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आज हो रहा है 'सिने पहेली' का आधा सफ़र पूरा

15 दिसम्बर, 2012 सिने-पहेली - 50  में आज   चार गायकों द्वारा गाये गये कितने गीत याद हैं आपको? 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, आज की 'सिने पहेली' का यह अंक इस स्तंभ के लिए एक अहम मुकाम है क्योंकि आज इस स्तंभ, इस प्रतियोगिता का आधा सफ़र हो रहा है पूरा। पहेलियाँ सुलझाते हुए 100 कड़ियों की इस प्रतियोगिता के 50-वें पड़ाव पर हम आज आ पहुँचे हैं। जिन प्रतियोगियों ने इस सफ़र में हमारे हमसफ़र बने हैं, उन्हें हम धन्यवाद देते हैं। कुछ प्रतियोगी शुरू से लेकर अब तक जुड़े हुए हैं तो कुछ प्रतियोगी हमसे दूर चले गए हैं, और कुछ प्रतियोगी बाद में जुड़ कर हमारे साथ अब तक बने हुए हैं। सभी प्रतियोगियों से निवेदन है कि प्रतियोगिता को बीच में छोड़ कर न जायें क्योंकि इस प्रतियोगिता के नियम कुछ ऐसे बनाये गये हैं कि हर प्रतियोगी के लिए अब भी पूरी-पूरी संभावना है महाविजेता बनने की। और यही बात नये प्रतियोगियों के लिए भी लागू होती है, जिनका हम अलग से हर कड़ी में आह्वान करते हैं। 'सिने पहेली' के पाँचवें सेगमेण्

शब्दों के चाक पर - 21

कुछ मौसम मैंने संभाल रखे हैं मन की बगिया में उतार रखे हैं जो रंगीन तितलियों से उड़ते हैं टिटियाती चिड़ियों के सुरों में मधुर गीत भी बुन के रखे हैं जो दिन भर मंजीरों से बजते हैं रंगीन रिश्तो के आइनों के भी रंग किर्चों से निकाल रखें हैं बिखरे पंख यादों के पाखी के मन - किताबों में संभाल रखें हैं दोस्तों, आज की कड़ी में हमारा विषय है - " कुछ बचा लो " और " बेसूझ साया "। हमने शुरूआत यादों से की और सफर खत्म प्यार पर किया। इस तरह देखा और तौला जाए तो सफर का नाम कुछ और नहीं "ज़िंदगी" निकलता है। कविताएं पिरोकर लाये हैं आज हमारे विशिष्ट कवि मित्र। पॉडकास्ट को स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ओर अनुराग शर्मा ने, स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने, सम्पादन व संचालन है अनुराग शर्मा का, व सहयोग है वन्दना गुप्ता का। आइये सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)  या फिर यहाँ से डाउनलोड करें (राईट क्लिक करके 'सेव ऐज़ चुनें') "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती

मैंने देखी पहली फिल्म : जब प्रिंसिपल ने हॉल पर छापा मारा

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 27     मैंने देखी पहली फ़िल्म   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के अंक में हम उत्तर प्रदेश राज्य के सेवानिवृत्त सूचना अधिकारी सतीश पाण्डेय जी का प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। सतीश जी ने अपनी पहली देखी फिल्म ‘हक़ीक़त’ की चर्चा की है। यह भारत की पहली युद्ध विषयक फिल्म मानी जाती है।    पहली फिल्म देखने के दौरान जब प्रिंसिपल ने हॉल पर छापा मारा : सतीश पाण्डेय   आ ज जब मेरे सामने यह सवाल उठा कि मेरे जीवन की पहली फिल्म कौन थी, तो इसके जवाब में मैं यही कहना चाहूँगा कि वह ऐतिहासिक फिल्म थी ‘हकीकत’। 1962 में हमारे पड़ोसी