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सिने-पहेली : देखें जरा किसमें है कितना दम

सिने-पहेली - 6 2 में आज ' रेडियो प्लेबैक इण्डिया ' के सभी पाठकों और श्रोताओं को अमित तिवारी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों ,   सुजॉय जी की व्यस्तता की वजह से सिने-पहेली को फिर से रोकना पड़ा था और 4 हफ्तों के अन्तराल के बाद सिने-पहेली का 62 वां अंक आप सबके सामने है. पहेलियों का पूरा ताना बाना सुजॉय जी का ही रचा हुआ है और मेरा काम केवल प्रस्तुतिकरण का है. गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है पर हमारी कोशिश यही रहेगी कि सिने-पहेली का यह अंक आपको शीतलता प्रदान करे. आज से इस प्रतियोगिता में जुड़ने वाले नये खिलाड़ियों का स्वागत करते हुए हम उन्हें यह भी बताना चाहेंगे कि अभी भी कुछ देर नहीं हुई है , आज से इस प्रतियोगिता में जुड़ कर भी आप महाविजेता बन सकते हैं , यही इस प्रतियोगिता की ख़ासियत है। इस प्रतियोगिता के नियमों का नीचे किया गया है , ध्यान दीजियेगा। आज की पहेली : कॉलम 1 के गानों को कॉलम 2 के गानों से मिलाइए क्रमांक कॉलम 1 कॉलम 2 1 ऐ मेरे हमसफर इक जरा इंतज़ार छोटी छोटी रातें लम्बी हो जाती हैं 2 घुं

भारतीय सिनेमा के सौ साल : विशेषांक

एक शताब्दी का हुआ भारतीय सिनेमा ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से शुरू हुआ भारतीय सिनेमा का इतिहास आज से ठीक एक शताब्दी पहले, आज के ही दिन अर्थात 3 मई, 1913 को विदेशी उपकरणों से बनी किन्तु भारतीय चिन्तन और संस्कृति के अनुकूल पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का प्रदर्शन हुआ था। भारतीय सिनेमा के इतिहास में ढुंडिराज गोविन्द फालके, उपाख्य दादा साहेब फालके द्वारा निर्मित मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ को भारत के प्रथम कथा-चलचित्र का सम्मान प्राप्त है। इस चलचित्र का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 3 मई, 1913 को गिरगाँव, मुम्बई स्थित तत्कालीन कोरोनेशन सिनेमा में किया गया था। इस ऐतिहासिक अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से सभी पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज के इस विशेष अंक में हम आपके लिए लेकर आए हैं, प्रथम भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का एक ऐतिहासिक और दुर्लभ वीडियो अंश।  दादा साहेब फालके पि छली एक शताब्दी में भारतीय जनजीवन पर सिनेमा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। सामान्य जीवन के हर क्षेत्र को सिनेमा ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। यहाँ तक क

‘बूझ मेरा क्या नाम रे...’ तीसरा भाग

पार्श्वगायिका शमशाद बेगम को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की श्रद्धांजलि ‘कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना...'   फिल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायिकाओं में शमशाद बेगम का 23 अप्रैल को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। खनकती आवाज़ की धनी इस गायिका ने 1941 की फिल्म खजांची से हिन्दी फिल्मों के पार्श्वगायन क्षेत्र में अपनी आमद दर्ज कराई थी। आत्मप्रचार से कोसों दूर रहने वाली इस गायिका को श्रद्धांजलि-स्वरूप हम अपने अभिलेखागार से अगस्त 2011 में अपने साथी सुजॉय चटर्जी द्वारा प्रस्तुत दस कड़ियों की लघु श्रृंखला 'बूझ मेरा क्या नाम रे…' के सम्पादित अंश का तीसरा भाग प्रस्तुत कर रहे हैं।  ‘ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में शमशाद बेगम की खनकती आवाज़ इन दिनों गूँज रही है, उन्हीं को समर्पित लघु श्रृंखला 'बूझ मेरा क्या नाम रे...' में। आज हम जिस संगीतकार की रचना सुनवाने जा रहे हैं, उन्होंने भी शमशाद बेगम को एक से एक लाजवाब गीत दिए और उनकी आवाज़ को 'टेम्पल बेल वॉयस' की उपाधि देने वाले ये संगीतकार थे, ओ.पी. नैयर। नैयर साहब के अनुसार दो गायिकाएँ हैं जिनकी आवाज़

शमशाद बेगम को गीतों सजी श्रद्धान्जली

प्लेबैक  इंडिया साप्ताहिक ब्रोडकास्ट शमशाद बेगम के गाये राग आधारित फ़िल्मी गीत  स्क्रिप्ट  - कृष्णमोहन मिश्र  स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन

मुंशी प्रेमचंद की अमर रचना दो बैलों की कथा

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा के स्वर में पुरुषोत्तम पाण्डेय की कहानी " लातों का देव " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी दो बैलों की कथा जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी "दो बैलों की कथा" का गद्य भारत डिस्कवरी पर उपलब्ध है। इस कथा का कुल प्रसारण समय 26 मिनट 50 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी “गधा सचमुच बेवकूफ है या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका

सिनेमा के शानदार 100 बरस को अमित, स्वानंद और अमिताभ का संगीतमय सलाम

प्लेबैक वाणी -4 4 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस सि नेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे  टा'कीस  नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों की चार मुक्तलिफ़ कहानियों का संकलन होगी ये फिल्म. ये चार निर्देशक हैं ज़ोया अख्तर, करण जोहर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बैनर्जी. अमित त्रिवेदी का है संगीत तथा गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे और अमिताभ भट्टाचार्य. चलिए देखते हैं फिल्म की एल्बम में बॉलीवुड के कितने रंग समाये हैं.  पहला  गीत बच्चन  हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को समर्पित है...जी हाँ सही पहचाना वही जो रिश्ते में सबके बाप  हैं. शब्दों में अमिताभ भट्टाचार्य ने सरल सीधे मगर असरदार शब्दों में हिंदी फिल्मों पर बच्चन साहब के जबरदस्त प्रभाव को बखूबी बयाँ किया है. अमित की तो बात ही निराली है, गीत का संगीत संयोजन कम

आधी शताब्दी का हुआ भोजपुरी सिनेमा

स्वरगोष्ठी – 118 में आज यूँ बनी पहली भोजपुरी फिल्म- ‘गंगा मैया तोहें पियरी चढ़इबो’ संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ। भारतीय सिनेमा के इतिहास में 4 अप्रैल, 1963 की तिथि इसलिए बेहद महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहें पियरी चढ़इबो’ का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन वाराणसी के प्रकाश सिनेमाघर में हुआ था। इस तिथि के अनुसार भोजपुरी सिनेमा प्रदर्शन की आधी शताब्दी पूर्ण कर चुका है। इस अवसर पर हम इस फिल्म के निर्माण से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यों और रोचक प्रसंगों की चर्चा इस विशेष अंक में कर रहे हैं। आज का यह अंक प्रस्तुत कर रहे हैं, युवा फ़िल्म पत्रकार, शोधार्थी, स्वतंत्र डॉक्यूमेंट्री व लघु फिल्मकार तथा पटना स्थित सिने सोसाइटी के मीडिया प्रबन्धक, रविराज पटेल।    रविराज पटेल य ह प्रबल एवं प्रमाणित अवधारणा है कि सिनेमा समाज का आईना होता है। इस आईने में और भी स्पष्ट प्रतिछाया बने, इसके लिए एक सहज सम्प्रेषणशील भाषा की आवश्यकता समझी जाती है। एक ऐसी भाषा जिसमें हर दर्शक