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"तुम जियो हज़ारों साल...", आशा जी के जन्मदिन पर यही कह कर उन्हें शुभकामनाएँ देते हैं

एक गीत सौ कहानियाँ - 40   ‘तुम जियो हज़ारों साल... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्युटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ' ।  इसकी 40वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'सुजाता' के गीत "तुम जियो हज़ारों साल..." के बारे में।  फ़ि ल्म-संगीत की एक ख़ास बात यह रही है कि इसमें मानव जीवन के हर रंग को

‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ : SWARGOSHTHI – 183 : DADARA BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 183 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 2 : भैरवी दादरा उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का गाया दादरा जब मन्ना डे ने दुहराया- ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के दूसरे अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। यह पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित श्रृंखला का परिमार्जित रूप है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख, चित्र दृश्य माध्यम और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम के मिले-जुले रूप में प्रस्तुत होते हैं। इस श्रृंखला से हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्रृंखला के अंक हम प्रायोगिक रूप से दोनों माध्यमों में प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की प्रमुख सहयोगी संज्ञा टण्डन की आवाज़ में पूरा आलेख और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। हमारे इस प्रयोग पर आप अपनी प्रतिक्रिया अवश्य

"हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे", क्या आपकी भी स्कूल-कालेज के दिनों की यादें जुड़ी हुई हैं इस गीत के साथ?

एक गीत सौ कहानियाँ - 39   ‘हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ - 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 39-वीं कड़ी में आज जानिये हसन जहाँगीर के गाये मशहूर गीत - "हवा हवा ऐ हवा ख़ुशबू लुटा दे..." के बारे में।  1980 के दशक में जब फ़िल्म-संगीत का स्त