Skip to main content

Posts

Showing posts with the label prem dhawan

मेरा रंग दे बसंती चोला....जब गीतकार-संगीतकार प्रेम धवन मिले अमर शहीद भगत सिंह की माँ से तब जन्मा ये कालजयी गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 497/2010/197 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के अंतर्गत इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं नव रसों पर आधारित फ़िल्मी गीतों की लघु शृंखला 'रस माधुरी'। आज बारी है वीर रस की। वीर रस, यानी कि वीरता और आत्मविश्वास का भाव जो हर इंसान में होना अत्यधिक आवश्यक है। प्राचीन काल में राजा महाराजाओं, सेनापतियों और सैनिकों को वीर की उपाधि दी जाती थी जो युद्ध भी अगर लड़ते थे तो पूरे नियमों को ध्यान में रखते हुए। पीठ पीछे वार करने में कोई वीरता नहीं है, बल्कि उसे कायर कहते हैं। वीरता के रस अपने में उत्पन्न करने के लिए इंसान को धैर्य और प्रशिक्षण की ज़रूरत है। आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा अपने अंदर। वीर रस का एक महत्वपूर्ण पक्ष है प्रतियोगिता का, जो बहुत ज़रूरी है अपने काबिलियत को बढ़ाने के लिए। लेकिन हार या जीत को अगर हम बहुत ज़्यादा व्यक्तिगत रूप से लेंगे तो फिर मुश्किल ही होगी। वीर रस की वजह से इंसान स्वाधीन होना चाहेगा, उसे किसी का डर नहीं होगा, और वह बढ़ निकलेगा अपने आप को बंधनों से आज़ाद कराने के लिए। भारत ने हमेशा अमन और सदभाव का राह चुना है। हमने कभी किसी को नहीं ललकारा। हज़ा

तेरा ख़याल दिल को सताए तो क्या करें...तलत साहब को उनकी जयंती पर ढेरों सलाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 355/2010/55 आ ज २४ फ़रवरी है, फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक तलत महमूद साहब का जनमदिवस। उन्ही को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास पेशकर इन दिनों आप सुन रहे हैं 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। दोस्तों, इस शृंखला में हमने दस ऐसे लाजवाब ग़ज़लों को चुना है जिन्हे दस अलग अलग शायर-संगीतकार जोड़ियों ने रचे हैं। अब तक हमने साहिर - सचिन, मजरूह - जमाल सेन, नक्श ल्यायलपुरी - स्नेहल, और शेवन रिज़्वी - धनीराम/ख़य्याम की रचनाएँ सुनवाए हैं। आज एक और नायाब जोड़ी की ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है। यह जोड़ी है प्रेम धवन और पंडित गोबिन्दराम की। लेकिन आज की ग़ज़ल का ज़िक्र अभी थोड़ी देर में हम करेंगे, उससे पहले आपको हम बताना चाहेंगे कि किस तरह से तलत महमूद साहब ने अपना पहला फ़िल्मी गीत रिकार्ड करवाया था। तलत महमूद जब बम्बई में जमने लगे थे तब एक अफ़वाह फैल गई कि वो गाते वक़्त नर्वस हो जाते हैं। उनके गले की लरजिश को नर्वसनेस का नाम दिया गया। इससे उनके करीयर पर विपरीत असर हुआ। तब संगीतकार अनिल बिस्वास ने यह बताया कि उनके गले की यह कम्पन ही उनकी आवाज़ की खासियत है

छोडो कल की बातें कल की बात पुरानी....जय विज्ञान है युवा हिन्दुस्तान का नया नारा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 173 स्व तंत्रता दिवस के उपलक्ष पर तिरंगे के तीन रगों से रंगे तीन गानें आप इन दिनों सुन रहे हैं बैक टू बैक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल पर। कल गेरुआ रंग यानी कि वीर रस पर आधारित गीत आप ने सुना, आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति, अमन, भाईचारे और प्रगति की बातें। दोस्तों, जब देश भक्ति गीतों की बात आती है तो हम ने अक्सर यह देखा है कि गीतकार ज़्यादातर हमारे इतिहास में से चुन चुन कर देश भक्ति के उदाहरण खोज लाते हैं और हमारे देश की गौरव गाथा का बखान करते हैं। बहुत कम ही गीत ऐसे हैं जिनमें देश के नवनिर्माण, प्रगति और देश के भविष्य के विकास की ओर झाँका गया हो। जैसा कि हमने कहा कि हमारा आज का रंग है सफ़ेद, यानी कि शांति का। और देश में शांत वातावरण तब ही पैदा हो सकते हैं जब हर एक देशवासी को दो वक़्त की रोटी नसीब हो, पहनने के लिए कपड़े नसीब हो, घर नसीब हो। इन सब का सीधा ताल्लुख़ देश के विकास और प्रगति पर निर्भर करता है। ऐसे ही विचारों को गीत के शक्ल में पिरोया है गीतकार प्रेम धवन ने फ़िल्म 'हम हिंदुस्तानी' के उस मशहूर गीत में जिसे आज हम आप के लिए लेकर आये हैं