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और आज बारी है 'सिने पहेली' के महामुक़ाबले की....

सिने पहेली : महा-मुक़ाबला 'सिने पहेली' के सभी चाहने वालों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, आज वह दिन आ गया है जिसका शायद आप सभी को बेसब्री से इन्तज़ार था। जी हाँ, आज बारी है 'सिने पहेली' प्रतियोगिता की अन्तिम भिड़न्त, यानी महामुकाबले की। जैसा कि पिछले हफ़्ते हमें पाँच प्रतियोगी मिल गये हैं इस महामुकाबले के लिए, आप पाँचों के बीच होगा यह आख़िरी जंग और इसी जंग के परिणाम से घोषित होगा 'सिने पहेली' का महाविजेता। आगे बढ़ने से पहले आइए एक बार फिर जान लें कि कौन पाँच खिलाड़ियों ने क्वालिफ़ाई किया है इस महासंग्राम में। आप पाँचों को ढेरों शुभकामनाएँ और आप में से कोई भी जीत सकता है 'महाविजेता' का ख़िताब। अपने आप को ज़रा सा भी कम न समझें और जी-जान लगा दीजिये महाविजेता बनने के लिए। आपकी मेहनत ज़रूर रंग लायेगी। अब ज़्यादा समय न गँवाते हुए सीधे चलते हैं महामुक़ाबले के सवालों पर। तो ये रहे 10 सवाल जिन्हें आपको हल करने हैं- महा-मुक़ाबले के सवाल सिने पहेली के इस निर्णायक महामुक़ाबले के

आईये घूम आयें बचपन की गलियों में इन ताज़ा गीतों के संग

ताज़ा सुर ताल - 2014 -07 - बचपन विशेष  जेब (बाएं) और हनिया  ताज़ा सुर ताल की एक और कड़ी में आपका स्वागत है, आज जो दो नए गीत हम चुनकर लाये हैं वो यक़ीनन आपको आपके बचपन में लौटा ले जायेगें. हाईवे  के संगीत की चर्चा हमने पिछले अंक में भी की थी, आज भी पहला गीत इसी फिल्म से. दोस्तों बचपन की सबसे खूबसूरत यादों में से एक होती है माँ की मीठी मीठी लोरियाँ जिसे सुनते हुए कब बरबस ही नींद आँखों में समा जाती थी पता भी नहीं चलता था. इन दिनों फिल्मों में लोरियाँ लौट सी आई है, तभी तो राऊडी राठोड  जैसी जबरदस्त व्यवसायिक फिल्मों में भी लोरियाँ सुनने को मिल जाती हैं. पर यकीन मानिये हाईवे की ये लोरी अब तक की सुनी हुई सब लोरियों से अल्हदा है, इस गीत में गीतकार इरशाद की मेहनत खास तौर पे कबीले तारीफ है. सुहा यानी लाल, और साहा यानी खरगोश, माँ अपने लाडले को लाल खरगोश कह कर संबोधित कर रही है, शब्दों का सुन्दर मेल इरशाद ने किया है उसका आनंद लेने के लिए आपको गीत बेहद ध्यान से सुनना पड़ेगा. रहमान की धुन ऐसी कि सुन कर उनके कट्टर आलोचक भी भी उनकी तारीफ किये बिना नहीं रह पायेगें. आखिर यूहीं तो नहीं उन्हें

याद करें मन्ना दा को इस शानदार गीत के साथ

खरा सोना गीत : आयो कहाँ से घनश्याम प्रस्तोता : अर्शना सिंह स्क्रिप्ट : संज्ञा टंडन प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

फिल्म 'सौ साल बाद' का रागमाला गीत

प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 6 राग भटियार, आभोगी, मेघ मल्हार और बसन्त बहार में पिरोया गया रागमाला गीत ‘एक ऋतु आए एक ऋतु जाए...’ फिल्म : सौ साल बाद (1966) गायक : लता मंगेशकर और मन्ना डे गीतकार : आनन्द बक्शी संगीतकार : लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल आलेख : कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन   आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव से हमें radioplaybackindia@live.com पर अवश्य अवगत कराएँ। 

मुंशी प्रेमचंद स्त्री और पुरुष

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में मुनीश शर्मा की कथा " लघु बोधकथा " सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी स्त्री और पुरुष जिसे स्वर दिया है माधवी चारुदत्ता ने। प्रस्तुत व्यंग्य का गद्य " भारत डिस्कवरी " पर उपलब्ध है। " स्त्री और पुरुष " का कुल प्रसारण समय 15 मिनट 26 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं  ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "उन्होंने उस सुंदरी की कल्पना करनी शुरू की जो उनके हृदय की रानी होगी; उसम

मादक आदयें आवाज़ की, गीता दत्त का नशीला जादू

खरा सोना गीत : अरे तौबा प्रस्तोता : रचिता टंडन स्क्रिप्ट : सुजॉय चट्टर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

बसन्त ऋतु और राग बसन्त बहार SWARGOSHTHI – 155

स्वरगोष्ठी – 155 में आज ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन राग बसन्त बहार से ‘माँ बसन्त आयो री...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, पिछली दो कड़ियों से हम आपसे बसन्त ऋतु के रागों की चर्चा कर रहे हैं। बसन्त ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त और राग बहार गाया-बजाया जाता है। परन्तु इन दोनों रागों के मेल से एक तीसरे राग ‘बसन्त बहार’ की सृष्टि भी होती है, जिसमें राग का स्वतंत्र अस्तित्व भी रहता है और दोनों रागों की छाया भी परिलक्षित होती है। दोनों रागों के सन्तुलित प्रयोग से राग ‘बसन्त बहार’ का वास्तविक सौन्दर्य निखरता है। कभी-कभी समर्थ कलासाधक प्रयुक्त दोनों रागों में से किसी एक को प्रधान बना कर दूसरे का स्पर्श देकर प्रस्तुति को एक नया रंग दे देते हैं। आज के अंक में हम पहले इस राग का एक अप्रचलित तंत्रवाद्य विचित्र वीणा पर वादन प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद अनूठे समूहगान के रूप में 2750 गायक-गायिकाओं के समवेत स्वर में राग बसन्त बहार की प्रस्तुति होगी। आज