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दोस्ती के तागों में पिरोये नाज़ुक से ज़ज्बात -"काई पो छे"

प्लेबैक वाणी -35 - संगीत समीक्षा - काई पो छे रूठे ख्वाबों को मना लेंगें, कटी पतंगों को थामेगें, सुलझा लेंगें उलझे रिश्तों का मांजा... गिटार के पेचों से खुलता है ये गीत, सारंगी के मांजे में परवाज़ चढ़ाता है, और अमित के सुरों से जब उन्हीं के स्वर मिलते हैं तो एक सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. स्वानंद के शब्दों में बात है रिश्तों की, दोस्ती की और जिंदगी को जीत की दहलीज तक पहुंचा देने वाले ज़ज्बे के. अमित त्रिवेदी ने दिया है श्रोताओं को एक बेशकीमती तोहफा इस गीत के माध्यम से, मुझे जो सबसे अधिक प्रभावित करती है वो है वाध्यों का उनका चुनाव, हर गीत को किन किन गहनों से सजाना है ये अमित बखूबी जानते हैं. मुझे यकीन है कि मेरी ही तरह बहुत से श्रोताओं को उनकी हर नई पेशकश का बेसब्री से इन्तेज़ार रहता है.  आज हम जिक्र कर रहे हैं  ‘ काई पो छे ’  के संगीत की. उलझे रिश्तों को सुलझाते हुए आईये आगे बढते हैं अमित के संगीतबद्ध इस एल्बम में सजे अगले गीत की तरफ. अगला गीत भी दोस्ती के इर्द गिर्द है, मिली नायर की आवाज़ में गजब की ताजगी है, जैसे शबनम के मोती हों सुनहरी धूप में लि

सातवें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 109 में आज राग और प्रहर – 7 दरबारी, अड़ाना, शाहाना और बसन्त बहार : ढलती रात के ऊर्जावान राग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की महफिल में उपस्थित हूँ। आपको याद ही होगा कि इन दिनों हम ‘राग और प्रहर’ विषय पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला में अब तक सूर्योदय से लेकर छठें प्रहर तक के रागों की चर्चा हम कर चुके हैं। आज हम आपसे सातवें प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। सातवाँ प्रहर अर्थात रात्रि का तीसरा प्रहर मध्यरात्रि से लेकर ढलती हुई रात्रि के लगभग 3 बजे तक के बीच की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में गाने-बजाने वाले राग ढलती रात में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ होते हैं। प्रायः कान्हड़ा अंग के राग इस प्रहर के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। आज हम आपको कान्हड़ा अंग के रागों- दरबारी, अड़ाना और शाहाना के अतिरिक्त ऋतु-प्रधान राग बसन्त बहार की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  म ध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनय

सिने-पहेली में आज : ऋतु के अनुकूल गीतों को पहचानिए

प्रसारण तिथि – फरवरी 23, 2013 सिने-पहेली – 60 में आज   ऋतु के अनुकूल गीतों को पहचानिए और सुलझाइये पहेलियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को आज कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, सुजॉय चटर्जी की व्यस्तता के कारण सिने-पहेली का यह अंक प्रस्तुत करने का दायित्व मुझ पर आ गया है। इन दिनों शीत ऋतु अपनी प्रभुता को समेटने लगा है और ग्रीष्म ऋतु आगमन की आहट देने लगा है। ऋतु परिवर्तन का यह काल बहुत सुहाना होता है। इसे ही बसन्त ॠतु कहा जाता है। इसी ऋतु को ऋतुराज के विशेषण से अलंकृत भी किया जाता है। आजकल परिवेश में मन्द-मन्द बयार, चारों ओर फूलों की छटा, पंछियों का कलरव व्याप्त है। आज की 'सिने-पहेली' को हमने ऐसे ही परिवेश को चित्रित करते कुछ गीतों से सुवासित करने का प्रयास किया है। आज की पहेली : ऋतु प्रधान गीतों को पहचानिए आज की पहेली में हम आपको निम्नलिखित दस फिल्मी गीतों के अंश सुनवाते हैं। प्रत्येक गीतांश के साथ क्रमशः गीत से सम्बन्धित प्रश्न पूछे गए हैं। आपको क्रमानुसार इन प्रश्नों के उत्तर देने हैं। आइए शुरू कर