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आओ फिर से दिया जलाएं.... आव्हान उन सबके लिए जो किसी भी तरह की प्रेरणा चाहते हैं

महफ़िल ए कहकशाँ 12 अटल बिहारी वाजपेयी और लता मंगेशकर  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में   आज पेश है लता मंगेशकर की आवाज़ में अटल बिहारी वाजपेयी की नज़्म| मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"दिल से अपने ख्वाब को सच करने का प्रयास करते रहो, कमियाबी ज़रूरी मिलेगी" - अरविन्द तिवारी : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है (28) Arvind Tiwari  देश से दूर बचपन बीता, मगर एक चीज़ जिसने हमेशा दिल को अपने वतन से बाँध के रखा वो था संगीत, अपने इसी संगीत में कुछ नया करने की चाह ले आई हमारे आज के फनकार, अरविन्द तिवारी को अपने स्वदेश, एक बिजनेस केन्द्रित, बैंकोक स्तिथ परिवार से हैं अरविन्द, जिनकी जड़ें जुडी हैं बनारस के घाटों से. अरविन्द की पहली संगीत एल्बम "रंग तेरा" आज सभी संगीत प्लेत्फोर्म्स पर उपलब्ध है. आईये मिलें इसी उभरते हुए गायक अरविन्द तिवारी से आज 'एक मुलाकात ज़रूरी है' के इस ताज़ा एपिसोड में.... एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें 

सूर मल्हार : SWARGOSHTHI – 283 : SUR MALHAR

स्वरगोष्ठी – 283 में आज पावस ऋतु के राग – 4 : पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए सूर मल्हार “बादरवा गरजत आए...” और “बादरवा बरसन लागी...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल