Skip to main content

Posts

बोलती कहानियाँ: झलमला - पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में, खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं। लाल उसे खाते तो यम को लजाते, और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं। रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ, खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं। सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास, और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं। (पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की "घनाक्षरी", अप्रैल 1931 में "प्रेमा" में प्रकाशित) 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में श्री हंसराज “सुज्ञ” की हिन्दी लघुकथा " "आसक्ति की मृगतृष्णा" का पॉडकास्ट सुना था। 18 दिसंबर को सरस्वती पत्रिका के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति और ‘मास्टरजी’ के नाम से प्रसिद्ध हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की पुण्यतिथि पर रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ‘मास्टरजी’ की लघुकथा " झलमला ", अनुराग शर्मा की आवाज़ में।

चुनिए वर्ष २०१२ के संगीत दिग्गज

दोस्तों पिछले हफ्ते की वोटिंग के बाद हमें हमारे चुने हुए ५० गीतों में से आप श्रोताओं की पसंद के २० श्रेष्ठ गीत प्राप्त हो गए हैं. अब बारी है चुनने की वर्ष के सर्वश्रेष्ठ संगीत महारथियों को जिनका काम आपको सबसे अधिक अच्छा लगा. आपके पास वोटिंग के लिए रविवार शाम ४.३० तक का समय रहेगा. अगले सोमवार यानी २४ दिसंबर को हम आपको सुनवायेंगें रेडियो प्लेबैक के समीक्षकों की टीम और उसके श्रोताओं द्वारा चुने गए २० सर्वश्रेष्ठ गीत, साथ ही बतायेंगें उन कलाकारों के नाम भी जो होंगें आपकी राय में वर्ष के सबसे सुरीले रचनाकार. सर्वश्रेष्ठ गायक (वर्ष २०१२)  Take Our Poll सर्वश्रेष्ठ गायिका (वर्ष २०१२) सर्वश्रेष्ठ गायिका सर्वश्रेष्ठ संगीतकार (वर्ष २०१२) सर्वश्रेष्ठ संगीतकार सर्वश्रेष्ठ गीतकार (वर्ष २०१२)  सर्वश्रेष्ठ गीतकार सर्वश्रेष्ठ अल्बम (वर्ष २०१२) सर्वश्रेष्ठ अल्बम

नारी-कण्ठ पर सुशोभित ठुमरी : ‘रस के भरे तोरे नैन...’

स्वरगोष्ठी-१०० में आज   फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ११ ‘आ जा साँवरिया तोहे गरवा लगा लूँ, रस के भरे तोरे नैन...’   ‘स्वरगोष्ठी’ के १००वें अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आपकी शुभकामनाओं, आपके सुझावों और मार्गदर्शन के बल पर आज हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के १००वें अंक तक आ पहुँचे है। इन दिनों इस साप्ताहिक स्तम्भ के अन्तर्गत लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ का हम प्रकाशन कर रहे हैं। आज इस श्रृंखला की ११वीं कड़ी है। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हमने आपको कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों का रसास्वादन कराया जिन्हें फिल्मों में शामिल किया गया था। इस लघु श्रृंखला को अब हम आज विराम देंगे और नए वर्ष से आप सब के परामर्श के आधार पर एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ करेंगे। आइए, अब आज की कड़ी का आरम्भ करते हैं। ल घु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के अन्तर्गत आज हम जिस ठुमरी पर चर्चा करेंगे, वह है- ‘आ जा साँवरिय