संगीत समीक्षा - बर्फी साल २०११ में एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म प्रदर्शित हुई थी-”स्टेनले का डब्बा”. जिसका संगीत बेहद सरल और सुरीला था, “बर्फी” के संगीत को सुनकर उसी बेपेच सरलता और निष्कलंकता का अहसास होता है. आज के धूम धूम दौर में इतने लचीले और सुकूँ से भरे गीत कितने कम सुनने को मिलते हैं. आश्चर्य उस पर ये कि फिल्म में संगीत है प्रीतम का. बॉलीवुड के संगीतकार के पास जिस किस्म की विवधता होनी चाहिए यक़ीनन वो प्रीतम के सुरों में है, और वो किसी भी फिल्म के अनुरूप अपने संगीत को ढाल कर पेश कर सकते हैं. “बर्फी” में प्रीतम के साथ गीतकारों की पूरी फ़ौज है. आईये अनुभव करें इस फिल्म के संगीत को रेडियो प्लेबैक की नज़र से... आला बर्फी कई मायनों में एक मील का पत्थर है. गीत के शुरुआती और अंतिम नोटों पर सीटी का लाजावाब प्रयोग है. हल्का फुल्का हास्य है शब्दों में और उस पर मोहित की बेमिसाल गायिकी किशोर कुमार वाली बेफिक्र मस्ती की झलक संजोय बहती मिलती है. संगीत संयोजन सरल और बहुत प्रभावी है, पहाड़ों की महक है गीत में कहीं तो पुराने अंग्रेजी गीतों का राजसी अंदाज़ भी कहीं कहीं सुनने को मिलता है. एक