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सुन दर्द मेरा बेदर्द सनम...

खरा सोना गीत - बेईमान बालमा  प्रस्तोता - श्वेता पाण्डे स्क्रिप्ट - सुजोय चट्टरजी प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

एक चुराई हुई धुन के मोहताज़ हुए ज़रदोज़ी लम्हें

ताज़ा सुर ताल - ज़रदोज़ी लम्हें  अक्सर हमारे संगीतकार विदेशी धुनों की चोरी करते हुए पकडे जाते हैं, पर आज जिक्र एक ऐसे नए गीत का जो लगभग २० साल पहले बना एक खूबसूरत मगर कमचर्चित गीत हिंदी गीत की ही हूबहू नक़ल है. 1996 में बाली सागू जो भारत में रेमिक्सिंग के गुरु माने जाते हैं, ने अपनी पहली मूल गीतों की एल्बम 'रायिसिंग फ्रॉम द ईस्ट' लेकर आये. संगीत प्रेमियों ने इस एल्बम को हाथों हाथ लिया, तुझ बिन जिया उदास, दिल चीज़ है क्या   और नच मलंगा  जैसे हिट गीतों के बीच उदित नारायण का गाया बन में आती थी एक लड़की   शायद कुछ कम सुना ही रह गया था, और इसी बात का फायदा उठाया आज के संगीतकार संजीव श्रीवास्तव ने और फिल्म रोवोल्वर रानी  में इसी तर्ज पर बना डाला ज़रदोज़ी लम्हें .  लीजिये पहले सुनिए बाली सागू का बन में आती थी एक लड़की  और अब सुनिए ये बेशर्म नक़ल, वैसे फिल्म रेवोल्वर रानी   में कुछ बेहद अच्छे गीत भी हैं, जिनकी चर्चा फिर कभी...       

बड़ी बड़ी अंखियों से डर गया जी....

खरा सोना गीत - जाने कहाँ मेरा जिगर गया  प्रस्तोता - श्वेता पाण्डे स्क्रिप्ट - सुजोय चट्टरजी प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

सौ रंग बिखेरती मधुर सारंगी

स्वरगोष्ठी – 170 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 8 मानव-कण्ठ का अनुकरण करने में सक्षम लोक और शास्त्रीय तंत्रवाद्य सारंगी      ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की आठवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। वाद्य परिचय श्रृंखला की आज यह समापन कड़ी है और आज की इस कड़ी में हम आपसे एक ऐसे गज-

"हरि दिन तो बीता शाम हुई..." - जानिये गायिका राजकुमारी के इस अन्तिम गीत की दास्तान

एक गीत सौ कहानियाँ - 32   ‘ हरि दिन तो बीता, शाम हुई ...’ 'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारी ज़िन्दगियों से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कम सुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह साप्ताहिक स्तंभ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 32वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'किताब' के राजकुमारी की गायी लोरी "हरि दिन तो बीता शाम हुई..." के बारे में।  1977 की यादगार फ़िल्म 'किताब' आप

एक दर्द भरा नगमा हिमेश मार्का

ताज़ा सुर ताल - दर्द दिलों के  (एक्सपोस) जब से हिमेश रेशमिया संगीत निर्देशन में आये हैं, तब से हम उन्हें बहुत से मुक्तलिफ़ रूपों में देख चुके हैं, हिमेश केवल हिट गीत देने में विश्वास रखते हैं और बहुत अधिक अपने 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर जाकर काम नहीं करते हैं, बावजूद इसके उनकी धुनों में एक ख़ास मिठास हमेशा से रही है ( ओढ़नी , क्यों किसी को वफ़ा के बदले, तेरी मेरी प्रेम कहानी  आदि), हिमेश इन दिनों अपने निर्माताओं को डबल बोनान्जा बाँट रहे हैं, यानी कि जो उनकी अपनी कहानी पर फिल्म बनायेगा उसके लिए वो अभिनय भी करेगें और जाहिर है जब अभिनय करेगें तो संगीत में भी अपनी पूरी ताकत झोंक देंगें. कुछ ऐसा ही है उनकी ताज़ा पेशकश एक्सपोस  का हाल. इस एल्बम में भी हर मूड के गीत हैं और सब के साब हिमेश की पक्की छाप वाले. कुछ बहुत नया न देते हुए भी हिमेश ऐसे गीत बनाने में कामियाब हुए हैं जिनका हिट होना लगभग तय है. खासकर ये गीत जो हम आपको सुना रहे हैं इसमें वही चिर परिचित हिमेशिया माधुर्य भी है और शास्त्रीयता की मिठास भी. मोहम्मद इरफ़ान ने बहुत दिल से गाया है इसे (शुक्र है हिमेश ने खुद नहीं गाया ये गीत)

तालवाद्य घटम् पर एक चर्चा

स्वरगोष्ठी – 169 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 7 एक सामान्य मिट्टी का घड़ा, जो लोक मंच के साथ ही शास्त्रीय मंच पर भी सुशोभित हुआ     ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की सातवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे लोकवाद्य पर चर्चा करेंगे जो अवनद्ध व