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प्लेबैक इंडिया वाणी (6) कॉकटेल, अहा ज़िंदगी और आपकी बात

संगीत समीक्षा -  कॉकटेल संगीतकार प्रीतम और गीतकार इरशाद कामिल की जोड़ी आज के दौर की एक कामयाब जोड़ी मानी जा सकती है. इस जोड़ी की नयी पेशकश है कॉकटेल. जैसा कि नाम से ही विदित है कि संगीत का एक मिश्रित रूप यहाँ श्रोताओं को मिलेगा, इस उम्मीद पर अल्बम निश्चित ही खरी उतरती है.  इरशाद ने “ तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो ” में से माता पिता का नाम हटा कर खुदा को बस बंधू और सखा का नाम देकर और भी आत्मीय बना दिया है और इस तेज रिदम के गीत में भी उनके बोल दिल को गहराईयों से छू जाते हैं, “ जग मुझे पे लगाये पाबंदी, मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की ” ...वाह...और उस पर कविता सेठ की आवाज़ एक अलग ही मुकाम दे देती है गीत को, नीरज श्रीधर ने अच्छा साथ निभाया है, तुम्हीं हो बंधू से अल्बम की शानदार शुरुआत होती है और  इसी सिलसिले को आगे बढ़ाता है अगला गीत “ दारु देसी ” , इश्कजादे में “ परेशान ” गाकर अपनी शानदार उपस्थिती दर्ज कराने वाली शामली खोलगादे हैं बेन्नी दयाल के साथ जिनकी मदभरी आवाजों में ये गीत भी खूब जमा है. बेस गिटार और रिदम का शानदार प्रयोग “ यारियाँ ” गीत को गजब की ऊंचाईयां प्रदान क

कहानी पॉडकास्ट: नज़ीर मियाँ की खिचड़ी (श्रीमती रीता पाण्डेय)

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कथा " बाप बदल " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं श्रीमती रीता पाण्डेय का व्यंग्य " नज़ीर मियाँ की खिचड़ी ", जिसको स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने। नज़ीर मियाँ की खिचड़ी का टेक्स्ट श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय के प्रसिद्ध ब्लॉग मानसिक हलचल पर अतिथि पोस्ट के रूप में उपलब्ध है। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 8 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जब तक कसा न जाये, तब तक कोई सक्रिय नहीं होता, न व्यक्ति न तन्त्र। ~ श्रीमती रीता पाण्डेय (श्रीमती रीता पाण्डेय गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही से हैं। वे सपरिवार शिवकुटी (उ.प्र.) में रहती है

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 4

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा-निर्माण के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ की एक नई कड़ी में आप सबका हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, आज बारी है, ‘भूली-बिसरी यादें’ की, जिसके अन्तर्गत हम मूक और सवाक फिल्मों के आरम्भिक दौर की कुछ रोचक बातें आपसे बाँटेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : सावे दादा की सृजनशीलता ‘रा जा हरिश्चन्द्र’ को प्रथम भारतीय मूक कथा-फिल्म माना जाता है। 1913 में इस फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन से पहले जो प्रयास किए गए, हम इस स्तम्भ में उनकी चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंक में हमने वर्ष 1896 और 1898 में किए गए प्रयासों का उल्लेख किया था। इसके बाद 1899 में हरिश्चन्द्र सखाराम भटवाडेकर उर्फ सावे दादा ने इंग्लैंड से एक फिल्म-कैमरा मंगाया और अखाड़े में दो पहलवानों के बीच कुश्ती का फिल्मांकन किया। मुम्बई के हैंगिंग गार्डेन में कुश्ती का यह आयोजन कृष्ण नहवी और पुंडलीक नामक दो पहलवानों के बीच किया गया था। सावे दादा ने इसी कैमरे से ‘मैन ऐंड मंकी’ नामक एक लघु फिल्म भी बनाई, जिसका प्रदर्शन पेरी थियेटर में किया गया था। सावे दादा ने सिनेमा को मनोरं

बिम्ब एक प्रतिबिम्ब अनेक

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 05 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडक

आपके नाम भी हो सकता है 5000 रुपये का इनाम, आज से ही भाग लीजिए 'सिने-पहेली' में

सिने-पहेली # 27 (2 जुलाई, 2012)  'सिने पहेली' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हमारे कुछ प्रतियोगियों ने हमें यह सूचित किया है कि 'सिने पहेली' में सोमवार से शुक्रवार तक का समय होने की वजह से उन्हें जवाब भेजने में परेशानी हो रही है क्योंकि इनमें कोई छुट्टी का दिन शामिल नहीं है, इसलिए हमें 'सिने पहेली' का दिन इस तरह से निर्धारित करना चाहिए ताकि शनिवार और रविवार जवाब भेजने वाले दिनों में शामिल हो जाए। तो दोस्तों, इसके जवाब में हम फ़िलहाल यही कहना चाहेंगे कि ऐसा कर पाना अभी मुमकिन नहीं है क्योंकि 'सिने पहेली' पोस्ट करने के लिए हमें भी छुट्टी के दिन की ज़रूरत पड़ती है। हाँ, हम इतना ज़रूर कर सकते हैं कि शुक्रवार की जगह अब आप शनिवार शाम 5 बजे तक अपना जवाब भेज सकते हैं। इस तरह से अब आपको शनिवार का पूरा दिन मिल गया जवाबों को ढूंढ कर हमें भेजने के लिए। चलिए शुरू करते हैं आज की पहेली आज की पहेली: गान पहचान  दोस्तों, आज बहुत दिनों बाद हम रुख़ कर रहे हैं ऑडियो की तरफ़। हमने ख़ास आपके लिए तैयार किया है एक फ़िल्मी मेडली। सुनिए

७५वें वर्ष में प्रवेश पर अभिनन्दन, पं . चौरसिया जी

स्वरगोष्ठी – ७७ में आज बाँस की बाँसुरी और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया आ ज ‘स्वरगोष्ठी’ का यह ७७ वाँ अंक है और आज की इस बैठक में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों/श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करते हुए बाँसुरी के अनन्य साधक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से, अपनी ओर से और आप सब संगीत-प्रेमियों की ओर से अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आज जुलाई की पहली तारीख है। आज ही के दिन १९३८ में इस महान संगीतज्ञ का जन्म हुआ था। एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी लेकर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका फहराने वाले पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का आज ७५वाँ जन्म-दिवस अर्थात अमृत महोत्सव मनाने का दिवस है। आज ही वे अपने जीवन के सुरीले ७४ वर्ष पूर्ण कर ७५वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आइए, ‘स्वरगोष्ठी’ में आज हम सब उन्हीं की कुछ रचनाओं से उनका अभिनन्दन करते हैं। बाँस से बनी बाँसुरी सम्भवतः सबसे प्राचीन स्वर-वाद्य है। महाभारत काल से पहले भी बाँसुरी का उल्लेख मिलता है। विष्णु के कृष्णावतार को तो ‘मुरलीधर’, ‘बंशीधर’, ‘वेणु के बजइया’ आदि नामों से सम्बोधित किया गय

प्लेबैक इंडिया वाणी (5) तेरी मेरी कहानी, हिडन मिस्ट्रीज और आपकी बात

संगीत समीक्षा -  तेरी मेरी कहानी दबंग और राउडी राठौर के चालू सरीखे संगीत की अपार कामयाबी के बाद साजिद वाजिद लौटे हैं अपने चिर परिचित "दीवाना" अंदाज़ की प्रेम कहानी के साथ.  अल्बम का पहला ही गीत दिल को छू जाता है , वाजिद ने इसे खुद गाया है और प्रसून ने बहुत खूबसूरत शब्द जड़े हैं ,   ‘ मुक्तसर मुलाक़ात ’ एक दिलकश प्रेम गीत है.  राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ का होना आजकल हर अल्बम में लाजमी है. "अल्लाह जाने" गीत मेलोडियस है और राहत की सुकून भरी आवाज़ में ढलकर और भी सुन्दर हो जाता है...प्रसून ने एक बार फिर शब्दों में गहरी कशिश भरी है.  रेट्रो अंदाज़ का "जब से मेरे दिल को उफ़" इन दिनों छोटे परदे पर जम कर प्रचारित किया जा रहा है. गीत का सबसे जबरदस्त पहलू सोनू निगम और सुनिधि की गायिकी है , जिसके कारण गीत बार बार सुनने लायक बन पड़ा है. कव्वाली अंदाज़ का "हमसे प्यार कर ले तू" भी एक दो बार सुनने के बाद होंठों पे चढ जाता है. वाजिद और श्रेया के साथ इस गाने में तडका लगाया है मिका ने. इंटर ल्यूड में अमर अकबर एंथोनी के "पर्दा है पर्दा" की झ