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चित्रकथा - 69: स्वर्गीय बालकवि बैरागी की फ़िल्मी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति की सुगंध

अंक - 69 स्वर्गीय बालकवि बैरागी की फ़िल्मी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति की सुगंध "बन्नी तेरी बिन्दिया की ले लूँ रे बल‍इयाँ..."  बालकवि बैरागी (10 फ़रवरी 1931 - 13 मई 2018) 13 मई 2018 को हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि और गीतकार बालकवि बैरागी का 87 वर्ष की आयु में निधन हो जाने से हिन्दी साहित्य के आकाश का एक जगमगाता बुलन्द सितारा अस्त हो गया। 10 फ़रवरी 1931 को मध्यप्रदेश के मंदसौर ज़िले की मनासा तहसील के रामपुर गाँव में जन्में बालकवि बैरागी ने आगे चल कर विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया और समय के साथ-साथ एक प्रसिद्ध साहित्यकार व कवि बन कर निखरे। राजनीति में गहन दिलचस्पी की वजह से वो राजनीति में भी सक्रीय रहे और राज्य सभा के सांसद के रूप में भी चुने गए। और इसी रुचि की झलक उनकी लेखि कविताओं में भी मिलती है। कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित बालकवि बैरागी मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह सरकार में खाद्यमंत्री भी रहे। बालकवि बैरागी की लिखी कविताओं में ’सूर्य उवाच’, ’हैं करोड़ों सूर्य’, ’दीपनिष्ठा को जगाओ’ जैसी कविताएँ यादगार रहे हैं। ’गी

राग आसावरी और अड़ाना : SWARGOSHTHI – 369 : RAG ASAVARI & ADANA

स्वरगोष्ठी – 369 में आज दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 8 : आसावरी थाट पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर से राग आसावरी में खयाल और उस्ताद अमीर खाँ से फिल्म संगीत सुनिए पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर उस्ताद अमीर खाँ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘दस थाट, बीस राग और बीस गीत’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण

चित्रकथा - 68: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 10)

अंक - 68 इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 10) "नहीं समझे हैं वो हमें, तो क्या जाता है..."  हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ के अन्तर्गत पिछले कुछ समय से हम चला रहे हैं इस द