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"गाता रहे मेरा दिल...", क्यों फ़िल्म के बन जाने के बाद इस गीत को जोड़ा गया?

एक गीत सौ कहानियाँ - 81   ' गाता रहे मेरा दिल... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 81-वीं कड़ी में आज जानिए 1966 की मशहूर फ़िल्म ’गाइड’ के मशहूर गीत "गाता रहे मेरा दिल..." के बारे में जिसे किशोर

अँखियाँ नूं चैन न आवे...बाबा नुसरत की रूहानी आवाज़ आज महफ़िल ए कहकशां में

महफ़िल ए कहकशां  4 नुसरत फ़तेह अली खान दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए नुसरत फ़तेह अली खान साहब के रूहानी स्वर में एक जुदाई गीत. मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"मुझे दो सालों तक राजेश रोशन से मिलने नहीं दिया गया" - गीतकार इब्राहीम अश्क

एक मुलाकात ज़रूरी है (9)  इब्राहीम अश्क  आ ज के हमारे मेहमान एक मशहूर शायर, एक लोकप्रिय गीतकार होने के साथ साथ एक अच्छे खासे अभिनेता भी हैं. सुपर स्टार ह्रितिक रोशन के सुपर स्टारडम में इनके गीतों का बेहद महत्वपूर्ण स्थान रहा है. "कहो न प्यार है". "क्यों चलती है पवन", "सितारों की महफ़िल में", "जादू जादू", "इट्स मेजिक" जैसे ढेर सारे सुपर डुपर हिट गीतों के रचेयता इब्राहीम अश्क साहब पधारे हैं आज हमारी बज़्म में. आईये उन्हीं से जानते हैं कि क्यों उन्होंने अपना तक्कलुस "अश्क" रखा, क्यों उन्हें दो सालों तक संगीतकार राजेश रोशन से मिलने से महरूम रहना पड़ा, क्यों ग़ालिब के किरदार को मंच पर जीवंत करने में उन्हें अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी, और क्यों अपने "मोहब्बत इनायत" जैसे कामियाब गीत के बावजूद उन्हें एक स्टार गीतकार बनने के लिए ९ सालों का इंतज़ार करना पड़ा.

राग रागेश्री : SWARGOSHTHI – 268 : RAG RAGESHRI

स्वरगोष्ठी – 268 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन -1 : मन्ना डे को जन्मदिन पर स्मरण ‘कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झंकार लिये...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से हमारी नई श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ का शुभारम्भ हो रहा है। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का भी सहयोग लिया है। आप सब संगीत-प्रेमियों का मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ श्रृंखला के प्रवेशांक में हार्दिक स्वागत करता हूँ। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर आधारित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हम मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की और फिर उस राग की जानकारी देंगे। श्रृंखला की पहली कड़ी में आज हमने राग रागेश्री में उनका स्वरबद्ध किया, फिल्म ‘देख कबीरा रोया’ का एक गीत चुना है। इस गीत को पार्श्वगायक मन्ना डे ने स्वर दिया था। इस गीत को चुनने का एक कारण यह भी है कि

"नायक नहीं खलनायक हूँ मैं" - जब फ़िल्मी नायक असली ज़िन्दगी में बन गए खलनायक

चित्रशाला - 08 नायक नहीं खलनायक हूँ मैं जब फ़िल्मी नायक असली ज़िन्दगी में बन गए खलनायक 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! प्रस्तुत है फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत के विभिन्न पहलुओं से जुड़े विषयों पर आधारित शोधालेखों का स्तंभ ’चित्रशाला’। हमारे फ़िल्मी नायक हम पर गहरा छाप छोड़ते हैं। कई बार लोग अपने पसन्दीदा नायकों को असली ज़िन्दगी में भी अपना नायक और कई बार तो अपना भगवान मान बैठते हैं, लगभग उनकी पूजा करते हैं, यह सोचे बग़ैर कि क्या सचमुच वो इस लायक हैं? आज ’चित्रशाला’ में हम चर्चा करेंगे कुछ ऐसे फ़िल्मी नायकों का जो अपनी असली ज़िन्दगी में खलनायक की भूमिका निभा चुके हैं। "ना यक नहीं खलनायक हूँ मैं, ज़ुल्मी बड़ा दुखदायक हूँ मैं...", साल 1993 में फ़िल्म ’खलनायक’ के लिए जब यह गीत बना था और ख़ूब चला भी था, तब शायद किसी को इस बात का अन्दाज़ा नहीं था कि इसी साल ये बोल इस गीत के नायक संजय दत्त की असली ज़िन्दगी पर भी लागू हो जाएगा। 1993 में मुंबई में हुए सीरिअल बम धमाकों, जिनमें 257

अखियाँ नु चैन न आवे....नुसरत बाबा का रूहानी अंदाज़ आज 'कहकशाँ’ में

कहकशाँ - 8 नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें   "अब तो आजा कि आँखें उदास बैठी हैं..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी

"गॉड इस ग्रेट, बस इतना ही कहा रहमान जी ने" - हेमा सरदेसाई

एक मुलाकात ज़रूरी है (8) "हि न्दुस्तानी गुडिया" और "पिया से मिलके आये नैन" जैसी एलबम्स से करियर की शुरुआत करने वाली बेहद चुलबुली और अनूठी आवाज़ की मालकिन हेमा सरदेसाई हैं आज की हमारी ख़ास मेहमान कार्यक्रम "एक मुलाकात ज़रूरी है" में. रहमान के संगीत निर्देशन में "आवारा भंवरे" गीत गाने के बाद तो हेमा का नाम घर घर में गूंजने लगा था. अपने दौर के लगभग सभी बड़े संगीतकारों के साथ हेमा ने एक के बाद एक हिट गीत गाये. आईये मिलते हैं हेमा सरदेसाई से और रूबरू होते हैं उनके संगीत सफ़र की दिलचस्प दास्ताँ के कुछ और पहलुओं से.... एक मुलाकात ज़रूरी है कार्यक्रम का ये एपिसोड You Tube पर भी उपलब्ध है...