ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 261
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो युं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए"। दोस्तों, किसी ने ठीक ही कहा है कि रोते हुए किसी बच्चे को हँसाने में और ख़ुदा की इबादत में कोई फ़र्क नहीं है। बच्चे इतने निष्पाप और मासूम होते हैं कि भगवान स्वयम् ही उनमें निवास करते हैं। बच्चों की इसी मासूमियत और भोलेपन में वह जादू होता है जो कठोर से कठोर इंसान का भी दिल पिघला दे। और यह कहते भी हैं कि वह व्यक्ति किसी का ख़ून भी कर सकता है जिसे बच्चे पसंद नहीं। तो दोस्तों, आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अगले १० दिनों तक आप सुनेंगे बच्चों की इन्ही मासूमीयत और नटखट शरारतों में लिपटे हुए १० सदाबहार गीत जिन्हे बाल कलाकारों पर फ़िल्माए गए हैं और हमारे लिए जितना संभव हो सका है हमने ऐसे गानें चुनने की कोशिश की है जिन्हे बाल गायक गायिकाओं ने ही गाए हैं, चाहे मुख्य रूप से हों या फिर कोरस में। तो दोस्तों, अब अगले १० दिनों के लिए आप भी हमारे संग बच्चे बन जाइए और खो जाइए अपने बचपन की उस सजीली, रंग बिरंगी, सपनों भरी दुनिया में। आपकी ख़िदमत में ये है लघु शृंखला 'बचपन के दिन भुला ना देना'। इस शृंखला की शुरुआत हम कर रहे हैं एक ऐसे गीत से जिसके बनने के बाद से लेकर आज तक हर बच्चा अपने बचपन में यह गीत गाता आया है, जिसे स्कूल के फ़ंक्शन्स पर बच्चे अक्सर गाते हैं, जिसे अगर हिंदी का नर्सरी राइम भी कहा जाए तो शायद बहुत ग़लत ना होगा। याद है ना आपको "नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, बाकी जो बचा था कल चोर ले गए"? १९६० की फ़िल्म 'मासूम' का यह गीत याद करते ही दो नाम जो सब से पहले ज़हन में आते हैं, उनमें से एक तो हैं इस गीत की गायिका रानू मुखर्जी और दूसरी, फ़िल्म के पर्दे पर इस गीत को निभाती हुई छोटी सी नन्ही सी हनी इरानी। जी हाँ, ये वही हनी इरानी हैं जिन्होने बहुत सारी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया है, और हाल के कुछ सालों में दादी नानी के किरदारों में छोटे पर्दे पर नज़र आईं थीं। समय तो रुका नहीं रहता लेकिन ग्रामोफ़ोन रिकार्ड और फ़िल्मों के द्वारा जिन लम्हों को हमने क़ैद कर रखा है उनका बार बार आनंद हम उठाते रहे हैं। इस गीत से जुड़ी ये दोनों बच्चियाँ आज अपने छठे दशक को छू रहीं होंगी, लेकिन पर्दे पर, रिकार्ड पर, और लोगों के दिलों पर यह गीत कालजयी बन कर रह गया है।
फ़िल्म 'मासूम' के मुख्य कलाकर थे अशोक कुमार, सुरेश इरानी और मास्टर निसार। युं तो फ़िल्म के ज़्यादातर गीतों के गीतकार थे राजा मेहंदी अली ख़ान और संगीतकार थे रॊबिन बैनर्जी, लेकिन प्रस्तुत गीत को (उपलब्ध जानकारी के अनुसार) शैलेन्द्र ने लिखा था और इसकी धुन बनाई थी हेमन्त कुमार ने। इस गीत को गाने वाली छोटी सी बच्ची रानू मुखर्जी हेमन्त दा की ही सुपुत्री हैं। इस गीत की ख़ास बात यह है कि उन दिनों पार्श्व गायिकाएँ ही बच्चों के लिए प्लेबैक किया करती थीं। यह गीत एक तरह से ऐसा पहला गीत है कि जिसमें किसी बाल गयिका ने किसी बाल अभिनेत्री का पार्श्वगायन किया हो। और यह बताना भी ज़रूरी है कि यह गीत शायद सब से कम उम्र के किसी बच्चे के द्वारा गाए जानेवाला गीत रहा होगा। कितनी उम्र रही होगी रानूकी उस वक़्त, यही कोई ३ या ४ साल! सलिल चौधरी की सुपुत्री अंतरा चौधरी की तरह रानू भी आगे चलकर हिंदी फ़िल्म संगीत में सक्रीय नहीं हुईं, लेकिन इस एक गीत ने उनका नाम मोटे अक्षरों में हिंदी फ़िल्म संगीत के इतिहास में दर्ज करवा दिया। रानू मुखर्जी के बारे में ज़्यादा जानकारियाँ उपलब्ध नहीं है, गूगल में ढ़ूंढें तो "रानू" के बदले "रानी" मुखर्जी के ही तथ्य सामने आते हैं। तो आइए, सुनते हैं इस कालजयी गीत को, यह गीत किसी को पसंद ना आए, और गीत को सुनते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट ना खिले, यह असंभव है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म में बाल कलाकारों का साथ दिया था कमलजीत और सिमी गरेवाल ने.
२. इस फिल्म के लिए निर्देशक को फिल्म फेयर में नामांकन मिला था.
३. मुखड़े की दूसरी पंक्ति में शब्द है -"देश".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ४६ अंकों के साथ मंजिल के करीब हैं अब....बधाई. निशांत जी आपकी पसंद का गीत भी जल्द ही सुनवायेंगें...धन्येवाद
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो युं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए"। दोस्तों, किसी ने ठीक ही कहा है कि रोते हुए किसी बच्चे को हँसाने में और ख़ुदा की इबादत में कोई फ़र्क नहीं है। बच्चे इतने निष्पाप और मासूम होते हैं कि भगवान स्वयम् ही उनमें निवास करते हैं। बच्चों की इसी मासूमियत और भोलेपन में वह जादू होता है जो कठोर से कठोर इंसान का भी दिल पिघला दे। और यह कहते भी हैं कि वह व्यक्ति किसी का ख़ून भी कर सकता है जिसे बच्चे पसंद नहीं। तो दोस्तों, आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अगले १० दिनों तक आप सुनेंगे बच्चों की इन्ही मासूमीयत और नटखट शरारतों में लिपटे हुए १० सदाबहार गीत जिन्हे बाल कलाकारों पर फ़िल्माए गए हैं और हमारे लिए जितना संभव हो सका है हमने ऐसे गानें चुनने की कोशिश की है जिन्हे बाल गायक गायिकाओं ने ही गाए हैं, चाहे मुख्य रूप से हों या फिर कोरस में। तो दोस्तों, अब अगले १० दिनों के लिए आप भी हमारे संग बच्चे बन जाइए और खो जाइए अपने बचपन की उस सजीली, रंग बिरंगी, सपनों भरी दुनिया में। आपकी ख़िदमत में ये है लघु शृंखला 'बचपन के दिन भुला ना देना'। इस शृंखला की शुरुआत हम कर रहे हैं एक ऐसे गीत से जिसके बनने के बाद से लेकर आज तक हर बच्चा अपने बचपन में यह गीत गाता आया है, जिसे स्कूल के फ़ंक्शन्स पर बच्चे अक्सर गाते हैं, जिसे अगर हिंदी का नर्सरी राइम भी कहा जाए तो शायद बहुत ग़लत ना होगा। याद है ना आपको "नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, बाकी जो बचा था कल चोर ले गए"? १९६० की फ़िल्म 'मासूम' का यह गीत याद करते ही दो नाम जो सब से पहले ज़हन में आते हैं, उनमें से एक तो हैं इस गीत की गायिका रानू मुखर्जी और दूसरी, फ़िल्म के पर्दे पर इस गीत को निभाती हुई छोटी सी नन्ही सी हनी इरानी। जी हाँ, ये वही हनी इरानी हैं जिन्होने बहुत सारी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया है, और हाल के कुछ सालों में दादी नानी के किरदारों में छोटे पर्दे पर नज़र आईं थीं। समय तो रुका नहीं रहता लेकिन ग्रामोफ़ोन रिकार्ड और फ़िल्मों के द्वारा जिन लम्हों को हमने क़ैद कर रखा है उनका बार बार आनंद हम उठाते रहे हैं। इस गीत से जुड़ी ये दोनों बच्चियाँ आज अपने छठे दशक को छू रहीं होंगी, लेकिन पर्दे पर, रिकार्ड पर, और लोगों के दिलों पर यह गीत कालजयी बन कर रह गया है।
फ़िल्म 'मासूम' के मुख्य कलाकर थे अशोक कुमार, सुरेश इरानी और मास्टर निसार। युं तो फ़िल्म के ज़्यादातर गीतों के गीतकार थे राजा मेहंदी अली ख़ान और संगीतकार थे रॊबिन बैनर्जी, लेकिन प्रस्तुत गीत को (उपलब्ध जानकारी के अनुसार) शैलेन्द्र ने लिखा था और इसकी धुन बनाई थी हेमन्त कुमार ने। इस गीत को गाने वाली छोटी सी बच्ची रानू मुखर्जी हेमन्त दा की ही सुपुत्री हैं। इस गीत की ख़ास बात यह है कि उन दिनों पार्श्व गायिकाएँ ही बच्चों के लिए प्लेबैक किया करती थीं। यह गीत एक तरह से ऐसा पहला गीत है कि जिसमें किसी बाल गयिका ने किसी बाल अभिनेत्री का पार्श्वगायन किया हो। और यह बताना भी ज़रूरी है कि यह गीत शायद सब से कम उम्र के किसी बच्चे के द्वारा गाए जानेवाला गीत रहा होगा। कितनी उम्र रही होगी रानूकी उस वक़्त, यही कोई ३ या ४ साल! सलिल चौधरी की सुपुत्री अंतरा चौधरी की तरह रानू भी आगे चलकर हिंदी फ़िल्म संगीत में सक्रीय नहीं हुईं, लेकिन इस एक गीत ने उनका नाम मोटे अक्षरों में हिंदी फ़िल्म संगीत के इतिहास में दर्ज करवा दिया। रानू मुखर्जी के बारे में ज़्यादा जानकारियाँ उपलब्ध नहीं है, गूगल में ढ़ूंढें तो "रानू" के बदले "रानी" मुखर्जी के ही तथ्य सामने आते हैं। तो आइए, सुनते हैं इस कालजयी गीत को, यह गीत किसी को पसंद ना आए, और गीत को सुनते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट ना खिले, यह असंभव है।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी, स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म में बाल कलाकारों का साथ दिया था कमलजीत और सिमी गरेवाल ने.
२. इस फिल्म के लिए निर्देशक को फिल्म फेयर में नामांकन मिला था.
३. मुखड़े की दूसरी पंक्ति में शब्द है -"देश".
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ४६ अंकों के साथ मंजिल के करीब हैं अब....बधाई. निशांत जी आपकी पसंद का गीत भी जल्द ही सुनवायेंगें...धन्येवाद
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
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देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग जय हिन्द, जय हिन्द
फ़िल्म : सन ऒफ इन्डिया
गायिका : शान्ति माथुर