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प्लेबैक इंडिया वाणी (१६) बर्फी, और आपकी बात

संगीत समीक्षा - बर्फी साल २०११ में एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म प्रदर्शित हुई थी-”स्टेनले का डब्बा”. जिसका संगीत बेहद सरल और सुरीला था, “बर्फी” के संगीत को सुनकर उसी बेपेच सरलता और निष्कलंकता का अहसास होता है. आज के धूम धूम दौर में इतने लचीले और सुकूँ से भरे गीत कितने कम सुनने को मिलते हैं. आश्चर्य उस पर ये कि फिल्म में संगीत है प्रीतम का. बॉलीवुड के संगीतकार के पास जिस किस्म की विवधता होनी चाहिए यक़ीनन वो प्रीतम के सुरों में है, और वो किसी भी फिल्म के अनुरूप अपने संगीत को ढाल कर पेश कर सकते हैं. “बर्फी” में प्रीतम के साथ गीतकारों की पूरी फ़ौज है. आईये अनुभव करें इस फिल्म के संगीत को रेडियो प्लेबैक की नज़र से... आला बर्फी कई मायनों में एक मील का पत्थर है. गीत के शुरुआती और अंतिम नोटों पर सीटी का लाजावाब प्रयोग है. हल्का फुल्का हास्य है शब्दों में और उस पर मोहित की बेमिसाल गायिकी किशोर कुमार वाली बेफिक्र मस्ती की झलक संजोय बहती मिलती है. संगीत संयोजन सरल और बहुत प्रभावी है, पहाड़ों की महक है गीत में कहीं तो पुराने अंग्रेजी गीतों का राजसी अंदाज़ भी कहीं कहीं सुनने को मिलता है. एक

संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला : पं. श्रीकुमार मिश्र से बातचीत

स्वरगोष्ठी – ८८ में आज संगीत के सौ रंग बिखेरती सारंगी ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपकी गोष्ठी में उपस्थित हूँ और आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। मित्रों, यह ‘स्वरगोष्ठी’ स्तम्भ का सौभाग्य रहा है कि इसे आरम्भ से ही संगीत-साधकों, संगीत-शिक्षकों और संगीत-प्रेमियों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। हमारे एक ऐसे ही मार्गदर्शक हैं जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक और शिक्षक पं. श्रीकुमार मिश्र। पिछले दिनों उनकी कक्षा में मैं आकस्मिक रूप से जब पहुँचा तो आश्चर्यचकित रह गया। लगभग अप्रचलित इन गज-वाद्यों को सीखने के लिए कुल ९ विद्यार्थी उस कक्षा में उपस्थित थे, जिनमें ५ बालिकाएँ थीं। श्रीकुमार जी इन बच्चों को एक सरल सी तान का अभ्यास करा रहे थे। मैंने संगीत के उन विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की सराहना की और श्रीकुमार जी से गज-तंत्र वाद्यों के बारे में ‘स्वरगोष्ठी’ के लिए कुछ बातचीत करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आज के अंक में हम इस बातचीत के सम्पादित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। कृष्णमोहन : श्रीकुमार जी

'सिने पहेली' में जारी है घमासान, प्रतियोगिता में आया एक रोचक मोड़

सिने-पहेली # 37 (15 सितम्बर, 2012)   'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का आपके मनपसंद स्तंभ 'सिने पहेली' में। चौथे सेगमेण्ट के अंतिम चार कड़ियों में हम आ पहुँचे हैं। जैसा कि हमने पहले कहा था कि हर सेगमेण्ट की पहली पाँच कड़ियाँ आसान होंगी, और बाद की पाँच कड़ियाँ होंगी थोड़ी मुश्किल, पिछले सप्ताह की पहेली से आपको इस बात का अंदाज़ा लग गया होगा। पिछले सप्ताह अन्य सप्ताहों के मुकाबले हमें कम प्रतियोगियों ने जवाब भेजे हैं जिससे हमें निराशा हुई है। भले आपको सारे जवाब न आते हों, पर कम से कम जितने आते थे, उतने तो लिख भेज ही सकते थे न? यह ज़रूरी नहीं कि हर प्रतियोगी विजेता बने, यह संभव भी नहीं, पर जो बात विजेता बनने से ज़्यादा ज़रूरी है, वह है प्रतियोगिता में बने रहना, प्रतियोगिता में भाग लेना, एक खिलाड़ी की तरह मैदान में अंत तक डटे रहना। हम अपने सभी प्रतियोगियों से निवेदन करते हैं कि अगर सारे जवाब मालूम भी न हों तो कम से कम कोशिश तो करें, जितने जवाब आते हों, उन्हें तो कम से कम लिख भेजें। याद रहे