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सुरीली बाँसुरी के पर्याय पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया

स्वरगोष्ठी – 174 में आज व्यक्तित्व – 4 : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया ‘देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, विश्वविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, जिन्होने एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी के मोहक सुरों के बल पर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका को फहराया है। चौरसिया जी की बाँसुरी ने शास्त्रीय मंचों पर तो संगीत प्रेमियों को सम्मोहित किया ही है, फिल्म संगीत के प्रति भी उनका लगाव बना रहा। उन्होने सुप्रसिद्ध सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमार शर

संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए

स्मृतियों के स्वर - 04 संगीतकार शंकर अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ हमारे इस स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम और आप साथ मिल कर गुज़रते हैं स्मृतियों के इन हसीन गलियारों से। दोस्तों, आ

संगीतकार मदनमोहन के राग आधारित गीत

स्वरगोष्ठी – 173 में आज व्यक्तित्व – 3 : फिल्म संगीतकार मदनमोहन ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ...’    ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, फिल्म संगीत-प्रेमियों के बीच “गजल-सम्राट” की उपाधि से विभूषित यशस्वी संगीतकार, मदनमोहन। उनके संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे। विभिन्न