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बसन्त ऋतु और राग बहार SWARGOSHTHI – 154

स्वरगोष्ठी – 154 में आज ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन राग बहार से ‘कलियन संग करता रंगरेलियाँ...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, पिछले अंक में हमने बसन्त पंचमी के उपलक्ष्य मे राग बसन्त के माध्यम से ऋतुराज का स्वागत किया था और भारतीय संगीत के महान रत्न पण्डित भीमसेन जोशी को उनके जन्मदिवस पर स्मरण किया था। आज संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में बसन्त ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले एक और राग, बहार की चर्चा होगी। साथ ही पण्डित भीमसेन जोशी को एक बार पुनः उन्हीं की कृति के माध्यम से स्मरण करेंगे। भारतीय संगीत के विश्वविख्यात कलासाधक और सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘भारतरत्न’ से अलंकृत पण्डित भीमसेन जोशी का जन्म भी बसन्त ऋतु में 4 फरवरी, 1922 को हुआ था। बसन्त ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले कुछ मुख्य रागों की चर्चा का यह सिलसिला हमने गत सप्ताह से आरम्भ किया है। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आज हम आपसे राग बहार पर चर्चा करेंगे।       पि छले अंक में हमने आ

सिने पहेली - 100

सिने पहेली –100 'सिने पहेली' के सभी प्रतियोगियों व पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, आज 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के लिए और ख़ास तौर से इस स्तंभ के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि आज 'सिने पहेली' लगा रही है अपना शतक। दसवें सेगमेण्ट का दसवाँ और अन्तिम एपिसोड, अर्थात्‍ 'सिने पहेली' का 100वाँ अंक, जिसे प्रस्तुत करते हुए मुझे बड़ी ख़ुशी हो रही है। 2 जनवरी 2012 को 'सिने पहेली' का यह सफ़र शुरू हुआ था, और लगातार सवाल दर सवाल, एपिसोड दर एपिसोड, और सेगमेण्ट दर सेगमेण्ट पहेलियों का यह कारवाँ आगे बढ़ता चला गया। इस सफ़र के हमसफ़र बनें आप सब प्रतियोगी और यह आप ही के उत्साह, मेहनत और भागीदारी का नतीजा है जो यह कारवाँ अपनी मंज़िल तक पहुँचने में कामयाब हुआ। इसके लिए हम आपके अत्यन्त आभारी हैं और बधाई के पात्र भी। 'सिने पहेली' के इस माइलस्टोन एपिसोड में एक बार फिर आप सभी का हार्दिक स्वागत है और प्रस्तुत है इस प्रतियोगिता के अन्तिम सेगमेण्ट की अन्तिम पहेली, यानी 'सिने पहेली-100'।

कोई इश्क की नामुरादी को रोया तो वफ़ा की तलाश में खोया

ताज़ा सुर ताल - 2014 - 05  : शब्द प्रधान गीत   विशेष  ताज़ा सुर ताल के इस अंक में आपका एक बार फिर से स्वागत है दोस्तों, आज का ये अंक है शब्द प्रधान गीत विशेष. आजकल गीतों में शब्दों के नाम पर ध्यान आकर्षित करने वाले जुमलों की भरमार होती है, संगीतकार अपने हर गीत को बस तुरंत फुरंत में हिट बना देना चाहते हैं, अक्सर ऐसे गीत चार छे हफ़्तों के बाद श्रोताओं के जेहन से उतर जाते हैं. ऐसे में कुछ ऐसे गीतों का आना बेहद सुखद लगता है जिन पर शाब्दिक महत्त्व का असर अधिक हो, आज के अंक में हम ऐसे ही दो गीत चुन कर लाये हैं आपके लिए. पहले गीत के रचनाकार हैं शायर अराफात महमूद ओर इसे सुरों से सजाया है संगीतकार गौरव डगाउंकर ने. गायक के नाम का आप अंदाजा लगा ही सकते हैं, जी हाँ अरिजीत सिंह... उत्सव  से अभिनय की शुरुआत कर शेखर सुमन ने फिल्म ओर टेलीविज़न की दुनिया में अपना एक खास मुकाम बनाया है. हार्टलेस   बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म है जिसमें अभिनय कर रहे हैं उनके सुपुत्र अध्यायन सुमन. चलिए अब बिना देर किये हम आपको सुनवाते हैं ये खूबसूरत गज़ल नुमा गीत.  मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला  पता चला कि

किशोर के इस खिलंदड अंदाज़ का कोई सानी नहीं

खरा सोना गीत : इना मीना डीका प्रस्तोता - लिंटा मनोज  स्क्रिप्ट - सुजॉय चट्टर्जी  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 

ऋतु प्रधान रागों से अलंकृत गीत : ‘ऋतु आए ऋतु जाए सखी...'

प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 4 गौड़ सारंग, गौड़ मल्हार, जोगिया और बहार रागों का अनूठा मेल ऋतु परिवर्तन की अनुभूति कराता गीत ‘ऋतु आए ऋतु जाए सखी री, मन के मीत न आए...’ फिल्म : हमदर्द (1953) गायक : मन्ना डे और लता मंगेशकर  गीतकार : प्रेम धवन  संगीतकार : अनिल विश्वास आलेख : कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया से हमें radioplaybackindia@live.com पर अवश्य अवगत कराएँ। 

जब वहीदा रहमान ने यादगार बना डाला इस गीत को

खरा सोना गीत : बदले बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैं... प्रस्तोता  : अंतरा चक्रवर्ती  स्क्रिप्ट : सुजॉय चट्टर्जी  प्रस्तुति : संज्ञा टंडन 

बसन्त ऋतु की दस्तक और वाणी वन्दना

    स्वरगोष्ठी – 153 में आज पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन  ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों आज संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में चर्चा के लिए दो उल्लेखनीय अवसर हैं। आज से ठीक दो दिन बाद अर्थात 4 फरवरी को बसन्त पंचमी का पर्व है। यह दिन कला, साहित्य और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना का दिन है। इसी दिन प्रकृति में ऋतुराज बसन्त अपने आगमन की दस्तक देते हैं। इस ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त का गायन-वादन अनूठा परिवेश रचता है। आज के अंक में हम आपके लिए राग बसन्त की एक बन्दिश- ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ लेकर उपस्थित हुए हैं। यह रचना आज इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इसे पण्डित भीमसेन जोशी ने अपना स्वर दिया है। यह तथ्य भी रेखांकन योग्य है कि 4 फरवरी को इस महान संगीतज्ञ की 93वीं जयन्ती भी है। चूँकि इस दिन बसन्त पंचमी का पर्व भी है, अतः आज हम आपको वर्ष 1977 की फिल्म ‘आलाप’ से लत