ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 95
आम तौर पर फ़िल्मी युगल गीत में एक गायक और एक गायिका की आवाज़ें हुआ करती हैं। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे युगल गीत भी बने हैं जिन्हे या तो दो गायकों ने गाये हैं या फिर दो गायिकाओं ने, और इनमें से बहुत सारे गानें बेहद कामयाब भी हुए हैं। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक ऐसा ही 'फ़िमेल डुएट' प्रस्तुत है। फ़िल्म संगीत के इतिहास मे अगर झाँका जाए तो हम पाते हैं कि ऐसी बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें लता मंगेशकर ने नायिका का पार्श्वगायन किया है जब कि कुछ थोड़े से कमचर्चित गायिकाओं ने दूसरी चरित्र अभिनेत्रियों या फिर नायिका की सहेलियों, या फिर किसी जलसे या मुजरे के लिए अपनी आवाज़ें दी हैं। यह भी एक ऐसा ही गीत है जिसे दो बड़े ही अनोखी गायिकाओं ने गाया है। यह गीत है १९६३ की फ़िल्म ताजमहल का जिसे गाया है सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम ने। यूँ तो इस मशहूर फ़िल्म के बहुत से गीत बहुत ही कामयाब हुए, ख़ास कर लता-रफ़ी के गाए "जो वादा किया" और "पाँव छू लेने दो", और दूसरे कुछ गीत भी प्रसिद्ध हुए। उस दृष्टि से सुमन और मीनू का गाया यह गीत ज़रा कम सुना गया। इसीलिए हमने सोचा कि अगर 'ताजमहल' का ही गीत सुनवाना है तो क्यों न इसी कमसुने गीत को यहाँ बजाया जाए!
जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि 'ताजमहल' के संगीतकार थे रोशन, जिन्होने समय समय पर सुमन कल्याणपुर से कई बेहतरीन गाने गवाये हैं। उदाहरण स्वरूप जो गीत मुझे इस वक़्त याद आ रहा है वह है फ़िल्म नूरजहाँ का "शराबी शराबी यह सावन का मौसम, ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता"। इस गीत को जयमाला कार्यक्रम में बजाने से पहले सुमनजी ने रोशन साहब के बारे में कहा था - "रोशनजी के साथ काम करने में एक अलग ही आनंद था। वो बहुत हँसाते थे। अगर कुछ 'चेंज' भी करना होता तो हँसी हँसी में समझाते थे जिससे कि गायक को ज़रा भी बुरा ना लगे। वो बहुत गुणी भी थे"। और दूसरी गायिका मीनू पुरुषोत्तम को 'ताजमहल' में गाने का अवसर देकर रोशन साहब ने इस नवोदित गायिका के कैरियर के लिए बड़ा महत्वपूर्ण काम किया। इस गीत से पहले मीनू ने १९६२ में 'चायना टाउन' फ़िल्म में रफ़ी साहब के साथ एक युगल गीत गाया था, लेकिन वह गीत ज़्यादा मशहूर नहीं हो पाया था। इसके बाद मीनू ने 'ताजमहल' का यह गीत गाया सुमन कल्याणपुर के साथ मिलकर जिसने उन्हे कुछ हद तक प्रसिद्धी दिलवायी। लोक संगीत के आधार पर बना यह गीत बड़ा ही मधुर है जिसमें इस दोनो होता गायिकाओं की अलग अलग क़िस्म की आवाज़ें गीत को और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत बना देती है। सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में अगर ग़ज़ब की खनक और मिठास है तो मीनू पुरुषोत्तम की आवाज़ ज़रा सी 'हस्की' है जो सुमनजी की आवाज़ के साथ घुलमिलकर एक अलग ही समा बांध देती है। साहिर लुधियानवी के लिखे इस गीत को सुनिए और खो जाइए सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम की शोख़ी भरे अंदाज़-ओ-आवाज़ में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. सी रामचंद्र और किशोर दा का एक जबरदस्त हास्य गीत.
२. शराब के दुष्परिणामों पर ध्यान आकर्षित किया है राजेंद्र कृष्ण के बोलों ने.
३. गाने में "चरणदास" की कहानी बयां हुई है.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
कमाल कर दिया शरद जी आपने तो, हमें उम्मीद कम थी कि कोई इस गीत को पकड़ पायेगा...बहुत बहुत बधाई...मनु जी, दिलीप जी, संगीत जी ख़ुशी हुई कि आप सब आये इस महफ़िल में.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
आम तौर पर फ़िल्मी युगल गीत में एक गायक और एक गायिका की आवाज़ें हुआ करती हैं। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे युगल गीत भी बने हैं जिन्हे या तो दो गायकों ने गाये हैं या फिर दो गायिकाओं ने, और इनमें से बहुत सारे गानें बेहद कामयाब भी हुए हैं। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक ऐसा ही 'फ़िमेल डुएट' प्रस्तुत है। फ़िल्म संगीत के इतिहास मे अगर झाँका जाए तो हम पाते हैं कि ऐसी बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें लता मंगेशकर ने नायिका का पार्श्वगायन किया है जब कि कुछ थोड़े से कमचर्चित गायिकाओं ने दूसरी चरित्र अभिनेत्रियों या फिर नायिका की सहेलियों, या फिर किसी जलसे या मुजरे के लिए अपनी आवाज़ें दी हैं। यह भी एक ऐसा ही गीत है जिसे दो बड़े ही अनोखी गायिकाओं ने गाया है। यह गीत है १९६३ की फ़िल्म ताजमहल का जिसे गाया है सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम ने। यूँ तो इस मशहूर फ़िल्म के बहुत से गीत बहुत ही कामयाब हुए, ख़ास कर लता-रफ़ी के गाए "जो वादा किया" और "पाँव छू लेने दो", और दूसरे कुछ गीत भी प्रसिद्ध हुए। उस दृष्टि से सुमन और मीनू का गाया यह गीत ज़रा कम सुना गया। इसीलिए हमने सोचा कि अगर 'ताजमहल' का ही गीत सुनवाना है तो क्यों न इसी कमसुने गीत को यहाँ बजाया जाए!
जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि 'ताजमहल' के संगीतकार थे रोशन, जिन्होने समय समय पर सुमन कल्याणपुर से कई बेहतरीन गाने गवाये हैं। उदाहरण स्वरूप जो गीत मुझे इस वक़्त याद आ रहा है वह है फ़िल्म नूरजहाँ का "शराबी शराबी यह सावन का मौसम, ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता"। इस गीत को जयमाला कार्यक्रम में बजाने से पहले सुमनजी ने रोशन साहब के बारे में कहा था - "रोशनजी के साथ काम करने में एक अलग ही आनंद था। वो बहुत हँसाते थे। अगर कुछ 'चेंज' भी करना होता तो हँसी हँसी में समझाते थे जिससे कि गायक को ज़रा भी बुरा ना लगे। वो बहुत गुणी भी थे"। और दूसरी गायिका मीनू पुरुषोत्तम को 'ताजमहल' में गाने का अवसर देकर रोशन साहब ने इस नवोदित गायिका के कैरियर के लिए बड़ा महत्वपूर्ण काम किया। इस गीत से पहले मीनू ने १९६२ में 'चायना टाउन' फ़िल्म में रफ़ी साहब के साथ एक युगल गीत गाया था, लेकिन वह गीत ज़्यादा मशहूर नहीं हो पाया था। इसके बाद मीनू ने 'ताजमहल' का यह गीत गाया सुमन कल्याणपुर के साथ मिलकर जिसने उन्हे कुछ हद तक प्रसिद्धी दिलवायी। लोक संगीत के आधार पर बना यह गीत बड़ा ही मधुर है जिसमें इस दोनो होता गायिकाओं की अलग अलग क़िस्म की आवाज़ें गीत को और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत बना देती है। सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में अगर ग़ज़ब की खनक और मिठास है तो मीनू पुरुषोत्तम की आवाज़ ज़रा सी 'हस्की' है जो सुमनजी की आवाज़ के साथ घुलमिलकर एक अलग ही समा बांध देती है। साहिर लुधियानवी के लिखे इस गीत को सुनिए और खो जाइए सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम की शोख़ी भरे अंदाज़-ओ-आवाज़ में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. सी रामचंद्र और किशोर दा का एक जबरदस्त हास्य गीत.
२. शराब के दुष्परिणामों पर ध्यान आकर्षित किया है राजेंद्र कृष्ण के बोलों ने.
३. गाने में "चरणदास" की कहानी बयां हुई है.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
कमाल कर दिया शरद जी आपने तो, हमें उम्मीद कम थी कि कोई इस गीत को पकड़ पायेगा...बहुत बहुत बधाई...मनु जी, दिलीप जी, संगीत जी ख़ुशी हुई कि आप सब आये इस महफ़िल में.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
तो आज मियाँ बाहर बीबी अन्दर न सोती
फ़िल्म है पहली झलक
शरद जी,,,
यूं आर ग्रेट,,,,!!!!!!!!!