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राग मेघ मल्हार : SWARGOSHTHI – 280 : RAG MEGH MALHAR

स्वरगोष्ठी – 280 में आज पावस ऋतु के राग – 1 : आषाढ़ के पहले मेघ का स्वागत “बरसो रे काले बादरवा हिया में बरसो...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हमारी नई श्रृंखला – “पावस ऋतु के राग” आरम्भ हो रही है। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आपको स्वरों के माध्यम से बादलों की उमड़-घुमड़, बिजली की कड़क और रिमझिम फुहारों में भींगने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत करेंगे। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा म

"तेरी ही लत लगी है आजकल" - क्या वाक़ई Singles की लत लगी है आजकल?

चित्रशाला - 09 Singles - ग़ैर फ़िल्म-संगीत की नई प्रवृत्ति 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! प्रस्तुत है फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत के विभिन्न पहलुओं से जुड़े विषयों पर आधारित शोधालेखों का स्तंभ ’चित्रशाला’।  भले इस स्तंभ में हम फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत संबंधित विषयों पर चर्चा करते हैं, आज हम नियम भंग करने की ग़ुस्ताख़ी कर रहे हैं, हालाँकि जिस विषय की हम चर्चा करने जा रहे हैं वह फ़िल्म जगत से बहुत ज़्यादा दूरी पर नहीं है। आज हम चर्चा करेंगे संगीत के एक नए झुकाव की, आज के दौर के संगीत की एक नई प्रवृत्ति जिसे हम ’Singles' का नाम देते हैं।  भा रत एक ऐसा देश है जहाँ 100 करोड़ लोगों की आबादी कुछ गिने चुने सितारों के ही दीवाने हैं, और जहाँ हिन्दी फ़िल्मों से बढ़ कर कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो 100 करोड़ आबादी तक समान रूप से पहुँच सके। अतीत में यह बिल्कुल आश्चर्य की बात नहीं थी कि अगर आपको अपना गीत जन जन तक पहुँचाना हो तो उसे एक फ़िल्मी गीत ही होना पड़ता था। लेकिन आज समय बदल चुका है। एक नया

"है जिसकी रंगत शज़र-शज़र में, ख़ुदा वही है...", कविता सेठ ने सूफ़ियाना कलाम की रंगत ही बदल दी हैं

कहकशाँ - 15 कविता सेठ की गाई हुई एक नज़्म    "ख़ुदा वही है..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ।  आज पेश है गायिका कव