ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 265
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप लगातार सुन रहे हैं बच्चों वाले गानें एक के बाद एक। दोस्तों, हर रोज़ गीत के आख़िर में हम आप से एक पहेली पूछते हैं, आज भी पूछेंगे, लेकिन आज का जो गीत है ना वो भरा हुआ है पहेलियों से। पहेली बूझना बच्चों का एक मनपसंद खेल रहा है हर युग में। हिंदी फ़िल्मों में कई गीत ऐसे हैं जो पहेलियों पर आधारित हैं, जैसे कि उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'ससुराल' का गीत "एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो", 'मिलन' फ़िल्म का गीत "बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया"। और भी कई गीत हैं इस तरह के, लेकिन इन सब में जो सब से ज़्यादा प्रोमिनेंट है वह है राज कपूर की फ़िल्म 'श्री ४२०' का "ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना"। इस गीत का मुखड़ा और सारे के सारे अंतरे पहेलियों पर आधारित है। लता मंगेशकर, मुकेश और बच्चों के गाए इस गीत का फ़िल्मांकन कुछ इस तरह से हुआ है कि नरगिस एक स्कूल टीचर बच्चों को पहेलियों के माध्यम से पाठ पढ़ा रही हैं, और छत पर खड़े दूर दूर से राज कपूर ख़ुद भी उन पहेलियों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हर पहेली में उन्हे ऐसा अहसास होने लगता है कि पहेली में उन्ही का ज़िक्र हो रहा है, लेकिन हर बार उनका दिल टूट जाता है जब कि उत्तर कुछ और ही होता है जो बच्चे दे देते हैं। गीत के आख़िरी अंतरे में राज साहब एक पहेली पूछते हैं, जिसका ना तो बच्चे सही जवाब दे पाते हैं और ना ही नरगिस। और इस बार पहेली का जवाब वो ख़ुद होते हैं। बहुत ही जानदार और शानदार गीत है, जिसे बहुत ही चतुराई के साथ लिखा है हसरत जयपुरी साहब ने। और शंकर जयकिशन का संगीत सोने पे सुहागा। लता और बच्चों वाले हिस्से का रीदम थोड़ा सा तेज़ है जब कि जब मुकेश गाने लगते हैं तो रीदम थोड़ा सा धीमा हो जाता है। इस चीज़ से गाना और भी ज़्यादा अनूठा बना है। इसी तरह का रीदम चेंज इसी फ़िल्म के एक अन्य गीत "मुड़ मुड़ के ना देख" में भी किया गया है जहाँ पे रीदम पहले स्लो रहता है और बाद में तेज़ हो जाती है, प्रस्तुत गीत से ठीक विपरीत।
दोस्तों, १९५५ की फ़िल्म 'श्री ४२०' की बातें तो हम पहले भी कर चुके हैं जब हमने आपको 'राज कपूर स्पेशल' के अंतर्गत "मुड़ मुड़ के ना देख" गीत सुनवाया था। और आज बजने वाले गीत का ज़िक्र भी उपर हमने किया। चलिए गीत सुनने से पहले आज हसरत जयपुरी साहब की कुछ बातें हो जाए! बातें बता रहे हैं हसरत साहब लेकिन अपने साथियों के बारे में यानी कि शंकर, जयकिशन और शैलेन्द्र के बारे में अमीन सायानी साहब के एक इंटरव्यू में। "दो तन और एक जान की तरह शंकर जयकिशन भी थे, और मेरा, मैं भी ऐसा ही था, शैलेन्द्र और मैं भी वही दो तन और एक जान। लेकिन ज़्यादा काम होने की वजह से तुम कुछ कर लो और हम कुछ कर लेते हैं वाली बात थी। जयकिशन जी मेरे साथ बैठ जाया करते थे और शैलेन्द्र जी उनके साथ। लेकिन पहले ना ऐसी इत्तेफ़ाक़ थी या ऐसी कोई बात नहीं थी। वो एक ही समझ लीजिए उन्होने किया तो उन्होने किया और इन्होने किया तो इन्होने किया। एक ही बात थी। दोनों के नाम साथ आते थे। लेकिन तर्ज़ें वो अलग अलग बनाते थे, हाँ ये हो सकता था वो एक दूसरे से पूछ लिया करते थे, के भई देखो ये है, अगर इसमें कमी है कोई तो बताओ। इसी तरह से हम दोनों, 'भई देखो ये इस तरीके से है शैलेन्द्र जी'। शैलेन्द्र जी कहते थे 'हसरत मियाँ, देखो मैने ये ग़ज़ल लिखी है पहली मर्तबा, इसमें कुछ ग़लती तो नहीं है?' तो मैने कहा 'नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है!' अगर मेरे ज़हन में कोई बात ऐसी आती है के जो फ़न के ख़िलाफ़ है तो मैं बता देता। इसी तरीक़े से हिंदी गीतों के अंदर मैं उनसे पूछ लेता था, तो इस तरीक़े से मिलजुल के हम बड़े प्रेम और प्यार से काम किया करते थे।" तो ये तो थी हसरत साहब की बातें अपनी जोड़ीदार शैलेन्द्र जी और शंकर जयकिशन के बारे में। क्योंकि यह पहेलियों से भरा हुआ गीत है, हम भी गीत के अंतरे के ही मीटर पर आप से एक पहेली पूछते हैं। जी नहीं, इसे हसरत साहब ने नहीं, बल्कि मैने ही लिखा है। आप इस पहेली को हल कीजिए, लेकिन उससे पहले इसे उसी धुन में गाइए जिस धुन में इस गीत के बाक़ी के अंतरे हैं, बड़ा मज़ा आएगा! और अगर आपने मेरे इस पहेली का सही सही जवाब दे दिया तो आपको मिल सकता है एक इनाम मेरी तरफ़ से। लेकिन याद रहे कि आपको जवाब 'टिप्पणी' में नहीं बल्कि email id hindyugm@gmail.com पर लिख भेजनी है। तो ये है वह पहेली -
"है सुपारियों वाली एक अजीब सी थाली,
उल्टा भी जो कर दो गिरने नहीं ये वाली,
इनको तुम पूरे गिन नहीं सकते कैसा है घोटाला इचक दाना।"
अब आप गीत सुनिए और मुझे आज्ञा दीजिए, नमस्ते!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म के एक गीत के लिए गीतकार को मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर मिला था.
२. फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री थी राजश्री.
३. इस फिल्म में बच्चों पर दो गीत थे, ये मस्ती भरा गीत है जो हमने चुना है.
पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी ३७ अंकों पर आ गए हैं आप.....और कोई न सही पर कम से कम आप 50 के आंकडे को अवश्य छू सकते हैं....नियमित रहिये....और शरद जी आपके लिए क्या कहें....कोई पहेली आपके लिए मुश्किल भला कैसे हो :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप लगातार सुन रहे हैं बच्चों वाले गानें एक के बाद एक। दोस्तों, हर रोज़ गीत के आख़िर में हम आप से एक पहेली पूछते हैं, आज भी पूछेंगे, लेकिन आज का जो गीत है ना वो भरा हुआ है पहेलियों से। पहेली बूझना बच्चों का एक मनपसंद खेल रहा है हर युग में। हिंदी फ़िल्मों में कई गीत ऐसे हैं जो पहेलियों पर आधारित हैं, जैसे कि उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'ससुराल' का गीत "एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो", 'मिलन' फ़िल्म का गीत "बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया"। और भी कई गीत हैं इस तरह के, लेकिन इन सब में जो सब से ज़्यादा प्रोमिनेंट है वह है राज कपूर की फ़िल्म 'श्री ४२०' का "ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना"। इस गीत का मुखड़ा और सारे के सारे अंतरे पहेलियों पर आधारित है। लता मंगेशकर, मुकेश और बच्चों के गाए इस गीत का फ़िल्मांकन कुछ इस तरह से हुआ है कि नरगिस एक स्कूल टीचर बच्चों को पहेलियों के माध्यम से पाठ पढ़ा रही हैं, और छत पर खड़े दूर दूर से राज कपूर ख़ुद भी उन पहेलियों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हर पहेली में उन्हे ऐसा अहसास होने लगता है कि पहेली में उन्ही का ज़िक्र हो रहा है, लेकिन हर बार उनका दिल टूट जाता है जब कि उत्तर कुछ और ही होता है जो बच्चे दे देते हैं। गीत के आख़िरी अंतरे में राज साहब एक पहेली पूछते हैं, जिसका ना तो बच्चे सही जवाब दे पाते हैं और ना ही नरगिस। और इस बार पहेली का जवाब वो ख़ुद होते हैं। बहुत ही जानदार और शानदार गीत है, जिसे बहुत ही चतुराई के साथ लिखा है हसरत जयपुरी साहब ने। और शंकर जयकिशन का संगीत सोने पे सुहागा। लता और बच्चों वाले हिस्से का रीदम थोड़ा सा तेज़ है जब कि जब मुकेश गाने लगते हैं तो रीदम थोड़ा सा धीमा हो जाता है। इस चीज़ से गाना और भी ज़्यादा अनूठा बना है। इसी तरह का रीदम चेंज इसी फ़िल्म के एक अन्य गीत "मुड़ मुड़ के ना देख" में भी किया गया है जहाँ पे रीदम पहले स्लो रहता है और बाद में तेज़ हो जाती है, प्रस्तुत गीत से ठीक विपरीत।
दोस्तों, १९५५ की फ़िल्म 'श्री ४२०' की बातें तो हम पहले भी कर चुके हैं जब हमने आपको 'राज कपूर स्पेशल' के अंतर्गत "मुड़ मुड़ के ना देख" गीत सुनवाया था। और आज बजने वाले गीत का ज़िक्र भी उपर हमने किया। चलिए गीत सुनने से पहले आज हसरत जयपुरी साहब की कुछ बातें हो जाए! बातें बता रहे हैं हसरत साहब लेकिन अपने साथियों के बारे में यानी कि शंकर, जयकिशन और शैलेन्द्र के बारे में अमीन सायानी साहब के एक इंटरव्यू में। "दो तन और एक जान की तरह शंकर जयकिशन भी थे, और मेरा, मैं भी ऐसा ही था, शैलेन्द्र और मैं भी वही दो तन और एक जान। लेकिन ज़्यादा काम होने की वजह से तुम कुछ कर लो और हम कुछ कर लेते हैं वाली बात थी। जयकिशन जी मेरे साथ बैठ जाया करते थे और शैलेन्द्र जी उनके साथ। लेकिन पहले ना ऐसी इत्तेफ़ाक़ थी या ऐसी कोई बात नहीं थी। वो एक ही समझ लीजिए उन्होने किया तो उन्होने किया और इन्होने किया तो इन्होने किया। एक ही बात थी। दोनों के नाम साथ आते थे। लेकिन तर्ज़ें वो अलग अलग बनाते थे, हाँ ये हो सकता था वो एक दूसरे से पूछ लिया करते थे, के भई देखो ये है, अगर इसमें कमी है कोई तो बताओ। इसी तरह से हम दोनों, 'भई देखो ये इस तरीके से है शैलेन्द्र जी'। शैलेन्द्र जी कहते थे 'हसरत मियाँ, देखो मैने ये ग़ज़ल लिखी है पहली मर्तबा, इसमें कुछ ग़लती तो नहीं है?' तो मैने कहा 'नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है!' अगर मेरे ज़हन में कोई बात ऐसी आती है के जो फ़न के ख़िलाफ़ है तो मैं बता देता। इसी तरीक़े से हिंदी गीतों के अंदर मैं उनसे पूछ लेता था, तो इस तरीक़े से मिलजुल के हम बड़े प्रेम और प्यार से काम किया करते थे।" तो ये तो थी हसरत साहब की बातें अपनी जोड़ीदार शैलेन्द्र जी और शंकर जयकिशन के बारे में। क्योंकि यह पहेलियों से भरा हुआ गीत है, हम भी गीत के अंतरे के ही मीटर पर आप से एक पहेली पूछते हैं। जी नहीं, इसे हसरत साहब ने नहीं, बल्कि मैने ही लिखा है। आप इस पहेली को हल कीजिए, लेकिन उससे पहले इसे उसी धुन में गाइए जिस धुन में इस गीत के बाक़ी के अंतरे हैं, बड़ा मज़ा आएगा! और अगर आपने मेरे इस पहेली का सही सही जवाब दे दिया तो आपको मिल सकता है एक इनाम मेरी तरफ़ से। लेकिन याद रहे कि आपको जवाब 'टिप्पणी' में नहीं बल्कि email id hindyugm@gmail.com पर लिख भेजनी है। तो ये है वह पहेली -
"है सुपारियों वाली एक अजीब सी थाली,
उल्टा भी जो कर दो गिरने नहीं ये वाली,
इनको तुम पूरे गिन नहीं सकते कैसा है घोटाला इचक दाना।"
अब आप गीत सुनिए और मुझे आज्ञा दीजिए, नमस्ते!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म के एक गीत के लिए गीतकार को मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर मिला था.
२. फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री थी राजश्री.
३. इस फिल्म में बच्चों पर दो गीत थे, ये मस्ती भरा गीत है जो हमने चुना है.
पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी ३७ अंकों पर आ गए हैं आप.....और कोई न सही पर कम से कम आप 50 के आंकडे को अवश्य छू सकते हैं....नियमित रहिये....और शरद जी आपके लिए क्या कहें....कोई पहेली आपके लिए मुश्किल भला कैसे हो :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
chakke pe chakkaa , chakke pe gaaDee ,
chakke pe chakkaa , chakke pe gaaDee ,
मैं गाऊं तुम सो जाओ...जिसे शैलेन्द्र नें लिखा और इस गाने पर फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड मिला.
aapke donon jawab sahi prateet hote hain.
Mere khyal se yadyapi "main gaoon tum so jao" ek lori hai par iska filmankan bachchon par hi hua tha.
avadh lal
हिन्द युग्म का सबसे सशक्त उपक्रम है आवाज