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अमरीका और यू.ए.ई के बाद अब 'सिने पहेली' के प्रतियोगी रूस से भी...

सिने-पहेली # 34 (25 अगस्त, 2012)  'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। दोस्तों, इस सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार के साथ जुड़े हैं दो नए खिलाड़ी - आप हैं मॉस्को, रूस से शुभदीप चौधरी और कोल्हापुर, महाराष्ट्र से मंदार नारायण । आप दोनों का हार्दिक स्वागत है इस प्रतियोगिता में और निवेदन है कि आगे भी नियमित रूप से 'सिने पहेली' में भाग लें और अन्य खिलाड़ियों को अच्छी टक्कर देकर प्रतियोगिता को और रोचक बनाएँ।  दोस्तों, 'सिने पहेली' से मनोरंजन तो होता ही है, साथ में ज्ञान भी बढ़ता है। पर आप यह न समझिए कि सिर्फ़ पाठकों या फिर प्रतियोगियों का ज्ञान बढ़ता है, बल्कि 'सिने पहेली' के संचालक दल का, और ख़ास तौर से मेरा ज्ञान भी बढ़ता है, और कई बार तो प्रतियोगियों के माध्यम से भी। अब देखिए न, पिछले अंक में मैंने एक सवाल पूछा था कि किस गायक के साथ किशोर कुमार ने गीत गाया है। यह सवाल मैंने अभिजीत को ध्यान में रख कर किया था; विकल्पों में अभिजीत के अलावा कुमार

मैंने देखी पहली फिल्म - रंजना भाटिया का संस्मरण

रंजना भाटिया ने देखी 'अमर अकबर एंथनी'   मैंने देखी पहली फिल्म : वो यादें जो दिल में कस्तूरी-गन्ध सी बसी हैं  भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आप श्री प्रेमचंद सहजवाला की देखी पहली फिल्म के संस्मरण के साझीदार रहे। आज अपनी देखी पहली फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ का संस्मरण सुश्री रंजना भाटिया प्रस्तुत कर रही हैं। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। जी वन में पहली बार घटने वाला हर प्रसंग रोमांचकारी होता है। पहला पत्र, पहला दोस्त, पहली कविता, पहला प्रेम आदि कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जो जीवन भर याद रहते हैं। ऐसे में एक सवाल उठा- पहली देखी पिक्चर का संस्मरण......। सोचने वाली बात है की इनमें किसको पहली पिक्चर कहें...। बचपन में जब बहुत छोटे हों तो माता-पिता के साथ और उन्हीं के शौक पर निर्भर करता है कि आपने कौन सी पिक्चर देखी होगी। मेरे माता-पिता दो

मैं और मेरा देश....कविताओं में देश प्रेम का उबाल

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 12 शब्दों की चाक पर आज हमारे कवि मित्र लेकर आये हैं "मैं और मेरा देश" विषय पर कुछ लाजवाब कवितायेँ. आवाजें हैं अभिषेक ओझा और शैफाली गुप्ता की. आज की स्क्रिप्ट है अनुराग शर्मा की. प्रस्तुति सहयोग है विश्व दीपक, रश्मि प्रभा और सजीव सारथी का. तो सुनिए देश प्रेम से सराबोर कुछ काव्यात्मक अभिव्यक्तियाँ... (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में श

एक सुरीला दौर जो बीतकर भी नहीं बीता -राजेश खन्ना

सुनिए काका को श्रद्धान्जली देने को तैयार किया गया हमारा खास पॉडकास्ट   मूल स्क्रिप्ट   यह पोडकास्ट समर्पित है हिन्दी फिल्मों के निर्विवादित पहले सुपरस्टार को। इनकी मक़बूलियत के किस्से परिकथाओं और जनश्रुतियों की तरह दुनिया में मशहूर हैं। हमें उम्मीद और पक्का यकीन है कि हमें इनका नाम बताने की ज़रूरत न होगी। चलिए तो नाम पर पर्दा रहते हुए हीं इनके बारे में दो-चार बातें कर ली जाएँ। इन महानुभाव का जन्म २९ दिसंबर १९४२ को ब्रिटिश इंडिया के बुरेवाला में हुआ था। जब जन्म हुआ तो नाम भी रखना था तो नाम रखा गया जतिन अरोड़ा। लेकिन ज्यादा दिनों तक न जतिन रहा और न हीं अरोड़ा। १९४८ में जब इनके माता-पिता इन्हें अपने रिश्तेदारों चुन्नी लाल खन्ना और लीलावती खन्ना को सौंपकर पंजाब के अमृतसर चले गए तो ये अरोड़ा से खन्ना हो लिए। इनके नए माता-पिता बंबई के गिरगांव के नजदीक ठाकुरगांव में रहते थे। यही इनका भी लालन-पालन और बढना-पढना हुआ। इन्होंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढाई की अपने बचपन के दोस्त रवि कपूर के साथ जो आगे चलकर जितेंद्र कहलाए। ज्यों-ज्यों इनकी उम्र बढती गई, इन

प्लेबैक इंडिया वाणी (१२) जोकर

संगीत समीक्षा - जोकर अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा के अभिनय से सजी है फिल्म ‘जोकर’, जो आने वाले दिनों में प्रदर्शित होने वाली है. इस फिल्म का संगीत दिया है जी.वी.प्रकाश कुमार और गौरव दागावंकर ने. जी.वी.प्रकाश कुमार ए.आर.रहमान के भांजे हैं जिनकी बतौर संगीत निर्देशक यह पहली फिल्म है.सभी श्रोताओं को उनसे मधुरता की उम्मीद रहेगी. देखिये आपकी और हमारी अपेक्षाओं पर वः कितने खरे उतर पाते हैं. इस फिल्म के ६ गानों में से ५ का संगीत निर्देशन जी.वी.प्रकाश कुमार का है और एक गाना आया है गौरव के हिस्से में. अल्बम की शुरुआत होती है काफिराना गाने से. इस गाने का संगीत गौरव का है और आवाजें हैं सुनिधी चौहान और आदर्श शिंदे की.गाने के बोलों में हिन्दी , अंग्रेजी और मराठी का इस्तेमाल हुआ है. यह गाना पूरी मस्ती में सराबोर गाना है जिसमे ढोल का जमकर इस्तेमाल हुआ है. इस गाने को सुनकर महाराष्ट्र में गणपति महोत्सव के समय होने वाले डांस की याद आ जाती है. अगला गाना है जुगनू. इस गाने को गाया है उदित नारायण ने. गाना साधारण है पर उदित ने अपनी आवाज के द्वारा इसमें मिठास लाने की कोशिश करी है. गाना एक बार सुन

वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों के संग – समापन कड़ी

             स्वरगोष्ठी – ८४ में आज ‘चतुर्भुज झूलत श्याम हिंडोला...’ : मल्हार अंग के कुछ अप्रचलित राग व र्षा ऋतु के संगीत पर केन्द्रित ‘स्वरगोष्ठी’ की यह श्रृंखला विगत सात सप्ताह से जारी है। परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब इस ऋतु ने भी विराम लेने का मन बना लिया है। अतः हम भी इस श्रृंखला को आज के अंक से विराम देने जा रहे हैं। पिछले अंकों में आपने मल्हार अंग के विविध रागों और वर्षा ऋतु की मनभावन कजरी गीतों का रसास्वादन किया था। आज इस श्रृंखला के समापन अंक में मल्हार अंग के कुछ अप्रचलित रागों पर चर्चा करेंगे और संगीत-जगत के कुछ शीर्षस्थ कलासाधकों से इन रागों में निबद्ध रचनाओं का रसास्वादन भी करेंगे। पण्डित सवाई गन्धर्व  मल्हार अंग का एक मधुर राग है- नट मल्हार। आजकल यह राग बहुत कम सुनाई देता है। यह राग नट और मल्हार अंग के मेल से बना है। इसे विलावल थाट का राग माना जाता है। इस राग में दोनों निषाद का प्रयोग होता है, शेष सभी स्वर शुद्ध प्रयुक्त होते हैं। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। इसराज और मयूर वीणा-वादक पं. श्रीकुमार मिश्र के अनुसार इस राग के गायन-वादन में नट अ

जुड़िये 'सिने पहेली' से, और जीतिये 5000 रुपये का नकद इनाम...

सिने-पहेली # 33 (18 अगस्त, 2012)  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। दोस्तों, एक और सप्ताह का समापन हुआ चाहता है। आजकल अधिकतर दफ़्तरों में शनिवार को छुट्टी होती है, पिछले पाँच दिनों की भागादौड़ी के बाद दो दिन मिलता है अपने लिए, अपने शौक पूरे करने के लिए, मनोरंजन के लिए। और तभी तो हम शनिवार की सुबह आपके लिए लेकर आते हैं 'सिने पहेली' का यह मज़ेदार खेल। हाँ, यह सच है कि इसमें ज़रा दिमाग़ पे ज़ोर डालना पड़ता है, पर इसमें भी एक मज़ा है और यकीनन इन पहेलियों को सुलझाते हुए आप रोज़-मर्रा के तनाव को थोड़ा कम कर पाते होंगे, ऐसा मेरा अनुमान है। 'सिने पहेली' का चौथा सेगमेण्ट जारी है, और इस सेगमेण्ट की तीसरी कड़ी है, अर्थात् 'सिने पहेली' की 33-वीं कड़ी। आज की पहेलियों को फेंकने से पहले हम दोहरा देते हैं कि किस तरह से आप बन सकते हैं 'सिने पहेली' के महाविजेता। कैसे बना जाए 'सिने पहेली महाविजेता? 1. सिने पहेली प्रतियोगिता में होंगे कुल 100