ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 646/2010/346
'ओल्ड इज गोल्ड' के इस नये सप्ताह में सभी संगीतप्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार फिर स्वागत है। इन दिनों हमारी श्रृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' जारी है। आज के शुभ दिन को ही ध्यान में रख कर बहुआयामी प्रतिभा के धनी गायक-संगीतकार पद्मभूषण मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर हमने यह श्रृंखला आरम्भ की थी। भारतीय फिल्म संगीत जगत के जीवित इतिहास मन्ना डे का आज 93 वाँ जन्मदिन है, इस शुभ अवसर पर हम 'ओल्ड इज गोल्ड' परिवार और सभी संगीत प्रेमियों की ओर से मन्ना डे को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं और उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
पिछले अंक में हमने 'आर.के. कैम्प' में मन्ना डे के प्रवेश की चर्चा की थी। राज कपूर की फिल्मों के संगीतकार शंकर-जयकिशन का भी वह शुरुआती दौर था। मन्ना डे की प्रतिभा से यह संगीतकार जोड़ी, विशेष रूप से शंकर, बहुत प्रभावित थे। 'बूट पालिश' के बाद शंकर-जयकिशन की जोड़ी के साथ मन्ना डे नें अनेक यादगार गाने गाये। 1953 में मन्ना डे नें शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में तीन फिल्मों- 'चित्रांगदा', 'घर-बार' और 'दर्द-ए-दिल' में गीत गाये। 1955 में मन्ना डे के गायन से सजी दो ऐसी फ़िल्में बनीं, जिन्होंने उनकी गायन प्रतिभा में चाँद-सितारे जड़ दिये। फिल्म 'सीमा' का गीत- "तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम...." फ़िल्मी भक्ति-गीतों में आज भी सर्वश्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित है। इसी वर्ष मन्ना डे को राज कपूर की आवाज़ बनने का एक और अवसर मिला, फिल्म 'श्री 420' के माध्यम से। इस फिल्म में उन्होंने तीन गाने गाये, जिनमें एक एकल -"दिल का हाल सुने दिलवाला..." दूसरा, आशा भोसले के साथ युगल गीत -"मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के...." और तीसरा लता मंगेशकर के साथ गाया युगल गीत -"प्यार हुआ, इकरार हुआ...."। फिल्म 'श्री 420' के गीत उन दिनों जबरदस्त हिट हुए थे और आज भी वही आलम बरकरार है। बच्चे-बच्चे की जबान पर ये गीत चढ़े हुए थे और विवाह के अवसर पर बजने वाले बैंड बाजे से इन्ही गानों की धुन बजती थी। मन्ना डे के स्वर में एकल गीत -"दिल का हाल सुने दिलवाला....." में लोक संगीत का पुट है। इस गीत के एक अन्तरे -"बूढ़े दरोगा ने चश्मे से देखा..." में तो मन्ना डे अपने स्वरों से शब्दों का ऐसा अभिनय कराते हैं कि परदे का दृश्य देखे बिना ही जीवन्त हो उठता है। गाने के इस अंश में परदे पर राज कपूर नें मन्ना डे के गले की हरकतों के अनुरूप अभिनय किया है। इसी प्रकार लता मंगेशकर के साथ गाया युगल गीत -"प्यार हुआ इकरार हुआ..." प्रेम की अभिव्यक्ति में बेजोड़ है। इस फिल्म के गानों को गाकर मन्ना डे नें संगीतकार द्वय में से शंकर को इतना प्रभावित कर दिया कि आगे चल कर शंकर उनके सबसे बड़े शुभचिन्तक बन गए।
1956 में शंकर-जयकिशन को फिल्म 'बसन्त बहार' में संगीत रचना का दायित्व मिला। इस फिल्म में उस समय के सर्वाधिक चर्चित और सफल अभिनेता भारत भूषण नायक थे और निर्माता थे आर चंद्रा। फिल्म के निर्देशक ए.वी. मयप्पन थे। संगीतकार शंकर-जयकिशन नें फिल्म के अधिकतर गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित रखे थे। इससे पूर्व भारत भूषण की कई फिल्मों में मोहम्मद रफ़ी उनके लिए सफल गायन कर चुके थे। शशि भूषण इस फिल्म में मोहम्मद रफ़ी को ही लेने का आग्रह कर रहे थे, जबकि मयप्पन मुकेश से गवाना चाहते थे। यह बात जब शंकर जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राग आधारित इन गीतों को मन्ना डे के अलावा और कोई गा ही नहीं सकता। यह विवाद इतना बढ़ गया कि शंकर-जयकिशन को इस फिल्म से हटने की धमकी तक देनी पड़ी। अन्ततः मन्ना डे के नाम पर सहमति बनी। फिल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। फिल्म के एक गीत -"केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें....." में तो मन्ना डे ने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पं. भीमसेन जोशी के साथ गाया है | (यह गीत 'सुर संगम' के पांचवें अंक में पं. भीमसेन जोशी को श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत किया गाया था, और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भी बज चुका है) उपरोक्त प्रसंग मन्ना डे ने पत्रकार कविता छिब्बर से बातचीत में बताया था।
फिल्म 'बसन्त बहार' के अन्य गीत थे -"सुर ना सजे...." (एकल), "नैन मिले चैन कहाँ....." (लता मंगेशकर के साथ) तथा "भय भंजना वन्दना सुन हमारी...." (भजन)। आज आपको सुनवाने के लिए हमने 'बसन्त बहार' का भक्तिरस से ओत-प्रोत यही गीत चुना है। मन्ना डे के स्वरों में फिल्म 'बसन्त बहार' का यह गीत (भजन) गीतकार शैलेन्द्र ने लिखा है और यह राग "मियाँ की मल्हार" पर आधारित है और फ़िल्मी गीतों में बहुत कम प्रचलित दस मात्रा के ताल "झपताल" में है। राग "मियाँ की मल्हार" के स्वरों में अधिकतर रचनाएँ चंचल, श्रृंगार रस प्रधान और वर्षा ऋतु में नायिका की विरह व्यथा को व्यक्त करने वाली होती हैं, किन्तु यह गीत मन्ना डे के स्वरों में ढल कर भक्तिरस की अभिव्यक्ति करने में कितना सफल हुआ है, इसका निर्णय आप गीत सुन कर स्वयं करें -
पहेली 07/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - फिल्म संगीत खजाने का एक श्रेष्ठतम नगीना है ये गीत, ऐसा मान उस्ताद विलायत खान ने भी.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किस बांसुरी वादक ने इस युगल गीत में संगति की थी - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी, अमित जी और शरद जी को बधाई
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
'ओल्ड इज गोल्ड' के इस नये सप्ताह में सभी संगीतप्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार फिर स्वागत है। इन दिनों हमारी श्रृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' जारी है। आज के शुभ दिन को ही ध्यान में रख कर बहुआयामी प्रतिभा के धनी गायक-संगीतकार पद्मभूषण मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर हमने यह श्रृंखला आरम्भ की थी। भारतीय फिल्म संगीत जगत के जीवित इतिहास मन्ना डे का आज 93 वाँ जन्मदिन है, इस शुभ अवसर पर हम 'ओल्ड इज गोल्ड' परिवार और सभी संगीत प्रेमियों की ओर से मन्ना डे को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं और उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
पिछले अंक में हमने 'आर.के. कैम्प' में मन्ना डे के प्रवेश की चर्चा की थी। राज कपूर की फिल्मों के संगीतकार शंकर-जयकिशन का भी वह शुरुआती दौर था। मन्ना डे की प्रतिभा से यह संगीतकार जोड़ी, विशेष रूप से शंकर, बहुत प्रभावित थे। 'बूट पालिश' के बाद शंकर-जयकिशन की जोड़ी के साथ मन्ना डे नें अनेक यादगार गाने गाये। 1953 में मन्ना डे नें शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देशन में तीन फिल्मों- 'चित्रांगदा', 'घर-बार' और 'दर्द-ए-दिल' में गीत गाये। 1955 में मन्ना डे के गायन से सजी दो ऐसी फ़िल्में बनीं, जिन्होंने उनकी गायन प्रतिभा में चाँद-सितारे जड़ दिये। फिल्म 'सीमा' का गीत- "तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम...." फ़िल्मी भक्ति-गीतों में आज भी सर्वश्रेष्ठ पद पर प्रतिष्ठित है। इसी वर्ष मन्ना डे को राज कपूर की आवाज़ बनने का एक और अवसर मिला, फिल्म 'श्री 420' के माध्यम से। इस फिल्म में उन्होंने तीन गाने गाये, जिनमें एक एकल -"दिल का हाल सुने दिलवाला..." दूसरा, आशा भोसले के साथ युगल गीत -"मुड़ मुड़ के ना देख मुड़ मुड़ के...." और तीसरा लता मंगेशकर के साथ गाया युगल गीत -"प्यार हुआ, इकरार हुआ...."। फिल्म 'श्री 420' के गीत उन दिनों जबरदस्त हिट हुए थे और आज भी वही आलम बरकरार है। बच्चे-बच्चे की जबान पर ये गीत चढ़े हुए थे और विवाह के अवसर पर बजने वाले बैंड बाजे से इन्ही गानों की धुन बजती थी। मन्ना डे के स्वर में एकल गीत -"दिल का हाल सुने दिलवाला....." में लोक संगीत का पुट है। इस गीत के एक अन्तरे -"बूढ़े दरोगा ने चश्मे से देखा..." में तो मन्ना डे अपने स्वरों से शब्दों का ऐसा अभिनय कराते हैं कि परदे का दृश्य देखे बिना ही जीवन्त हो उठता है। गाने के इस अंश में परदे पर राज कपूर नें मन्ना डे के गले की हरकतों के अनुरूप अभिनय किया है। इसी प्रकार लता मंगेशकर के साथ गाया युगल गीत -"प्यार हुआ इकरार हुआ..." प्रेम की अभिव्यक्ति में बेजोड़ है। इस फिल्म के गानों को गाकर मन्ना डे नें संगीतकार द्वय में से शंकर को इतना प्रभावित कर दिया कि आगे चल कर शंकर उनके सबसे बड़े शुभचिन्तक बन गए।
1956 में शंकर-जयकिशन को फिल्म 'बसन्त बहार' में संगीत रचना का दायित्व मिला। इस फिल्म में उस समय के सर्वाधिक चर्चित और सफल अभिनेता भारत भूषण नायक थे और निर्माता थे आर चंद्रा। फिल्म के निर्देशक ए.वी. मयप्पन थे। संगीतकार शंकर-जयकिशन नें फिल्म के अधिकतर गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित रखे थे। इससे पूर्व भारत भूषण की कई फिल्मों में मोहम्मद रफ़ी उनके लिए सफल गायन कर चुके थे। शशि भूषण इस फिल्म में मोहम्मद रफ़ी को ही लेने का आग्रह कर रहे थे, जबकि मयप्पन मुकेश से गवाना चाहते थे। यह बात जब शंकर जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राग आधारित इन गीतों को मन्ना डे के अलावा और कोई गा ही नहीं सकता। यह विवाद इतना बढ़ गया कि शंकर-जयकिशन को इस फिल्म से हटने की धमकी तक देनी पड़ी। अन्ततः मन्ना डे के नाम पर सहमति बनी। फिल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। फिल्म के एक गीत -"केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें....." में तो मन्ना डे ने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ पं. भीमसेन जोशी के साथ गाया है | (यह गीत 'सुर संगम' के पांचवें अंक में पं. भीमसेन जोशी को श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत किया गाया था, और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भी बज चुका है) उपरोक्त प्रसंग मन्ना डे ने पत्रकार कविता छिब्बर से बातचीत में बताया था।
फिल्म 'बसन्त बहार' के अन्य गीत थे -"सुर ना सजे...." (एकल), "नैन मिले चैन कहाँ....." (लता मंगेशकर के साथ) तथा "भय भंजना वन्दना सुन हमारी...." (भजन)। आज आपको सुनवाने के लिए हमने 'बसन्त बहार' का भक्तिरस से ओत-प्रोत यही गीत चुना है। मन्ना डे के स्वरों में फिल्म 'बसन्त बहार' का यह गीत (भजन) गीतकार शैलेन्द्र ने लिखा है और यह राग "मियाँ की मल्हार" पर आधारित है और फ़िल्मी गीतों में बहुत कम प्रचलित दस मात्रा के ताल "झपताल" में है। राग "मियाँ की मल्हार" के स्वरों में अधिकतर रचनाएँ चंचल, श्रृंगार रस प्रधान और वर्षा ऋतु में नायिका की विरह व्यथा को व्यक्त करने वाली होती हैं, किन्तु यह गीत मन्ना डे के स्वरों में ढल कर भक्तिरस की अभिव्यक्ति करने में कितना सफल हुआ है, इसका निर्णय आप गीत सुन कर स्वयं करें -
पहेली 07/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - फिल्म संगीत खजाने का एक श्रेष्ठतम नगीना है ये गीत, ऐसा मान उस्ताद विलायत खान ने भी.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किस बांसुरी वादक ने इस युगल गीत में संगति की थी - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी, अमित जी और शरद जी को बधाई
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
मन्ना दा पर आधारित यह श्रृंखला लाजवाब थी.
यह हम लोगों का दुर्भाग्य ही है कि मन्ना दा की प्रतिभा का उतना सुन्दर उपयोग नहीं हुआ जिसके वह सचमुच हक़दार थे.
आपको शायद याद हो लगभग ४० वर्ष पहले लखनऊ स्टेडियम में मन्ना दा का एक कार्यक्रम हुआ था. बदकिस्मती से युवा छात्रों के हुड़दंग से उसे अचानक रोक देना पड़ा जबकि मन्ना दा बहुत मूड में थे.वह अच्छे गीत प्रस्तुत करना चाहते थे और भीड़ उनसे मांग कर रही थी कि वोह 'खाली डिब्बा खाली बोतल' सुनाएँ.
इस प्रकार मन्ना दा की आवाज़ को केवल हास्य गीतों अथवा सहयोगी आवाज़ संगीतकारों और जनता द्वारा मान लिया गया.
जैसा कि सर्व विदित है स्वयं मु.रफ़ी ने कहा था कि वोह खुद मन्ना दा के प्रशंसक थे.
अवध लाल