी चाहिए।

सजीव - इस फ़िल्म के संगीतकार हैं प्रीतम, जो कि इस तरह के पंजाबी धुनों के लिए जाने जाते हैं। जब भी कोई फ़िल्म निर्माता उन्हे अपनी फ़िल्म के साइन करवाते हैं तो उनसे इस तरह का एक गीत ज़रूर बनवा लेते हैं। पता है प्रीतम जब विविध भारती पर इन्टरव्यू देने के लिए आए थे तो उन्होने उसमें कहा था कि जब 'जब वी मेट' के बाद वो पंजाब गए तो वहाँ बैनर पर उनका नाम लिखा गया था 'प्रीतम सिंह'। लोग अक्सर भूल जाते हैं कि इस तरह का चुस्त पंजाबी धुनें बनाने वाले संगीतकार प्रीतम सिंह नहीं बल्कि बंगाली बाबूमोशाय प्रीतम चक्रबर्ती हैं।

सुजॉय - तो चलिए, अब देर किस बात की, सुनते हैं 'दिल बोले हड़िप्पा', जो आज कल लोगों के होठों की शान बना हुआ है।

सजीव - बोलों में बहुत ही गूढ़ पंजाबी भाषा का इस्तेमाल हुआ है. मुझे और सुजॉय दोनों को पंजाबी तो नहीं आती है, इसलिए यदि प्रस्तुत बोलों में कोई गलती रह गयी हो तो हमें बताएं -

दुनिया फिरंगी स्यापा है,
फ़िक्र ही गम का पापा है,
अपना तो बस ये जापा है
फ़िक्र करे फुकरे,
चुन्गम है चब्बी जा,
हैण्ड पम्प है डब्बी जा,
लाइफ का जूस कड्डी जा,
फ़िक्र करे फुकरे,
खुश रहने का नहीं लगता कोई टैक्स ओये रब्बा,
ओये भूल फिकरा है जिगरा, तो संग मेरे बोल हडिप्पा,
ओये भूल फिकरा है जिगरा, तो संग मेरे बोल हडिप्पा...

कोठी न माल हडिप्पा,
न गोरे गाल हडिप्पा,
नहीं जाने तेरे नाल, चाहे जितना संभाल,
छड़ मिटटी डाल हडिप्पा,
खुशियाँ तू घर कर ले,
हाथ दोनों विच भर ले,
अरे खब्बा हो या सज्जा, (कोई इसके माने बताएं हमें :)

नज़रों से बोल हडिप्पा,
कोई जो कोल हडिप्पा,
न करी ज्यादा गोल मोल,
तेरी खुल जानी पोल,
ये दिल का ढोल हडिप्पा,
डर्बी हो या ढाका,
रब तेरा हो राखा,
पड़ने दे तू टिप्पा (कोई इस लाइन के माने भी बताएं )

ओये भूल फिकरा...

और अब सुनिए ये गीत -



आवाज़ की टीम ने दिए इस गीत को 3 की रेटिंग 5 में से. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसा लगा? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत गीत को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.

क्या आप जानते हैं ?
आप नए संगीत को कितना समझते हैं चलिए इसे ज़रा यूं परखते हैं.किस नयी फिल्म में जावेद अख्तर और शंकर एहसान लॉय की जोड़ी लौटी है, कौन सी है वो जल्द आने वाली फिल्म? बताईये और हाँ जवाब के साथ साथ प्रस्तुत गीत को अपनी रेटिंग भी अवश्य दीजियेगा.

पिछले सवाल का सही जवाब दिया विश्व दीपक तनहा जी, बधाई. आप सब श्रोताओं का रेटिंग देने के लिए बहुत बहुत आभार.


अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.

Comments

झूमने वाला गीत...बढ़िया गीत..
Shamikh Faraz said…
गीत बढ़िया है. मैं ३.५/५ दूंगा.
यह गीत मुझे बस इसके बोलों के कारण पसंद आया। संगीत कुछ और बेहतर हो सकता था। मिका और सुनिधि की आवाज़ गाने के हिसाब से सही है। मैं इस गाने को ३/५ दूँगा।

आज की पहेली का जवाब है: "वेक अप सिड" । सजीव जी पहेली को थोड़ा मुश्किल किया कीजिए...शुरू-शुरू में आप थोड़ी मुश्किल पहेली पूछा करते थे, लेकिन आज कल तो आप बस नई फिल्म से जुड़ा कोई सवाल पूछ लेते हैं, जिसका जवाब मुझे पता होता ही :)

-विश्व दीपक
Anonymous said…
aap dono ka interractive aalekh padhkar achchha laga, is geet se behatar :-)

ROHIT RAJPUT
Manju Gupta said…
हिट गाने मदमस्त संगीत मुझे लगा ,रेटिंग ४/५ दूंगी
खब्बा यानी उलटा, बायां और सज्जा यानी दायां, या सीधा...। पंजाब में गुज़ारे दो-अढ़ाई साल की मेहरबानी। गलती हो तो माफ़ करो नादानी।

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट