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चित्रकथा - 38: रामायण पर आधारित महत्वपूर्ण हिन्दी फ़िल्में

अंक - 38 विजयदशमी विशेष रामायण पर आधारित महत्वपूर्ण हिन्दी फ़िल्में   आज विजयदशमी का पावन पर्व हर्षोल्लास के साथ पूरे देश भर में मनाया जा रहा है। विजयदशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस शुभवसर पर ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हम अपने सभी श्रोताओं व पाठकों को देते हैं ढेरों शुभकामनाएँ और ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि इस संसार से बुराई समाप्त हो और चारों तरफ़ केवल अच्छाई ही अच्छाई हो; लोग एक दूसरे का सम्मान करें, कोई किसी को हानी ना पहुँचाएँ, ख़ुशहाली हो, हरियाली हो, बस! आइए आज इस पवित्र पर्व पर ’चित्रकथा’ में पढ़ें उन महत्वपूर्ण फ़िल्मों के बारे में जो रामायण की कहानी पर आधारित हैं। पौ राणिक फ़िल्मों का चलन मूक फ़िल्मों के दौर से ही शुरु हो चुका था। बल्कि यह कहना उचित होगा अन्ना सालुंके कि 1920 के दशक में, जब मूक फ़िल्में बना करती थीं, उस समय पौराणिक विषय पर बनने वाली फ़िल्में बहुत लोकप्रिय हुआ करती थीं। रामायण पर आधारित मूक फ़िल्मों में सर्वाधिक लोकप्रिय फ़िल्म रही दादा साहब फाल्क

ठुमरी भैरवी : SWARGOSHTHI – 336 : THUMARI BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 336 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 3 : ठुमरी भैरवी श्रृंगार रस की ठुमरी को मन्ना डे ने हास्य रस में रूपान्तरित किया - “फूलगेंदवा न मारो...” रसूलन बाई मन्ना डे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस तीसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित

चित्रकथा - 37: इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 6)

अंक - 37 इस दशक के नवोदित नायक (भाग - 6) "हम हैं मुंबई के हीरो..."  हर रोज़ देश के कोने कोने से न जाने कितने युवक युवतियाँ आँखों में सपने लिए माया नगरी मुंबई के रेल्वे स्टेशन पर उतरते हैं। फ़िल्मी दुनिया की चमक-दमक से प्रभावित होकर स्टार बनने का सपना लिए छोटे बड़े शहरों, कसबों और गाँवों से मुंबई की धरती पर क़दम रखते हैं। और फिर शुरु होता है संघर्ष। मेहनत, बुद्धि, प्रतिभा और क़िस्मत, इन सभी के सही मेल-जोल से इन लाखों युवक युवतियों में से कुछ गिने चुने लोग ही ग्लैमर की इस दुनिया में मुकाम बना पाते हैं। और कुछ फ़िल्मी घरानों से ताल्लुख रखते हैं जिनके लिए फ़िल्मों में क़दम रखना तो कुछ आसान होता है लेकिन आगे वही बढ़ता है जिसमें कुछ बात होती है। हर दशक की तरह वर्तमान दशक में भी ऐसे कई युवक फ़िल्मी दुनिया में क़दम जमाए हैं जिनमें से कुछ बेहद कामयाब हुए तो कुछ कामयाबी की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। कुल मिला कर फ़िल्मी दुनिया में आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी है यहाँ टिके रहने के लिए। ’चित्रकथा’ में आज से हम शुरु कर रहे हैं इस दशक के नवोदित नायकों पर केन्द्रित एक ल