Skip to main content

Posts

राम चाहे सुरों की "लीला"

नि र्देशक से संगीतकार बने संजय लीला बंसाली ने ' गुज़ारिश ' में जैसे गीत रचे थे उनका नशा उनका खुमार आज तक संगीत प्रेमियों के दिलो-जेहन से उतरा नहीं है. सच तो ये है कि इस साल मुझे सबसे अधिक इंतज़ार था, वो यही देखने का था कि क्या संजय वाकई फिर कोई ऐसा करिश्मा कर पाते हैं या फिर " गुजारिश " को मात्र एक अपवाद ही माना जाए. दोस्तों रामलीला , गुजारिश से एकदम अलग जोनर की फिल्म है. मगर मेरी उम्मीदें आसमां छू रही थी, ऐसे में रामलीला का संगीत सुन मुझे क्या महसूस हुआ यही मैं आगे की पंक्तियों में आपको बताने जा रहा हूँ.  अदिति पॉल की नशीली आवाज़ से खुलता है गीत  अंग लगा दे . हल्की हल्की रिदम पर मादकता से भरी अदिति के स्वर जादू सा असर करती है उसपर शब्द 'रात बंजर सी है, काले खंजर सी है' जैसे हों तो नशा दुगना हो जाता है. दूसरे अंतरे से ठीक पहले रिदम में एक तीव्रता आती है जिसके बाद समर्पण का भाव और भी मुखरित होने लगता है. कोरस का प्रयोग सोने पे सुहागा लगता है.  धूप से छनके उतरता है अगला गीत श्रेया की रेशम सी बारीक आवाज़ में, सुरों में जैसे रंग झलकते हैं. ताल जैसे

इस ईद "जिक्र" उस परवरदिगार का सूफी संगीत में

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  सूफी संगीत भाग २  कहा जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा. भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे. (पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ सकते हैं)

‘जय जय हे जगदम्बे माता...’ : नवरात्र पर विशेष

स्वरगोष्ठी – 140 में आज रागों में भक्तिरस – 8 राग यमन में सांध्य-वन्दन के स्वर        ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम भारतीय संगीत के सर्वाधिक लोकप्रिय राग कल्याण अर्थात यमन पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए दो रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। पहले आप सुनेंगे 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगा की लहरें’ से शक्तिस्वरूपा देवी दुर्गा की प्रशस्ति करता एक आरती गीत। आज के अंक में यह भक्तिगीत इसलिए भी प्रासंगिक है कि आज पूरे देश में शारदीय नवरात्र पर्व के नवें दिन देवी के मातृ-स्वरूप की आराधना पूरी आस्था के साथ की जा रही है। इसके साथ ही विश